देश के कुल मतदाताओं में 48% की हिस्सेदारी रखने वाली महिलाओं को सियासी हक देने में राजनीति हावी है। हिमाचल में पहली बार कुल 68 विधायकों में एक ही महिला है। इसकी बड़ी वजह यह है कि 412 उम्मीदवारों में सिर्फ 24 महिलाओं को ही मौका दिया गया था। इसी तरह गुजरात में भी 560 उम्मीदवारों में महज 40 महिलाएं उतारी गई थीं, जिनमें से 15 जीत गईं। यानी चुनावी रण में महिलाओं का सक्सेस रेट पुरुषों से कहीं बेहतर है।
इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के अलावा किसी भी राज्य में महिला विधायकों का आंकड़ा 14% भी नहीं है। 8 राज्य तो ऐसे हैं, जहां 50% से ज्यादा महिला वोटर हैं, फिर भी वहां के कुल विधायकों में बमुश्किल 5 से 8% ही महिलाएं हैं। मिजोरम में तो 51% महिला वोटर होने के बावजूद कोई महिला विधायक नहीं है। नगालैंड में भी कोई महिला विधायक नहीं है।
भारत पड़ोसी देशों से भी पीछे
लोकसभा
में 14.94% और राज्यसभा में 14.05% ही महिला सांसद हैं। इंटर
पार्लियामेंट्री यूनियन के डेटा की मानें तो दुनियाभर की संसद में महिलाओं
की हिस्सेदारी औसतन 18% है। पाकिस्तान में यह आंकड़ा 20% और बांग्लादेश में
21% है। यानी भारत इस मामले में वैश्विक औसत से 3% और पड़ोसी मुल्कों से
6-7% तक पीछे खड़ा है।
एक्सपर्ट; बड़ी पार्टियां महिलाओं को टिकट कम देती हैं, इसलिए पीछे हैं
सीएसडीएस
में प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार संजय कुमार बताते हैं- ऐसा जरूरी नहीं
है कि यदि कहीं महिला वोटर ज्यादा हैं तो महिला उम्मीदवार के जीतने की
संभावना बढ़ जाएगी, क्योंकि, देश का एक बड़ा तबका उम्मीदवार से ज्यादा पार्टी
देखकर वोट देता है। और पार्टियां ज्यादा महिलाओं को टिकट नहीं देतीं,
क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके जीतने की उम्मीद कम है।
जबकि, महिलाओं का सक्सेस रेट पुरुषों से बेहतर है। दूसरी बात, निर्दलीय महिला उम्मीदवार का सफल होना मुश्किल होता है। यही वजह है कि हमारी राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत बहुत कम है।