बुरहानपुर की बाकड़ी वन चौकी से बंदूक लूटे जाने की घटना के बाद से वन विभाग की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। चार साल से विभाग ने अपनी बंदूकों के लिए नए कारतूस की खरीदी नहीं की है। इस साल भी कारतूस नहीं खरीदे जाएंगे। वहीं अब बंदूकों को भी वन चौकियों के बजाए कई किमी दूर चुनिंदा रेंज ऑफिस या डीएफओ कार्यालयों में ही रखा जाएगा। बंदूक-युक्त वन चौकियों की संख्या भी आधी करने की तैयारी है।
वन अमले को अभी सिर्फ उन्हीं इलाकों में बंदूकें दी जाएंगी, जहां वास्तविक जरूरत है। जहां जरूरत नहीं हैं, उन वन क्षेत्रों से बंदूकें वापस ली जाएंगी। बंदूक लूटकांड के बाद सरकार ने एसीएस गृह डॉ. राजेश राजौरा की अध्यक्षता में जांच कमेटी बनाई थी। इसी के बाद से बदलाव पर विचार किया जा रहा है। बुरहानपुर की बाकड़ी वन चौकी से 28 नवंबर की रात बदमाशों ने 17 बंदूकें और 1 हजार कारतूस लूट लिए थे। यहां सिर्फ बुजुर्ग चौकीदार था। हालांकि पुलिस ने हथियार जब्त कर लिए थे।
भोपाल डिवीजन के वन अफसरों ने सरेंडर कर रखी हैं अपनी बंदूकें
विदिशा के लटेरी में 9 अगस्त को वन अफसरों की गोली से एक आदिवासी की मौत के बाद फॉरेस्ट रेंजर की गिरफ्तारी के विरोध में भोपाल डिवीजन के सभी वन अधिकारियों ने अपनी बंदूकें विभाग को वापस लौटा दी थीं। ये या तो थानों में जमा हैं या डीएफओ कार्यालय में रखी हुई हैं।
बिना अधिकार सरकार ने थमाई हैं बंदूकें
सरकारी तंत्र में हथियार रखने का अधिकार या तो पुलिस को है या फिर ऐसे सशस्त्र बलों को जिन्हें केंद्र या राज्य सरकार ने सीआरपीसी के तहत हथियार रखने और चलाने के अधिकार दिए हैं। रिटायर्ड फॉरेस्ट अफसर केसी मल्ल का कहना है कि वन विभाग के पास हथियार रखने के संबंध में कोई नीतिगत स्पष्ट आदेश मौजूद नहीं है।
3 हजार से अधिक बंदूकें हैं वन विभाग के पास
- 19500 मप्र में वन अमला
- 2800 अमेरिकन पंप एक्शन गन
- 357 दुनाली बंदूकें 12 बोर
- 286 रिवाल्वर
- बुरहानपुर बंदूक लूटकांड के बाद कठघरे में कार्यशैली
- चार साल से कारतूस नहीं खरीदे