मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में डॉक्टर और मोटिवेशन स्पीकर रौशन शेख (30) ने ट्रेन हादसे में दोनों पैर गंवाने के बाद मेडिकल की पढ़ाई की। जिंदगी और मौत से लड़ते हुए एमबीबीएस और एमडी करने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी। उनके लिए 20 साल पुराने नियम बदले गए। वे रविवार को भोपाल मुस्लिम एजुकेशन एंड करियर प्रमोशन सोसायटी (मीकैप्स) के प्रोग्राम में मोटिवेशन स्पीकर के रूप में आईं। इस दौरान उन्होंने संघर्षों की कहानी साझा की।
एक पैर ट्रेन ने छीन लिया और दूसरा समय पर इलाज न मिलने से कट गया
मैं मुंबई के जोगेश्वरी इलाके में एक कमरे में तीन बहनें, भाई और मम्मी-पापा के साथ रह रही थी। पापा कांदा बटाटा बेचते थे। कई बार एक वक्त का खाना ही नसीब होता था। 7 अक्टूबर 2008 की बात है। मैं लोकल ट्रेन से जोगेश्वरी जा रही थी। मुझे किसी ने धक्का दिया या मैं खुद ही गिर गई। याद नहीं… एक ही झटके में पटरियों पर आ गिरी। मेरे पैर से ट्रेन गुजर गई। मेरा एक पैर कटकर बुर्के में फंसा था। दूसरे से खून बह रहा था। मुझे अस्पताल ले जाया गया। वहां डॉक्टरों की हड़ताल थी। सारा दिन स्ट्रेचर पर पड़ी रही। इसके बाद दूसरे हॉस्पिटल में एडमिट किया। वहां डॉ. संजय कंथारिया ने मेरा इलाज शुरू किया। अनगिनत सर्जरी हुई। 24 घंटे के बाद होश आया। होश आने के बाद मेरी बड़ी बहन ने कहा- रौशन तुम्हारा एक पैर नहीं रहा और दूसरा गैंगरीन के कारण काटना पड़ा।
तीन महीने मैंने अस्पताल में जो झेला है, वो मैं ही जानती हूं। इसके बाद मेरी जिद थी डॉक्टर बनने की। 2009 में मुझे आर्टिफिशियल पैर लग गए। मैंने 12वीं में टॉप किया। मेडिकल एंट्रेंस में महाराष्ट्र में थर्ड रैंक मिली। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(एमसीआई) ने मुझे खारिज कर दिया। कहा-एक कानून है जिसके तहत 40 से 70% विकलांग उम्मीदवार को मेडिकल में एडमिशन मिल सकता है। आप 89% विकलांग हैं, आपको नहीं मिल सकता। मैं हाईकोर्ट गई। फैसला मेरे पक्ष में आया। इस तरह मुझे एमबीबीएस में दाखिला मिल गया। 2016 में मेरा एमबीबीएस हो गया। मैंने टॉप किया। 2018 में मैंने एमडी के लिए अप्लाई किया, तो फिर वही कानून आड़े आया। उसी दौरान तत्कालीन सांसद किरीट सोमैया का फोन आया। मैंने उन्हें बताया कि फॉर्म भरने में सिर्फ दो दिन बचे हैं। नियमों का हवाला देकर मुझे रोका जा रहा है। उन्होंने मेरी बात सुनी और फोन रख दिया। फिर मेरा फोन बजा, उधर से आवाज आई कि मैं तत्कालीन हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा बोल रहा हूं। इंटरनेट पर तत्काल फॉर्म भरो। एक वक्त के लिए मेरा तो दिमाग ही काम नहीं किया कि ये हो क्या रहा है। इससे पहले मैं उन्हें जानती भी नहीं थी। जब मैं फॉर्म भरने लगी तो देखा कि 47% डिसेबिलिटी का फैक्टर हटा दिया गया था। मैंने फॉर्म भरा। 20 साल पुराने कानून में बदलाव हो गया है और एमडी में मुझे एडमिशन मिला।