फार्मेसी काउंसिल में फर्जी दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन करवाने वाले 56 फार्मासिस्ट की फाइल तेलीबांधा पुलिस के हवाले कर दी गई है। पुलिस को जिन 56 लोगों की सूची सौंपी गई है, उनमें किसी का रजिस्ट्रेशन हो गया है तो किसी ने फर्जी दस्तावेजों के साथ आवेदन जमा किया है। पुलिस दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद चारसौबीसी का केस दर्ज करेगी।
भास्कर में खुलासे के बाद काउंसिल में विभागीय स्तर पर हलचल मची और शुक्रवार को प्रारंभिक तौर पर 56 फार्मासिस्टों की फाइल पुलिस थाने में जमा कर दी गई है। इसके साथ ही फार्मेसी काउंसिल से पुलिस को भेजी गई चिट्ठी में केवल उन लोगों के नाम है जिन्होंने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर रजिस्ट्रेशन करवाया है। काउंसिल में फर्जी दस्तावेजों से रजिस्ट्रेशन करने वाले कौन हैं?
काउंसिल में जमा होने वाले दस्तावेजों की जांच का जिम्मा किन पर था, उन्होंने कैसे सत्यापन के बिना ही रजिस्ट्रेशन कर दिया? पत्र में विभागीय मिलीभगत की जांच के संबंध में कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसे लेकर काउंसिल के सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
फार्मेसी काउंसिल में सदस्यों के माध्यम से की जा रही जांच में संकेत मिल रहे हैं कि यहां फर्जी दस्तावेजों से फार्मासिस्ट का रजिस्ट्रेशन कराने का खेल पिछले कई साल से चल रहा है। इसी वजह से काउंसिल के सदस्यों ने पिछले 20 साल के दौरान जितने भी रजिस्ट्रेशन हुए हैं उन सभी को जांच के घेरे में लिया है।
काउंसिल के सदस्यों का कहना है पिछले तीन साल के दौरान हुए रजिस्ट्रेशन का रिकार्ड खंगालने के बाद पिछले पांच साल का रिकार्ड चेक करवाया जाएगा।
घोटाला उजागर हुआ और चुनाव की चर्चा हो गई शुरू
फार्मेसी काउंसिल में फर्जीवाड़े की परतें यहां की चुनी हुई काउंसिल कर रही है। छह महीने से गुपचुप जांच के दौरान जैसे जैसे फर्जीवाड़ा उजागर होने लगा, यहां काउंसिल को भंग कर नए चुनाव की चर्चा शुरू हो गई। इसे लेकर भी सदस्य सवाल उठा रहे हैं।
मौजूदा काउंसिल का कार्यकाल सितंबर में खत्म हो गया है। काउंसिल की जांच समिति के सदस्य डा. राकेश गुप्ता ने कहा है जांच का दायरा बढ़ाना जरूरी है। इस वजह से 2000 के बाद से हर रजिस्ट्रेशन की जांच की जाएगी। इसके अलावा सरकारी मिलीभगत की भी जांच की जाएगी। बिना मिलीभगत के फर्जी दस्तावेजों से फार्मासिस्ट का रजिस्ट्रेशन कैसे हो सकता है। ऐसा होना पढ़े लिखे बच्चों के साथ अन्याय है।
जालसाजी फूटी तो बदला प्रभार
फार्मेसी काउंसिल के सदस्यों ने जब 6 महीने पहले जालसाजी की जांच शुरू की तो कुछ केस मिलने शुरू हुए। काउंसिल की आमसभा में जब इसकी जानकारी उजागर की गई तब खानापूर्ति के नाम पर दो बाबूओं का प्रभार बदलने की खानापूर्ति कर दी गई। दोनों अभी भी काउंसिल में हैं। विभागीय स्तर पर जांच के भी आदेश नहीं दिए गए हैं।