CJI डीवाई चंद्रचूड ने शुक्रवार को बिजली चोरी के एक मामले की सुनवाई की और दोषी की 18 साल की सजा को बदल दिया। सुनवाई करने के दौरान उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिए कोई केस छोटा नहीं होता। अगर हम नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकते तो यहां क्या करने बैठे हैं?
ऐसा कहकर CJI ने बिजली चोरी के मामले में 7 साल की सजा काट चुके शख्स की रिहाई का आदेश दिया। CJI की टिप्पणी को सरकार के बयान के जवाब के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने गुरुवार को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को छोटे मामलों की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। उन्हें संवैधानिक मामले सुनने चाहिए।
कोर्ट दखल देना बंद कर दे तो अन्याय होगा- CJI
इससे
पहले फैसला सुनाते हुए CJI ने कहा, जज आधी रात तक जागकर फाइलें पढ़ते हैं।
साधारण मामला भी नागरिक अधिकारों के लिहाज से अहम होता है। हम हर केस
समानता के आधार पर न्याय की दृष्टि से देखते हैं। अगर कोर्ट दखल करना बंद
कर दे तो घोर अन्याय होगा। जिनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता बाधित की गई हो,
उनकी आवाज कोई नहीं सुन पाएगा।
पढ़िए बिजली चोरी का मामला जिसमें अपराधी को 18 साल जेल की सजा मिली थी…
दरअसल,
उत्तर प्रदेश के हापुड़ के इकराम पर बिजली चोरी के 9 मुकदमे थे। लोअर कोर्ट
ने उसे सभी केस में 2-2 साल की सजा दी और कहा- सजा एक के बाद एक चलेगी।
ऐसे में उसे 18 साल की सजा हुई। इकराम को इलाहाबाद हाई कोर्ट से राहत नहीं
मिली तो उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
CJI ने कोर्ट में मौजूद वकील नागामुथु से केस में उनकी राय पूछी। वरिष्ठ वकील ने कहा, यह बिजली चोरी में एक तरह से उम्र कैद देने जैसा है। इस पर CJI ने कहा, बिजली चोरी के अपराध को हत्या के जुर्म में दी जाने वाली सजा तक नहीं बढ़ा सकते। दोषी सात साल सजा काट चुका है, उसे रिहा किया जाए।