नई दिल्ली: 31 दिसंबर 2022 की रात। दुनिया नए साल के स्वागत के उत्सवों के खुमार में डूबी हुई थी। उसी रात दिल्ली की एक युवा लड़की का कार के नीचे फंसा शरीर बड़ी बेरहमी और बेशर्मी से सड़कों पर घसीटा जा रहा था। सुल्तानपुरी से कंझावला के बीच की तकरीबन 13 किलोमीटर की दूरी काफी थी कार के नीचे फंसे जिस्म को रेशा-रेशा कर उधेड़ देने के लिए। वही हुआ भी। आखिर प्राण कब तक शरीर में अटके रहते। इतनी दर्दनाक स्थितियों में उन्हें तो शरीर से विलग होना ही था। अंजलि नाम की इस लड़की की मौत के बाद अब सवाल उठ रहा है कि ऐसा हुआ तो क्यों और कैसे? पुलिस इस मामले पर बहुत खुलकर कुछ कहने की स्थिति में क्यों नहीं है? पुलिस पर तुरंत कार्रवाई न करने के मीडिया में आरोप भी लग रहे हैं। इस बारे में नवभारत टाइम्स के सीनियर जर्नलिस्ट नरेश तनेजा ने बात की पूर्व महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी से…
किरण बेदी के मुताबिक, इसमें दो चीजें बिल्कुल स्पष्ट है। पहला, इतनी देर तक पुलिस कहां थी। दिल्ली पुलिस को इस सवाल का जवाब देने में काफी परेशानी हो रही होगी। पहले एक सिस्टम था। वह था पुलिस कंट्रोल रूम वैन्स का। यह एक्सक्लूसिव डिपार्टमेंट था। यह है अब भी। लेकिन, पहले यह बहुत स्ट्रॉन्ग था। सैकड़ों गाड़ियां इसके तहत तैनात थीं। इनकी पोजिशन चेंज भी की जाती थी। इसके लिए ट्रेनिंग होती थी और गाड़ियां अच्छी कंडिशन में रखी जाती थीं। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि रेस्पॉन्स टाइम कम रहे। ये फर्स्ट रेस्पॉन्डर का रोल प्ले करती आई हैं। पुलिस के लिए इसका जवाब देना मुश्किल है कि इस सिस्टम को आखिर किसने तोड़ा। अगर तोड़ा तो क्यों तोड़ा। बदला तो क्यों बदला। बताया गया है कि यही फोर्स थानों में दे दी गई। पुलिस स्टेशनों में गाड़ी फिक्स कर दी गईं। थानों में गाड़ी देने से ऐसा हो सकता है कि वो किसी और काम से चली जाएं। जब गाड़ी उपलब्ध नहीं होगी तो लाजिमी है कि रेस्पॉन्स टाइम पर असर पड़ेगा। किरण बेदी को बताया गया है कि इस प्रोग्राम को रीकंसिडर करने के बारे में विचार चल रहा है। वापस पुरानी व्यवस्था को बहाल किया जाएगा। उनके मुताबिक, जब इस तरह के महत्वपूर्ण सिस्टम को तोड़ा जाए तो इसके नतीजों को समझना जरूरी है। ये देखा जाना चाहिए था कि उसके पीछे क्या अर्जेंसी थी। इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं।