नई दिल्ली: ‘सांझा चूल्हा’ यानी मिट्टी का बड़ा चूल्हा काफी पॉपुलर नाम है। पंजाब के गांव में ये पुराने जमाने से इस्तेमाल होता आया है। गुरु नानक द्वारा शुरू किया गया ‘लंगर’ सामुदायिक रसोई के रूप में लोकप्रिय है। लेकिन अब इसी नाम को लेकर दिल्ली और फरीदाबाद के दो रेस्टोरेंट के बीच जंग छिड़ गई है। दोनों रेस्टोरेंट नाम को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं। दरअसल, दिल्ली के ‘सांझा चूल्हा’ रेस्टोरेंट के मालिक ने इस नाम को लेकर कॉपीराइट के तहत केस फाइल किया है। उनका दावा है कि उनके आउटलेट के नाम से फरीदाबाद में एक ढाबा चल रहा है।
दिल्ली आउटलेट के मालिक ने ठोका नाम पर दावा
दिल्ली के कैलाश कॉलोनी, डिफेंस कॉलोनी और चितरंजन पार्क में सांझा चूल्हा आउटलेट्स चल रहे हैं। इसके मालिक नंद किशोर हैं। उनके सीनियर वकील विवेक तन्खा ने कहा कि नंद किशोर साल 1986-87 से ‘सांझा चूल्हा’ के नाम से आउटलेट चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसी नाम का फरीदाबाद में एक रेस्टोरेंट चल रहा है, जो ग्राहकों के मन में भ्रम पैदा कर रहा है और हमारे रेस्टोरेंट में मुगलई और इंडियन फूड की लोकप्रियता को भुनाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने फरीदाबाद के इस रेस्टोरेंट के ‘सांझा चूल्हा’ नाम इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की मांग की।
दिल्ली के कैलाश कॉलोनी, डिफेंस कॉलोनी और चितरंजन पार्क में सांझा चूल्हा आउटलेट्स चल रहे हैं। इसके मालिक नंद किशोर हैं। उनके सीनियर वकील विवेक तन्खा ने कहा कि नंद किशोर साल 1986-87 से ‘सांझा चूल्हा’ के नाम से आउटलेट चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसी नाम का फरीदाबाद में एक रेस्टोरेंट चल रहा है, जो ग्राहकों के मन में भ्रम पैदा कर रहा है और हमारे रेस्टोरेंट में मुगलई और इंडियन फूड की लोकप्रियता को भुनाने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने फरीदाबाद के इस रेस्टोरेंट के ‘सांझा चूल्हा’ नाम इस्तेमाल करने पर रोक लगाने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने तन्खा से पूछा, ‘क्या आपका मुवक्किल ‘सांझा’ और ‘चूल्हा’ शब्द को रजिस्टर कर सकता है और इस पर कॉपीराइट का दावा कर सकता है? ‘सांझा चूल्हा’ शब्द आम बोलचाल के शब्द हैं। इसके अलावा जिस रेस्टोरेंट के खिलाफ केस किया गया है वो फरीदाबाद में है और इसलिए ग्राहकों को धोखा देने का कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता।’
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जे बी पारदीवाला की पीठ ने तन्खा से पूछा, ‘क्या आपका मुवक्किल ‘सांझा’ और ‘चूल्हा’ शब्द को रजिस्टर कर सकता है और इस पर कॉपीराइट का दावा कर सकता है? ‘सांझा चूल्हा’ शब्द आम बोलचाल के शब्द हैं। इसके अलावा जिस रेस्टोरेंट के खिलाफ केस किया गया है वो फरीदाबाद में है और इसलिए ग्राहकों को धोखा देने का कोई सवाल ही खड़ा नहीं होता।’
कमर्शियल कोर्ट ने खारिज की थी याचिका
पीठ ने कहा कि फरीदाबाद में चल रहा रेस्टोरेंट दो दशक से ज्यादा समय से कारोबार में है। इसके अलावा, कमर्शियल कोर्ट ने जब दोनों रेस्टोरेंट की सेल्स फिगर की तुलना की को पाया कि फरीदाबाद के रेस्टोरेंट की बिक्री साल 2020-21 में दिल्ली के रेस्टोरेंट की तुलना में 33 गुना ज्यादा थी। इस मामले में दिल्ली रेस्टोरेंट की याचिका को पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने फरीदाबाद आउटलेट को ‘सांझा चूल्हा’ नाम इस्तेमाल करने से रोकने से इनकार करने के कमर्शियल कोर्ट के अंतरिम फैसले को बरकरार रखा था।
पीठ ने कहा कि फरीदाबाद में चल रहा रेस्टोरेंट दो दशक से ज्यादा समय से कारोबार में है। इसके अलावा, कमर्शियल कोर्ट ने जब दोनों रेस्टोरेंट की सेल्स फिगर की तुलना की को पाया कि फरीदाबाद के रेस्टोरेंट की बिक्री साल 2020-21 में दिल्ली के रेस्टोरेंट की तुलना में 33 गुना ज्यादा थी। इस मामले में दिल्ली रेस्टोरेंट की याचिका को पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने फरीदाबाद आउटलेट को ‘सांझा चूल्हा’ नाम इस्तेमाल करने से रोकने से इनकार करने के कमर्शियल कोर्ट के अंतरिम फैसले को बरकरार रखा था।
सांझा चूल्हा नाम से हैं सैकड़ों आउटलेट
इंटरनेट पर सर्च करने से पता चलता है कि ‘सांझा चूल्हा’ नाम से दर्जनों रेस्टोरेंट चल रहे हैं। ये देशभर के लगभग हर राज्य और शहर में हैं। यहां तंदूरी चिकन, टिक्का, कबाब, बटर चिकन और अन्य मुगलई और इंडियन फूड परोसे जा रहे हैं। कमर्शियल कोर्ट के सामने फरीदाबाद रेस्टोरेंट ने तर्क दिया था कि ‘सांझा चूल्हा’ शब्द दिल्ली के किसी रेस्टोरेंट से नहीं लिया गया। ये पंजाबी शब्द है जिसका अर्थ सामुदायिक मिट्टी का चूल्हा है। उन्होंने ये भा कहा कि इस शब्द के नाम से 1990-91 में दूरदर्शन पर एक धारावाहिक भी आता था।
कमर्शियल कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि दिल्ली रेस्टोरेंट के रजिस्टर ट्रेडमार्क एक डिवाइस मार्क है। ये ‘सांझा चूल्हा’ शब्द का इस्तेमाल करने का विशेष अधिकार नहीं देते हैं, जो अब रेस्टोरेंट से जुड़ा हुआ है। अदालत ने शुरुआती सुनवाई में पाया कि फरीदाबाद के रेस्टोरेंट ने दिल्ली वाले रेस्टोरेंट के ट्रेडमार्क का उल्लंघन नहीं किया था। कोर्ट ने अपने आदेश में याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद कमर्शियल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि एक डिवाइस मार्क के रूप में आम बोलचाल में शामिल कई शब्द शामिल हैं, जरूरी नहीं है कि इन शब्दों के इस्तेमाल का विशेष अधिकार मिल जाए।