नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा है कि सरोगेसी कानून में यह प्रावधान किया गया है कि किराये पर कोख देने वाली महिला यानी जो सरोगेट मदर है वह इस प्रक्रिया के तहत पैदा होने वाले बच्चे से बॉयोलॉजिकल तौर पर जुड़ी नहीं है। केंद्र सरकार ने इस कानून के बारे में स्पष्टीकरण में बताया कि जो बच्चा सरोगेसी से पैदा होता है वह बॉयोलॉजिकल तौर पर उसे पाने वाले कपल या इच्छुक महिला जो विधवा या तलाकशुदा हो उससे जुड़ा होना चाहिए।
सरोगेसी रेग्युलेशन एक्ट 2021 और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी रेग्युलेशन एक्ट 2021 के कुछ प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि यह प्रावधान निजता के अधिकार के खिलाफ है, साथ ही महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के खिलाफ है। भारत में आधिकारिक तौर पर सरोगेसी को रेग्युलेट करने के लिए नया कानून बनाया गया है।
भारत सरकार ने 25 जनवरी को सरोगेसी (रेग्युलेशन) एक्ट 2021 को नोटिफाई कर दिया। एक्ट का उद्देश्य यह है कि कि भारत में कमर्शल सरोगेसी को रोका जा सके। सरोगेसी मेडिकल प्रोसेस है जिसके तहत वैसे कपल जिनकी संतान नहीं है और बच्चे की इच्छा रखते हैं उनके लिए किराए पर एक कोख की व्यवस्था है जो महिला यह कोख उपलब्ध कराती है उसे सरोगेट मदर कहा जाता है। जो संतान चाहने वाले कपल हैं उनके शुक्राणु और अंडाणु को एक लैब में मेडिकल पद्धति से क्रॉस कराया जाता है और जब क्रॉस के बाद भ्रूण उत्पन्न होता है तो उसे मेडिकल पद्धति से वैसी महिला के गर्भ में डाला जाता है जो सरोगेट मदर बनना चाहती हैं। बच्चा कपल का ही होता है क्योंकि उनके शुक्राणु और अंडाणु से बच्चा बना है लेकिन वह किसी और महिला के कोख में पलता है। 9 महीने बाद जब बच्चा पैदा होता है तो कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक उस बच्चे को बॉयोलॉजिकल पैरेंट्स यानी उस कपल को दे दिया जाता है जिनके शुक्राणु और अंडाणु से बच्चा हुआ है।
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