नई दिल्ली: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता चली गई है। ‘मोदी सरनेम’ के खिलाफ दिए गए विवादित बयान को लेकर दायर मानहानि मामले में गुजरात की एक अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद लोकसभा सचिवालय ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गांधी परिवार के एक और सदस्य को भी अदालत ने दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। ये वक्त था साल 1979 का जब अदालत ने संजय गांधी को दो साल की जेल की सजा सुनाई थी। उनपर फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ का प्रिंट जलाने का आरोप लगा था।
बॉलीवुड फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे विवादित फिल्मों में से एक मानी जाती है। इस फिल्म के रिलीज से पहले ही इसने इंदिरा गांधी सरकार को हिला कर रख दिया था। कहा जाता है ये फिल्म इमरजेंसी पर आधारित थी। ये फिल्म अमृत नाहटा ने 1974 में बनाई थी, लेकिन 1975 में इस पर बैन लगा दिया और इसके प्रिंट सरकार ने जब्त कर लिए।
फेसबुक पर ‘कुछ हम कहें सिनेमा की’ नाम के ब्लॉग ने इसकी पूरी कहानी बताई है। ब्लॉग में बताया गया है कि आपातकाल के दौरान देश को एक बड़ी जेल में तब्दील कर दिया गया। इस दौरान देश की सत्ता पर 27 साल के संजय गांधी और उनके कुछ दोस्तों का आधिपत्य था। इस वक्त भारतीय सिनेमा ने बहुत कुछ झेला। इमरजेंसी में सिनेमा पर लगी बंदिशों के बारे में ‘किस्सा कुर्सी का’फिल्म में दर्शाया गया।
फिल्म का निर्माण कांग्रेस के बाड़मेर से सांसद अमृत नाहटा ने दो बार किया था। पहली बार,उनकी फिल्म किस्सा कुर्सी का सेंसर के लिए 1974 में पेश की गई। इस फिल्म की कहानी एक काल्पनिक अंधेर नगरी के भ्रष्ट शासक और उसके परिवार की थी। 1975 की किस्सा कुर्सी का की कहानी और पत्र इंदिरा गांधी और संजय गांधी की ओर इशारा करते थे। इस प्रतीकात्मक फिल्म में शबाना आजमी ने गूंगी जनता की भूमिका की थी। रेहाना सुल्तान ने इंदिरा गांधी का रोल प्ले किया था। इंदिरा गांधी के इर्द गिर्द के कुछ भ्रष्ट चरित्र भी इस फिल्म में दिखाए गए थे।
फिल्म को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। नतीजे के तौर पर यह फिल्म सेंसर में फंस गई। सेंसर की क्या मजाल कि वह इंदिरा गांधी के खिलाफ कोई फिल्म की अनुमति देता। फिल्म में 51 कट लगाने के आदेश दिए गए। इसी दौरान देश में आपातकाल लग गया। संजय गांधी ने तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्या चरण शुक्ला को आदेश देकर ‘किस्सा कुर्सी का’ के प्रिंट सेंसर ऑफिस से लदवा कर गुडगांव स्थित अपनी मारुती फैक्टरी पर मंगवा लिए। किस्सा कुर्सी का में इस फैक्ट्री का जिक्र हुआ था। मारुती के परिसर में इस फिल्म के प्रिंट जला दिए गए।
लेकिन ‘किस्सा कुर्सी का’ का किस्सा अभी खत्म नहीं हुआ था। आपातकाल हटा, आम चुनाव हुए, इंदिरा गांधी और संजय गांधी हार गए। जनता पार्टी की सरकार बनी। अमृत नाहटा जनता पार्टी के टिकेट पर एक बार फिर सांसद बने। उन्होंने एक बार फिर किस्सा कुर्सी का का निर्माण किया। लेकिन, अब फिल्म काफी बदली हुई थी। इंदिरा गांधी नदारद थी। अब एक काल्पनिक प्रधानमंत्री मनोहर सिंह आ गए थे। फिल्म रिलीज हुई। लेकिन ये फ्लॉप हो गई।
भले ही फिल्म फ्लॉप हो गई, लेकिन इसके ऑरिजनल प्रिंट को जलाना का आरोप संजय गांधी और तत्कालीन प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ला पर लगे। ये मामला दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में चला। अदालत ने संजय गांधी को फिल्म के प्रिंट नष्ट करने का दोषी माना। संजय पर गवाहों पर दबाव बनाने का भी आरोप लगा। इसके बाद अदालत ने 1979 में संजय गांधी और शुक्ला दोनों को दो साल और एक महीने की सजा सुनाई। ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, जहां अदालत ने संजय गांधी की जमानत याचिका रद्द करके उन्हें एक महीने के लिए दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया।