नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि आरोपी तब डिफॉल्ट बेल का दावा नहीं कर सकता जब छानबीन के लिए बढ़ाए गए समयसीमा का विरोध न किया हो या फिर उसकी उपस्थिति में समयसीमा बढ़ाई गई हो। दरअसल सीआरपीसी के तहत प्रावधान है कि गिरफ्तारी के तय समय सीमा के भीतर अगर चार्जशीट दाखिल न किया जाए तो आरोपी को जमानत दे दी जाती है।
कानूनी जानकार व सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता बताते हैं कि चाहे मामला बेहद गंभीर ही क्यों न हो लेकिन समय पर अगर पुलिस चार्जशीट दाखिल न करे तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है। मसलन ऐसा मामला जिसमें 10 साल या उससे ज्यादा सजा का प्रावधान हो वैसे मामले में अगर गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना जरूरी है। अगर इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो आरोपी को सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत जमानत दिए जाने का प्रावधान है। वहीं 10 साल कैद की सजा से कम वाले मामले में 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करनी होती है और नहीं करने पर जमानत का प्रावधान है।
गुजरात का यह मामला है। आरोपी कमर घनी उस्मानी को 29 जनवरी 2022 को गिरफ्तार किया गया था। आरोपी की गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल की जानी थी। लेकिन जांच अधिकारी ने छानबीन के लिए अदालत से और वक्त की मांग की। इस मामले में छानबीन पूरी करने के लिए कोर्ट ने 22 अप्रैल तक का वक्त दे दिया। इस बारे में आरोपी को अगले दिन 23 अप्रैल को जांच अधिकारी ने सूचित कर दिया। इसके बाद दोबारा जांच अधिकारी ने छानबीन के लिए वक्त मांगा और इस दौरान आरोपी मौजूद था और कोर्ट ने 22 मई तक का वक्त दे दिया और इस दौरान जांच अधिकारी ने छानबीन पूरी कर चार्जशीट दाखिल कर दी। आरोपी ने 10 मई को जमानत की अर्जी दाखिल की और कहा कि उसे सीआरपीसी की धारा- 167 (2) के तहत जमानत दी जाए क्योंकि गिरफ्तारी के 90 दिनों के दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं हुई है और जब जांच अधिकारी ने छानबीन की समय सीमा पहली बार बढ़ाने के आवेदन दिया था तब उसे कोर्ट में पेश नहीं किया गया था। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद गुजरात हाई कोर्ट से भी अर्जी खारिज हो गई और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
सुप्रीम कोर्ट के सामने यह सवाल था कि क्या सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत आरोपी को जमानत हो सकती है? क्योंकि जब छानबीन की अवधि बढ़ाने के लिए जब जांच अधिकारी ने कोर्ट के सामने दलील दी तब आरोपी मौजूद नहीं था। आरोपी के वकील महमूद पराचा ने कहा कि छानबीन के लिए जब वक्त पहली बार दिया गया तो आरोपी मौजूद नहीं था। जबकि नियम केतहत उसकी मौजूदगी जरूरी था। वहीं गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दे रखी है कि डिफॉल्ट बेल सीआरपीसी की धारा-167 (2) के तहत तभी हो सकता है जब छानबीन के समय अवधि बढ़ाने का आवेदन खारिज हो गया हो या फिर समय पर चार्जशीट दाखिल नहीं हुई हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा-167 (2) में आरोपी डिफॉल्ट बेल का दावा तब नहीं कर सकता है जब अगर पहली बार छानबीन के लिए समय सीमा बढ़ाने की दलील का विरोध न किया हो या फिर दूसरी बार समयसीमा बढ़ाने के लिए दी गई दलील के दौरान खुद मौजूद हो। दूसरी बार जो समय मांगा गया उस अवधि में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है ऐसे में आरोपी डिफॉल्ट बेल का दावा नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उक्त केस एक विशेष स्थिति वाला केस है। दो बार छानबीन के लिए अदालत ने समयसीमा बढ़ाई। पहली बार जब बढ़ाई गई तो आरोपी ने उसे चुनौती नहीं दी और दूसरी बार जब बढ़ाई गई तो खुद मौजूद था। दूसरी बार जो समयसीमा छानबीन के लिए दी गई उस दौरान चार्जशीट दाखिल कर दी गई। ऐस ेमें आरोपी जमानत का दावा नहीं कर सकता है और आरोपी की अर्जी खारिज कर दी।