नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के जजों के विश्वास को बहाल करने के लिए एक बड़ा कदम उठाते हुए, शुक्रवार को हाई कोर्ट के जजों द्वारा निचली अदालत से स्पष्टीकरण मांगने की निंदा की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के कार्य निचली अदालतों की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं। इसके साथ ही मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें निचली अदालत के जज से स्पष्टीकरण मांगा गया था कि एक आरोपी को जमानत क्यों दी गयी।
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और एक आपराधिक मामले में आरोपी तोताराम को जमानत दे दी। हाई कोर्ट ने कहा कि यह जमानत देने के लिए एक उपयुक्त मामला है क्योंकि कथित अपराधों में अधिकतम सजा के रूप में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान नहीं है और इसके अलावा, अन्य आरोपियों को पहले भी ऐसी ही राहत दी जा चुकी है।
चीफ जस्टिस ने कहा, ‘शुरुआती तौर पर हाई कोर्ट द्वारा संबंधित जिला अदालत के जज से स्पष्टीकरण मांगने का कोई औचित्य नहीं था। इस तरह के आदेश जमानत आवेदनों पर विचार करने में जिला न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं।’
क्या था मामला?
आरोपी तोताराम भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत आपराधिक धमकी और महिला की शील भंग करने सहित अन्य अपराधों के लिए मुकदमे का सामना कर रहा है। निचली अदालत ने आरोपी को जमानत दे दी थी और हाई कोर्ट ने फैसले को पलट दिया था। साथ ही उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के न्यायाधीश से इस तरह के आदेश को पारित करने के लिए स्पष्टीकरण भी मांगा था।