इस्लामाबाद : अमेरिका ने 9/11 के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ को धमकी दी थी कि अगर उन्होंने अफगानिस्तान के खिलाफ उसके (अमेरिका के) युद्ध में सहयोग नहीं किया तो उनके देश (पाकिस्तान) को बम हमले से ‘पाषाण युग’ में भेज दिया जाएगा। मुशर्रफ ने अपने संस्मरण ‘इन द लाइन ऑफ फायर’ में लिखा था कि सख्त बातचीत वाले अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री रिचर्ड आर्मिटेज ने पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) प्रमुख के साथ बातचीत में यह धमकी दी थी। आईएसआई प्रमुख 11 सितम्बर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों के वक्त वाशिंगटन दौरे पर थे।
‘अमेरिका का साथ नहीं देते तो मिट जाते’
मुशर्रफ ने अफगानिस्तान में आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाले युद्ध में शामिल होने के अपने कदम का बचाव करते हुए कहा कि उनका ‘निर्णय अपने लोगों की भलाई के लिए और अपने देश के सर्वोत्तम हित पर आधारित था।’ उन्होंने किताब में लिखा, ‘यदि हम अमेरिका का समर्थन नहीं करते तो हिंसक और क्रोधित प्रतिक्रियाओं का सामना करना होता। इस प्रकार सवाल यह था, यदि हम उनके साथ नहीं जुड़ते हैं, तो क्या हम उनके हमले का सामना कर सकते हैं? जवाब था नहीं, हम नहीं कर सकते…।’
‘अमेरिका ने पाकिस्तान से मांगी थी मदद’
उन्होंने कहा, हालांकि, अमेरिका का समर्थन करने के कई फायदे हैं। आर्मिटेज की ओर से इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर बाद में विवाद खड़ा हो गया था, लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया कि पाकिस्तान को अमेरिका के युद्ध प्रयासों में मदद के लिए कहा गया था। जनरल मुशर्रफ ने अपनी किताब में लिखा है कि 13 सितंबर, 2001 को पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत वेंडी चेम्बरलेन ने उन्हें सात मांगों का एक पत्र दिया था, जिसमें ‘ऊपर से उड़ान भरने’ और ‘विमान उतारने’ के अधिकार शामिल थे।
तालिबान सरकार से अलग हो गया था पाकिस्तान
मुशर्रफ ने कहा कि उन्होंने अमेरिकी सेना को सीमा चौकियों और ठिकानों को सौंपने जैसी अमेरिका की कुछ मांगों का विरोध किया था। उन्होंने लिखा, ‘हम अपनी सामरिक संपत्ति को खतरे में डाले बिना अमेरिका को अपने क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरने और विमान उतारने के अधिकारों की अनुमति कैसे दे सकते थे? मैंने केवल एक संकीर्ण उड़ान गलियारे की पेशकश की, जो किसी भी संवेदनशील क्षेत्र से दूर था।’ पाकिस्तान ने काबुल में तालिबान सरकार को अपना समर्थन छोड़ दिया और अमेरिका को पाकिस्तान के ऊपर से उड़ान भरने की अनुमति दी थी।