नई दिल्ली : वो वर्ष 1964 के अक्टूबर महीने का 16वां दिन था, जब चीन दुनिया का पांचवां परमाणु संपन्न देश बन गया। दो वर्ष पहले 1962 में ही उसने भारत को युद्ध में परास्त किया था। युद्ध में हार के बाद चीन की बढ़ती ताकत देखकर भारत की बेचैनी बढ़ गई। तत्कालीन भारतीय जनसंघ के राज्यसभा सदस्य अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, ‘परमाणु बम का उत्तर परमाणु बम ही हो सकता है, कुछ और नहीं।’ वो अटल थे, इसलिए अपनी समझ और अपने निश्चय पर अटल रहे। फिर वो वक्त भी आ गया जब अपने दृढ़निश्चय को मूर्त रूप देना था। अटल बिहारी वाजपेयी 1998 में दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार के प्रधानमंत्री बने। 1996 में पहली बार सरकार बनने के बाद बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण मात्र 13 दिन में ही प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा था। इस बार ऐसा नहीं हुआ। एनडीए ने बहुमत साबित कर दिया और अटल की सरकार चल पड़ी।
सपने पर अटल रहे वाजपेयी को मिला मौका
अटल सत्ता में सुदृढ़ होते ही परमाणु परीक्षण की दीर्घकालिक आकांक्षा को सच साबित करने में जुट गए। ऐसा नहीं था कि भारत ने तब तक कोई परमाणु परीक्षण नहीं किया था। चीन के परमाणु परीक्षण करने के ठीक 10वें साल 1974 में भारत ने राजस्थान के पोखरण में धमाका कर दिया था। लेकिन जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के कोड नेम से भारत का पहला परमाणु परीक्षण किया, तब की परिस्थितियां बिल्कुल जुदा थीं। उस वक्त हमारे देश के इरादे और हमारी क्षमता से दुनिया बखूबी परिचित थी। छिपने-छिपाने का कोई दबाव नहीं। अमेरिका के पास तब सैटलाइट भी नहीं थे जो पोखरण में चल रही गतिविधियों की टोह ले सके। अटल बिहार वाजपेयी के सामने ऑपरेशन शक्ति 98 को अंजाम तक पहुंचाने में बड़ी चुनौतियां थीं।
अमेरिकी अखबार की खबर पर चौकन्ना हुआ भारत
अमेरिकी सैटलाइट पोखरण के चक्कर लगा रहे थे। वहां के अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने यह खबर दे दी और अटल सरकार सतर्क हो गई। 1995-96 में ही जब भारत ने दूसरा परमाणु परीक्षण करने की सोची तो उसकी खबर दुनिया को लीक हो गई। नतीजतन अमेरिका ने खूब पैंतरे दिखाए और भारत ने कदम पीछे खींच लिए। अटल ने उस चूक से अच्छी सबक ले रखी थी। उन्होंने पोखरण 2 के कार्यक्रमों को बिल्कुल गुप्त रखने का फैसला किया। अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) भी बिल्कुल चौकन्ना थी। उसे धोखा देने के लिए भारत की सरकार और परमाणु कार्यक्रम से जुटे वैज्ञानिक समुदाय ने काफी गूढ़ योजना पर काम करना शुरू कर दिया। कोडिंग का सहारा लिया गया।
वैज्ञानिकों को दिया सैनिकों का वेष और…
वैज्ञानिक अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के तत्कालीन प्रमुख एपीजे अब्दुल कलाम को ‘मेजर जनरल पृथ्वी राज’ और राजगोपाल चिदंबरम को ‘नटराज’ नाम दिया गया। कलाम को मेजर का नाम इसलिए दिया गया क्योंकि डीआरडीओ और भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के वैज्ञानिकों को पोखरण तक सैनिकों के वेष में पहुंचाया गया था। 11 मई, 1998 को पोखरण में काम शुरू हुआ। अमेरिकी सैटलाइट पोखरण की गतिविधियों को भांप न लें, इसके लिए रातभर काम होता और पौ फटने से पहले जमीन पर सब कुछ पहले जैसा। यहां तक कि रेगिस्तान में बालू की छोटी-छोटी टीलों को ऐसा रूप दिया जाता, मानो वो हवा के झोकों से बने हों। कहीं कुछ अननैचरल नहीं, सब कुछ सामान्य।
अमेरिकी सैटलाइट को यूं दिया चकमे पर चकमा
अरबों की कीमत के चार अमेरिकी सैटलाइट पोखरण पर मंडराते रहे। उन ‘बिलियन डॉलर स्पाइज’ को धोखा देने की जिम्मेदारी भारतीय सेना के 58वें रेजिमेंट के इंजीनियरों को दी गई। इनका काम आसान नहीं था क्योंकि सैटलाइट्स इतने आधुनिक थे कि वो पोखरण के छोटे-छोटे गड्ढों की तस्वीरें भी ले लेते। इसलिए सारा कार्यक्रम सुरंग में रखा गया। 13 मई, 1998 को वो वक्त आ गया जब परीक्षण किया जाना था। भारत ने एक के बाद एक, कुल तीन धमाके किए। फिर वो वक्त आया जब दुनिया को बताना था कि हमने कर दिखाया। स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐलान किया, ‘हमने 3.45 बजे पोखरण में तीन अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट किए।’ अमेरिका दंग रह गया।
परमाणु कार्यक्रम पर अटल कैबिनेट भी अंधेरे में
अमेरिका को मात यूं ही नहीं मिली। अटल सरकार ने पूरे कार्यक्रम को इतना गुप्त रखा था कि लीक होने का चांस न के बराबर रह गया। यहां तक तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस को भी अंधेरे में रखा गया। पीएम वाजपेयी की कलाम और बार्क के तत्कालीन प्रमुख चिदंबरम के साथ मीटिंग के बारे में फर्नांडिस को झूठ बोल दिया गया। जब तय हो गया कि भारत अपना दूसरा परमाणु परीक्षण करेगा, तब लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, प्रमोद महाजन, जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा को इसकी जानकारी दी गई। बस यही गिनती के लोग, बाकी कैबिनेट बिल्कुल अनजान।
भारत की सफलता पर खीझ गया अमेरिका
अमेरिकी सिनेटर रिचर्ड शेल्बी (Richard Shelby) ने सीआईए की असफलता पर खुलकर खीझ निकाली। उन्होंने कहा कि सीआईए के इतिहास में यह बड़ी असफलता है। शेल्बी ने कहा, ‘भारत परमाणु परीक्षण कर रहा है, इसकी भनक तक नहीं लग पाना पिछले करीब 10 वर्षों में सीआई की सबसे बड़ी नाकामयाबी है।’ अमेरिका की खीझ यहीं शांत नहीं हुई। उसने प्रतिबंधों की घोषणा कर दी। हालांकि, भारत ने कहा कि उसका यह परमाणु परीक्षण किसी के लिए खतरा नहीं बल्कि शांति सुनिश्चित करने की दिशा में ही आगे का कदम है। डीआरडीओ चीफ एपीजे अब्दुल कलाम बोले, ‘हमने परमाणु परीक्षण अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किया है।’ उन्होंने दुनिया को भारतीय इतिहास और परंपरा की याद दिलाई और कहा- हमने पिछले 2,500 वर्षों में किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया, दूसरे के इलाके में अतिक्रमण नहीं किया।
दूरदर्शन पर अटल का वो संबोधन
बुद्ध पूर्णिमा को हुए पहले परमाणु परीक्षण को इंदिरा गांधी ने शांति सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया जरूरी कदम बताया था। तब पश्चिम ने भारत पर भरोसा किया और अमेरिका समेत किसी विदेशी ताकत ने हम पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया। इस बार अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को थोड़े अलग अंदाज में संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत कभी, किसी के खिलाफ पहले परमाणु शक्ति का उपयोग नहीं करेगा। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नैशनल टेलिवीजन दूरदर्शन पर कहा, ‘भारत पहले अपने परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं करेगा, किसी के खिलाफ नहीं और जिन देशों के पास परमाणु हथियार नहीं हैं, उनके खिलाफ तो कभी नहीं।’ वाजपेयी ने कहा- आज 13 मई, 1998 को भारत पूर्णरूपेण परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बन गया है।