नई दिल्ली : सेम सेक्स मैरिज यानी समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हो रही है। केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पक्षकार बनाने की मांग की है। इसे लेकर केंद्र ने एक फ्रेश हलफनामा भी दाखिल किया है। वहीं याचिकाकर्ताओं की तरफ से सीनियर ऐडवोकेट मुकुल रोहतगी ने खजुराहों के मंदिर की मूर्तियों का हवाला देते हुए कहा कि समलैंगिकता हजारों वर्ष से मौजूद है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, एस आर भट, हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने सुबह 10 बजकर 45 मिनट पर दूसरे दिन की सुनवाई शुरू की। आइए जानते हैं दूसरे दिन के सुनवाई की अहम बातें।
- केंद्र का हलफनामा, राज्यों को भी बनाया जाए पक्षकार: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की है कि राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में पक्षकार बनाया जाए। केंद्र ने कहा कि मामला विधायिका के अधिकार क्षेत्र से जुड़ा हुआ है लिहाजा सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की राय जरूरी है। केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि उसने 18 अप्रैल को राज्यों को खत भेजकर समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं में उठाए गए मौलिक मुद्दे पर उनसे टिप्पणियां मांगी हैं।
- रोहतगी की दलील- सेम सेक्स हजारों साल से, खुजराहो गवाह: सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता के लिए दलील देते हुए याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने खजुराहों की मूर्तियों का हवाला दिया। समलैंगिकता को शहरी श्रेष्ठ वर्ग की सोच (Urban Elitism) बताने वाले तर्क की काट में रोहतगी ने अपने मुवक्किल की कहानी बताई। उन्होंने कहा कि वह जिस याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं वह एक छोटे से शहर का है। उसके माता-पिता ने भी उसके रिश्ते को स्वीकार किया। यहां तक कि लड़के के माता-पिता ने उनका रिसेप्शन भी रखा। ये एक छोटे से शहर की बात है और पैरेंट्स पिछली पीढ़ी के हैं। इस दौरान उन्होंने खजुराहो का उदाहरण भी दिया। रोहतगी ने कहा, ‘आप खजुराहो जाते हैं और वहां जो काम-क्रीड़ा को दिखाया गया है वह हजारों वर्ष से है। इस पर यूरोप का कोई प्रभाव नहीं है…दरअसल यह तबसे है जबसे समाज अस्तित्व में आया…ब्रिटिश प्रभाव सिर्फ तब आया जब उन्होंने कानून बनाया और विक्टोरियन मॉडल को थोपा।’
- नेपाली सुप्रीम कोर्ट के पिछले महीने दिए फैसले का जिक्र: मुकुल रोहतगी ने नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया और ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देते हुए कानून मंत्रालय को एक समान विवाह कानून बनाने या फिर मौजूदा कानूनों में बदलाव को कहा है। केंद्र की ‘समलैंगिकता अर्बन एटिलिस्ट यानी शहरी श्रेष्ठ वर्ग की संकल्पना है’ दलील के जवाब में उन्होंने ये तर्क रखा। नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को समलैंगिकता पर ऐतिहासिक फैसला दिया था। मामला एक गे कपल से जुड़ा था जिसमें एक नेपाली नागरिक और दूसरा जर्मनी का नागरिक है। दोनों ने जर्मनी में शादी की थी और उसका रजिस्ट्रेशन कराया था। लेकिन नेपाल ने जर्मन नागरिक को इस आधार पर वीजा नहीं दिया कि उसके यहां समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं है। इसके खिलाफ गे कपल नेपाली सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।