साहिबगंज। जिले के मदरसों में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। कहीं नियुक्त शिक्षक की दो-दो जन्मतिथि है तो कहीं नियुक्त शिक्षक का एक ही सत्र का दो-दो शैक्षिक प्रमाणपत्र। 18 साल से कम में ही शिक्षक पद पर बहाली का मामला सामने आ चुका है।
शिकायतों की जांच में डीईओ व उनके कार्यालय कर्मियों के पसीने छूट रहे हैं। ताजा मामला मदरसा गौसिया मिल्लतिया करबला नारायणपुर (राजमहल) से जुड़ा है। 31 जनवरी 2022 को वहां के प्रभारी प्रधान मौलवी मजीरूद्दीन रिटायर्ड हो गए।
तत्कालीन डीईओ ने वहां का प्रभार वहां कार्यरत महबूब आलम को सौंपने का निर्देश दिया। इसके बाद उसी मदरसा में कार्यरत रियाजुद्दीन अंसारी ने क्षेत्रीय शिक्षा संयुक्त निदेशक से महबूब आलम के शैक्षिक प्रमाण पत्र व जन्मतिथि में गड़बड़ी की शिकायत की।
जांच के दौरान यह बात सामने आया कि मो. महबूब आलम ने बीएसके कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली थी। वहां उनकी जन्मतिथि एक फरवरी 1987 है, जबकि मदरसा इस्लामिया अब्दुल्लापुर से हासिल फोकानिया से फाजिल तक की डिग्री में उनकी जन्मतिथि छह अप्रैल 1985 दर्ज है।
डीईओ ने स्पष्टीकरण मांगा तो उन्होंने बताया कि बीएसके कॉलेज में गलती से एक फरवरी 1987 जन्मतिथि लिखा गया था। इस कारण उनके अभिभावक ने शपथ पत्र भी दिया था।
जांच में नहीं मिली थी कोई गड़बड़ी
उन्होंने कहा कि कई बार उनके प्रमाणपत्र की जांच हो चुकी है, लेकिन कोई गड़बड़ी नहीं मिली। यहां तक कि झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल कोर्ट ने भी उन्हें सही ठहराया था।
इससे पहले मदरसा जामेउल उलूम मस्तापुर का भी मामला सामने आया था। इसमें नियुक्त शिक्षक हाफिज मोहम्मद शरीफ की नियुक्ति 18 साल से पहले ही होने की बात सामने आयी थी।
उसी मदरसा के मोशर्रफ अंसारी द्वारा एक ही सत्र में दो डिग्री लेने की बात सामने आयी थी। इसके बाद दोनों के वेतन भुगतान पर भी रोक लगा दी गई थी। इसके अलावा कई अन्य शिक्षकों के वेतन भुगतान पर भी रोक लगाई जा चुकी है।
मदरसों में क्यों होती है गड़बड़ी
मदरसों का दैनिक संचालन अध्यक्ष, सचिव व प्रधान मौलवी करते हैं। इस संचालन समिति का गठन छह सदस्यीय कमेटी करती है, जिसमें सिविल एसडीओ, विधायक प्रतिनिधि, जैक प्रतिनिधि, डीईओ, शिक्षाविद् व मदरसा के सचिव होते हैं।
सचिव मदरसा के लिए जमीन देने वाले या उसके विकास के लिए 25 हजार रुपये नकद जमा करने वाले होते हैं। अगर एक से अधिक दानदाता होते हैं तो कमेटी सर्वसम्मति से उनमें से एक का चयन करती है।
मदरसों में शिक्षकों की बहाली प्रबंध समिति करती है। यहीं से भाई-भतीजावाद शुरू होता है। जिले में संचालित अधिकतर मदरसों में प्रधान मौलवी के रिश्तेदार ही शिक्षक पद पर कार्यरत हैं। बाहरी व्यक्ति को बहाली के लिए पांच से 10 लाख रुपये तक का भुगतान करना होता है।
42 मदरसा, 160 पद
जिले में 42 मदरसे संचालित हैं। इनमें शिक्षकों के 160 पद स्वीकृत हैं। इसके विरुद्ध 105 शिक्षक कार्यरत हैं। जिले के अब्दुल्लापुर में स्थित एकमात्र मदरसा में फाजिल यानी एमए तक की पढ़ाई होती है।
बाकी मदरसों में मैट्रिक व इंटर तक की पढ़ाई होती है। मदरसों में नियुक्त शिक्षकों की अनुपस्थिति विवरणी प्रधान मौलवी व सचिव के हस्ताक्षर से डीईओ कार्यालय को भेजा जाता है जहां से वेतन भुगतान किया जाता है।
जैक करता है मदरसों का संचालन
बता दें कि फिलहाल राज्य में मदरसों का संचालन जैक करता है। जैक सामान्य रूप से इंटर तक के कॉलेजों को देखता है। परीक्षा लेता है और डिग्री देता है, लेकिन मदरसा के मामले में वह एमए के समकक्ष डिग्री देता है। बिहार से अलग होने के बाद आज तक मदरसा बोर्ड का गठन नहीं किया जा सका है।