छपरा। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर मंगलवार को अक्षय नवमी मनाई जाएगी। इसे आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक माह को भगवान विष्णु के प्रिय मास के रूप में जाना जाता है। इस माह गंगा स्नान करने के साथ आंवला के पेड़ की पूजा-अर्चना और आंवला का सेवन करने का विधान है।
कार्तिक शुक्ल नवमी यानी अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु के साथ आंवला के पेड़ की पूजा करने का विधान है। शास्त्रों के हवाले से डॉ. योगेंद पांडेय ने बताया कि अक्षय नवमी के दिन स्नान, पूजा, तर्पण, दान-पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। अक्षय नवमी को धात्री नवमी और कुष्मांडा नवमी के रूप में भी जाना जाता है।
उन्होंने बताया कि इस दिन परिवार के बड़े-बुजुर्ग के साथ सभी लोग विधि-विधान के साथ आंवला वृक्ष की पूजा करने के साथ परिक्रमा करने का विधान है। ऐसा करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
उन्होंने बताया, इस दिन महिलाएं आंवला पेड़ की अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा कर पीला धागा लपेटकर परिक्रमा करती हैं। अक्षय नवमी के दिन अपने घर आंवला का पौधे लगाना पुण्य का कार्य माना जाता है। घर के बाग-बगीचे में आंवला के पौधे लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। घर के उत्तर दिशा में आवला लगाना शुभ माना जाता है। पुरोहित ने बताया कि अक्षय नवमी पर ग्रह-गोचरों का भी शुभ संयोग बन रहा है।
माता लक्ष्मी ने की थी सर्वप्रथम आंवला की पूजा
आचार्य अनित शुक्ल ने बताया कि आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। पौराणिक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर आंवले के वृक्ष की पूजा की थी।
मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न दान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। शास्त्रों में इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का नियम बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अतिप्रिय है, क्योंकि इसमें माता लक्ष्मी का वास होता है, इसलिए इसकी पूजा करने का मतलब विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करना माना जाता है।
ऐसे करें आंवला नवमी की पूजा
सूर्योदय से पूर्व स्नानादि कर आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। आंवले की जड़ में दूध चढ़ाकर रोली, अक्षत, पुष्प, गंध आदि से पवित्र वृक्ष की विधिपर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आंवले के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करने के बाद दीप प्रज्जवलित करनी चाहिए। इसके बाद कथा का श्रवण या वाचन करना चाहिए। अक्षय नवमी के दिन आंवले की पूजा करना या आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजना बनाना और खाना संभव ना हो तो इस दिन आंवला खाना चाहिए।