नई दिल्ली: कड़ाके की ठंड में सफेद टीशर्ट पहने कन्याकुमारी से कश्मीर चले राहुल गांधी की यात्रा पूरी हो गई है। रविवार को कांग्रेस नेता ने श्रीनगर के मशहूर लाल चौक पर तिरंगा फहराया। 4,000 किमी की यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरी। केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और पंजाब से होते राहुल के साथ कांग्रेस समर्थकों की भीड़ जम्मू-कश्मीर पहुंची। करीब पांच महीने के दौरान बीच में कई ऐसे मौके आए, जब यात्रा को स्थगित भी करना पड़ा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव के बावजूद राहुल गांधी का पूरा फोकस यात्रा पर दिखा। हिमाचल में प्रियंका गांधी जरूर एक्टिव दिखीं। राहुल ने गुजरात में केवल दो रैलियां की थीं। उनके साथ खेल, फिल्म, राजनीति समेत कई क्षेत्रों की जानी मानी हस्तियां पैदल चलती दिखीं। कभी उनके सफेद टी-शर्ट की बात होती, कभी उस हस्ती की जो उनके साथ सड़क पर होती। मीडिया में राहुल छाए रहे लेकिन अब आगे क्या? इसी साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल 2024 का आम चुनाव है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि राहुल ने अपनी पद यात्रा से कार्यकर्ताओं, समर्थकों और वोटरों में जो उत्साह पैदा किया है, क्या उसे मतदान केंद्र तक बनाए रखा जा सकेगा?
राहुल गांधी की यात्रा का विश्लेषण मीडिया ही नहीं, हर पार्टी ने किया है। एक आम धारणा यह बनी है कि इससे कांग्रेस पार्टी की बदहाल होती स्थिति को थोड़ा मजबूती मिली है। सबसे महत्वपूर्ण बात राहुल गांधी की इमेज सुधरी है। हालांकि मिशन 2024 की तैयारियों में जुटी कांग्रेस पार्टी के सामने कई चुनौतियां हैं। कांग्रेस अगर आम चुनाव में भाजपा को चुनौती देना चाहती है तो उसे संगठन में फिर से जान फूंकनी होगी, जो लीडरशिप संकट से गुजर रहा है। वोटरों में भरोसा फिर से पैदा करना होगा। कांग्रेस पार्टी को हिंदुत्व के एजेंडे पर बढ़ रही भाजपा से मुकाबले के लिए एक राजनीतिक नरैटिव तैयार करना होगा जिससे उसे चुनाव में फायदा मिले। कुछ ऐसे मुद्दों से दूरी बनानी होगी जिससे चुनावी नुकसान हो सकता है। जैसे-जैसे चुनाव करीब आते हैं पिछले कुछ वर्षों में ऐसा देखा गया है कि पार्टी के नेता अपनी बयानबाजी से मुसीबत खड़ी कर देते हैं। पिछले दिनों आपने देखा भी होगा कि कैसे दिग्विजय सिंह को लाइव रिपोर्ट के दौरान जयराम रमेश ने रोक दिया था।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कई प्रमुख क्षेत्रीय नेता 2024 में भाजपा को चुनौती देने के लिए विपक्षी एकता की कोशिश करते दिखे। लेकिन कांग्रेस के लिए चिंता की बात यह है कि इस विपक्षी गुट में उसकी पोजीशन अनिश्चित है। उधर, ममता बनर्जी और के. चंद्रशेखर राव ने कांग्रेस के बगैर फ्रंट बनाने के संकेत दिए हैं। हालांकि शरद पवार जैसे दिग्गज नेता ने सहयोगी के तौर पर कांग्रेस को साथ रखने की वकालत की है। सियासी गलियारे में एक चर्चा यह भी है कि यात्रा का प्रभाव दिख सकता है और संयुक्त विपक्षी मोर्चे में कांग्रेस बड़ा प्लेयर बनकर उभर सकती है।
जयराम ने कहा कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और निजी लक्ष्यों से कांग्रेस पार्टी को काफी नुकसान हुआ है और ‘भारत जोड़ो यात्रा’ सामूहिक उद्देश्य की भावना लेकर आई है। शायद उनका इशारा पार्टी छोड़कर भाजपा या दूसरी पार्टी में गए नेताओं की तरफ था। जयराम ने कहा कि कांग्रेस को 2029 के आम चुनाव में हर राज्य में अपने दम पर लड़ने की तैयारी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं इस साल पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश के परशुराम कुंड तक यात्रा निकालने पर पूरा जोर दूंगा, लेकिन अंतिम फैसला पार्टी को करना है।