नई दिल्ली: क्या सेंट्रल डेप्युटेशन पर तैनात स्टेट कैडर का कोई सीनियर आईपीएस ऑफिसर डीजीपी का पोस्ट ठुकरा सकता है? क्या संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) द्वारा डीजीपी पद के लिए सुझाए गए नामों की लिस्ट में ऐसे किसी ऑफिसर का नाम शामिल हो तो क्या उसके पास अधिकार है कि वो डीजीपी बनने से इनकार कर दे? देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को यही सवाल केंद्रीय गृह मंत्रालय से पूछा। दरअसल, नागालैंड सरकार के एडवोकेट जनरल केएन बालगोपाल ने प्रदेश के डीजीपी पद के लिए सिर्फ एक नाम की सिफारिश करने पर यूपीएससी का विरोध किया। यूपीएससी ने 1992 बैच के आईपीएस ऑफिसर रूपिन शर्मा का नाम भेजा है। एडवोकेट जनरल ने कहा कि यह प्रकाश सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसले का उल्लंघन है। उन्होंने शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यूपीएससी के पैनल को तीन नाम सुझाने चाहिए ताकि राज्य उनमें किसी एक को नया डीजीपी बना सके।
यूपीएससी ने बताया- अनिच्छुक हैं ऑफिसर
यूपीएससी ने दिया परंपरा का हवाला
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि आईपीएस ऑफिसर की अनिच्छा का कोई महत्व नहीं है क्योंकि वो जरूरत पड़ने पर अपने स्टेट कैडर में वापस जाने को बाध्य हैं। तब कौशिक ने कहा कि अनिच्छुक ऑफिसरों को स्टेट कैडर में वापस भेजने की सिफारिश नहीं करने की परंपरा रही है। कौशिक ने यह भी बताया कि यूपीएससी ने पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के डीजीपी पोस्ट के लिए न्यूनतम अनुभव का वर्ष 30 से 25 करने की सिफारिश की है जिस पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सैद्धांतिक सहमति दे दी है।