छत्तीसगढ़ में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो शारीरिक रूप से तो कमजोर हैं। मगर उनके हैसले और मेहनत के आगे शारीरिक कमजोरी ने भी हार मान ली है। एक युवक तो देख नहीं सकता, मगर कंप्यूटर शानदार चलाता है। वहीं एक और युवती है, जिसके हाथ के पंजे नहीं हैं, लेकिन पैरों से बेहतरीन सिलाई करती है। ऐसा संभव हो पा रहा है कि क्योंकि इन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है।
दरअसल, हम जिन लोगों की बात कर रहे हैं, ये सभी दिव्यांग हैं। इन्हें रायपुर के माना में स्थित अस्थि बालगृह कैम्प में ट्रेनिंग दी जा रही है। मुख्यमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत इन्हें ट्रेंड किया जा रहा है। वर्तमान में यहां 35 दिव्यांग लड़के-लड़कियों को ट्रेनिंग दी जा रही है। इस रिपोर्ट में इनकी जो काफी मोटिवेशनल है।
यहां रायपुर की रहने वाली दशमती लोहा सिलाई सीख रही हैं। दशमती ने सिर्फ 3 साल की उम्र में हाथ के पंजे गंवा दिए थे। आग लगने से हुए इस हादसे में उनकी त्वचा को भी नुकसान पहुंचा। दशमती का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर है। उनके पिता खेती किसानी और सब्जी बेचते हैं। यही वजह है कि दशमती ने इस बालगृह कैंप में ट्रेनिंग लेने का निर्णय लिया था।
दशमती बताती हैं कि ट्रेनिंग के बाद उन्होंने लड़कियों के कपड़े बनाना सीख लिया है। वो बच्चों के भी कपड़े सिल लेती हैं। हाल में अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर आयोजित प्रदर्शनी में भी उसने कपड़े रखे थे। जो लोगों को काफी पसंद आए हैं। दशमती का सपना है कि वह आगे चलकर बिजनेस करें और घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएं। नीता सिंह ने उन्हें यह स्पेशल ट्रेनिंग दी है।
रंजना महासमुंद की रहने वाली हैं
इसी तरह रंजना सिन्हा एक हेयर आर्टिस्ट हैं। रंजना सुन और बोल नहीं सकतीं, लेकिन अपने हाथों की कला से वे महिलाओं के बालों(हेयर) को बड़ी ही खूबसूरती से सजाती हैं। ट्रेनिंग के बाद रंजना हेयर एक्सपर्ट बन चुकी हैं। रंजना महासमुंद के टोरला गांव की रहने वाली हैं।
सॉफ्टवेयर के सहारे कानों से सुनकर कर रहे काम
वहीं बिलासपुर के हथिनी गांव के रहने वाले रमऊराम कंप्यूटर की ट्रेनिंग ले रहे हैं। रामू आंखों से देख नहीं सकते वह दोनों आंखों से पूरी तरह ब्लाइंड हैं। प्रकृति ने उन्हें देखने के लिए रोशनी नहीं दी तो उन्होंने प्रकृति को चैलेंज कर दिया। आज वह कंप्यूटर के स्क्रीन में दिव्यांगों का एक सॉफ्टवेयर के सहारे कानों से सुनकर डाटा शीट बनाना,की-बोर्ड में टाइपिंग जैसे सारे काम कर लेते है। एक सामान्य व्यक्ति की तरह की-बोर्ड में बड़ी तेजी से उंगलियां दौड़ाते हैं। रमन की यही खासियत देखकर कई लोग हैरान रह जाते हैं।
4 महीने का कोर्स
बालगृह की अधीक्षिका लक्ष्मीमाला मेश्राम ने बताया कि इन बच्चों का 4 महीनों का कोर्स होता है। जिसमें इन्हें ब्यूटी पार्लर, सिलाई कारीगरी और कंप्यूटर प्रशिक्षण जैसे कोई कोर्स करवाए जाते हैं। जिसके बाद यह बच्चे स्वयं का अपना व्यवसाय चालू करके जीवन यापन करते हैं। कुछ बच्चों को इनकी योग्यता अनुसार प्राइवेट संस्थानों,NGO द्वारा नौकरी में भी रखा जाता है।