नई दिल्ली: 2024 लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की कोशिशें तेज हो गई हैं। इसी सिलसिले में पूर्व कांग्रेस नेता और अभी राज्यसभा में निर्दलीय सांसद कपिल सिब्बल ने एलान किया कि वह केंद्र सरकार की जन-विरोधी नीतियों के खिलाफ इंसाफ का मंच बनाएंगे। इसके लिए वह एक वेबसाइट ‘इंसाफ का सिपाही’ बनाएंगे, जिससे देश भर से लोग जुड़ सकेंगे। क्या है उनकी योजना, कैसे बढ़ाएंगे अपनी पहल, इन तमाम मुद्दों पर उनसे बात की नरेन्द्र नाथ ने। पेश हैं अहम अंश :
जवाब– इस मंच के जरिये हम सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सुधारों की बात करने के साथ आर्थिक असमानता जैसे मुद्दे उठाना चाहते हैं। यह मंच सरकार गिराने जैसे शॉर्ट टर्म के लक्ष्यों के लिए नहीं बना है। हम इसके जरिये पूरे ढांचे को बदलना चाहते हैं। यह अराजनीतिक मंच है, जिससे समान विचार वाले लोग जुड़े सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में देश में आर्थिक असमानता बढ़ी है। अमीर और अमीर हुए हैं तो गरीब और गरीब। यह चिंता की बात है। इंसाफ का मंच ऐसे मसलों पर लड़ेगा।
जवाब- यह कोई पार्टी नहीं है। अन्याय के खिलाफ हम हर इलाके में ‘इंसाफ के सिपाही’ बनाएंगे। हम एक समूह हैं। देश की जनता हैं। मैंने किसी राजनीतिक दल से बात नहीं की है। जो भी इंसाफ की लड़ाई लड़ना चाहे, हम उसका स्वागत करेंगे। लेकिन यह सही है कि इंसाफ के लिए आम लोगों और विपक्षी दलों को साथ आना होगा। इसके लिए इंसाफ एक मंच बन सकता है। हम उन्हें मुद्दों, विजन और आगे का रोडमैप दे सकते हैं।
सवाल- UPA-2 में गैर-राजनीतिक अन्ना आंदोलन ने तब सरकार की जड़ें हिला दी थीं। क्या इंसाफ के माध्यम से ऐसा ही आंदोलन करने की तैयारी है?
जवाब– वह बिल्कुल अलग आंदोलन था। मेरा लक्ष्य अलग है। अन्ना आंदोलन की शुरुआत 2G स्कैम से हुई। फिर इसमें लोकपाल की मांग जोरशोर से उठाई गई। तब हमारी UPA-2 सरकार पर गलत आरोप लगाकर माहौल बनाया। मगर अब सभी लोकपाल को भूल चुके हैं। 12 साल बाद लोकपाल की कोई बात नहीं करता। मैं ऐसे अस्थायी और स्वार्थी उद्देश्यों के लिए काम नहीं करूंगा।
जवाब-आज माहौल अलग है। लोगों तक आज बातें खुद ही पहुंच जाती हैं। ऑल्टरनेटिव मीडिया के माध्यम से हम लोगों तक पहुंचेंगे। जनता से संवाद करेंगे। आज लोगों को एक मंच की तलाश है, जहां वे अपनी आवाज को एक ताकत दे पाएं। यह पूरे समाज की जरूरत है।
सवाल-अन्ना आंदोलन के बाद हाल के दिनों तक ऐसे आंदोलन को रिपीट करने की असफल कोशिशें होती रही हैं…
जवाब- जैसा मैंने कहा कि 2011 का आंदोलन एक साजिश थी। आज हालात अलग हैं। बेरोजगारी इस कदर है कि पीएचडी किए लोग ड्राइवर, चपरासी तक बन रहे हैं। नौकरियां नहीं हैं। आर्थिक साधन नहीं हैं। गरीब महंगाई की वजह से बुरी तरह परेशान हैं। इन मुद्दों को आवाज देने के लिए एक मंच की जरूरत है।
जवाब-पूरी तरह राजनीतिक प्रहार है। लालू यादव की सेहत ठीक नहीं है, लेकिन तेजस्वी पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है, क्योंकि उन्होंने जेडीयू से हाथ मिला लिया। मनीष सिसोदिया पर कार्रवाई भी राजनीतिक है। अगर वास्तव में करप्शन के खिलाफ मुहिम चल रही होती तो इस सवाल का जवाब दीजिए कि क्या 2014 के बाद ईडी, सीबीआई ने किसी मंत्री से पूछताछ की? सीबीआई सरकार की टेंपरेरी गर्लफ्रेंड और ईडी परमानेंट वैलंटाइन है।
सवाल- ईडी पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आप लोग इसके खिलाफ रिव्यू याचिका के साथ गए। क्या वजह रही?
जवाब- हम ईडी को असीमित अधिकार दिए जाने वाले एक्ट के खिलाफ हैं और इस पर समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में गए हैं। इसके लिए सभी विपक्षी राजनीतिक दल प्रयास कर रहे हैं। जिस तरह सरकारी एजेंसियों की ओर से सिर्फ विपक्षी दलों को टारगेट किया जा रहा है, वह बहुत खतरनाक है। इसे सुप्रीम कोर्ट को देखना चाहिए। अगर ऐसा ही चलता ही रहा तो बिना केस या सबूत के किसी को भी जेल भेजा जा सकता है। हजारों की तादाद में लोग देश छोड़ रहे हैं। बिजनेस यहां कर रहे हैं, लेकिन रहते बाहर हैं।
सवाल- तो क्या आप देश के सामने नया राजनीतिक विकल्प देंगे? विपक्ष को साथ लाएंगे?
जवाब- हम विकल्प देंगे। विजन देंगे। सकारात्मक दृष्टि से आगे बढ़ेंगे। समस्या भी बताएंगे और उसे लड़ने के लिए विजन भी देंगे। सभी मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई अभियान शुरू हो और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी जाए। मुझे लगता है कि इसके लिए गंभीर मंथन की जरूरत है। इसके लिए मैं साधन बन सकता हूं। मेरा कोई राजनीतिक अजेंडा नहीं है।
सवाल-जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार से जुडिशरी का विवाद चल रहा है। पूर्व कानून मंत्री और सीनियर वकील के रूप में आपका इस मामले में क्या मानना है?
जवाब-मेरा मानना है कि दोनों सिस्टम में कुछ न कुछ खामियां हैं। लेकिन जजों की नियुक्ति में सरकार का कोई दखल हो, मैं इसके बिल्कुल खिलाफ हूं। यह देश के लिए आपदा जैसा होगा।