रायपुर। अगले साल रायपुर में कांग्रेस अधिवेशन होने वाला है। करीब डेढ़ सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी और उसके सफर को लेकर कई रोचक किस्से भी हैं। इनमें से कुछ छत्तीसगढ़ से जुड़े हैं। आजादी के पूर्व जब भी कांग्रेस के चिंतन शिविर या राष्ट्रीय अधिवेशन होते थे, उनमें छत्तीसगढ़ का भी योगदान होता था। कांग्रेस के बड़े आयोजनों में मिल-जुलकर साधन जुटाते थे। तब राजनीतिक दलों के पास पैसे नहीं होते थे। तब हाथियों पर लादकर यहां से रसद भेजी जाती थी।
कांग्रेस नेता और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने भास्कर को बताया कि सन 1940 के दशक में कांग्रेस का जबलपुर के पास त्रिपुरी अधिवेशन हुआ था। इसमें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को कांग्रेस नेता चुना गया था। तब तत्कालीन सरगुजा महाराज ने 54 हाथियों का एक बड़ा दल त्रिपुरी भेजा था। यह वहां रसद लेकर गया था। जिसमें दाल, चावल, आटा और अन्य राशन शामिल था। इसके अलावा बिहार के रामपुर कांग्रेस अधिवेशन में भी नेताओं के लिए रसद सरगुजा राजपरिवार ने ही भेजी थी।
अंग्रेज रियासतें जब्त करने मुहीम चला रहे थे। लेकिन कांग्रेस पार्टी की वजह से नहीं कर पाए। सरगुजा राजपरिवार कांग्रेस के साथ रहा। क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को भी जब अंग्रेज ढूंढ रहे थे। तब वे सरगुजा में आकर पनाह लिए थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी यहां शिक्षक बनकर छिपकर रहे थे। बाद में वे देश के राष्ट्रपति बने। इसलिए सरगुजा में भी उनकी याद में राष्ट्रपति भवन बनाया गया है। मालूम हो कि कुछ महीने पहले उदयपुर में कांग्रेस का चिंतन शिविर हुआ था। इसमें सीएम भूपेश बघेल और सिंहदेव व वरिष्ठ नेता भी शामिल हुए थे।
यहां के हाथी जहांगीर की सेना में
वाइल्ड लाइफ
एक्सपर्ट संदीप पौराणिक बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में हाथियों का इतिहास बहुत
पुराना है। अंग्रेज लेखक फोरसिथ द्वारा लिखित पुस्तक हाई लैण्ड्स ऑफ इंडिया
में वर्णन है कि वर्ष 1890-1900 के बीच अमरकंटक, बेलगहना, पेण्ड्रा,
रतनपुर से लाफागढ़ सरगुजा तक हाथियों के कई झुण्ड देखे जाते थे।
दिलचस्प है कि जहांगीर की सेना में लगभग 40 हजार हाथी थे। उनमें अधिकांश छत्तीसगढ़ से ही भेजे गए थे। 19वीं सदी तक हाथी लगभग पूरे भारत में पाया जाता था। सरगुजा राज परिवार द्वारा भी हाथियों को पकड़कर पालतू बनाने तथा इन्हें अन्य राज्यों में राजा महाराजाओं को बेचे जाने के प्रमाण दस्तावेजों में मौजूद है।