आमतौर पर कैंसर लाइलाज माना जाता है, लेकिन वन विभाग के रिटायर्ड अकाउंटेंट ने ऐसे लोगों के लिए पूरा जीवन लगा दिया। उन्होंने ऑर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बेंगलुरु में किए गए पौधरोपण से प्रेरणा ली। उन्होंने अपने खेत में लक्ष्मीतरु के 500 पौधे लगाए। दावा है- इसकी पत्तियां खाने से कैंसर भी खत्म हो जाता है। इसकी पत्तियों को वे लोगों को नि:शुल्क उपलब्ध करवा रहे हैं। डॉक्टरों ने भी इसे फायदेमंद बताया है।
मध्यप्रदेश के बैतूल में रहने वाले वन विभाग के रिटायर्ड अकाउंटेंट गणेशराव बारस्कर। वह पिछले सात साल से समाज के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस पेड़ की पकी पीली पत्तियों को उबालकर पानी पीने से कैंसर की बीमारी जड़ से खत्म हो जाती है। वहीं, कोमल पत्तियां खाने से पाइल्स की बीमारी 4 से 6 महीने में खत्म हो जाती है। इन पौधों से सांप और मच्छर भी दूर रहते हैं। पढ़िए, रिटायर्ड कर्मचारी की इस पहल के पीछे की कहानी
बेंगलुरु से 7 साल पहले मंगाए 500 पौधे
गणेश बारस्कर ने बताया कि रिटायरमेंट के बाद शांति से जीवन गुजर रहा था। इस बीच, मैंने आर्ट ऑफ लिविंग की क्लासेस जॉइन की। क्लास में लक्ष्मीतरु के पौधे के बारे में पता चला कि इसकी पत्तियों के सेवन से कैंसर भी ठीक हो जाता है। मैंने समाज की भलाई के लिए इसके पौधे लगाने का निर्णय लिया। पौधे बेंगलुरु में मिलते हैं, इसलिए खुद से 52 हजार रुपए लगाकर 500 पौधे मंगवाए। करीबी गांव महदगांव में पैतृक 2 एकड़ जमीन पर 500 पौधे रोप दिए। पौधों को पेड़ बनाने के लिए जुट गए। 7 साल की कड़ी मेहनत से ये पौधे आज 20 फीट के पेड़ बन गए हैं।
कैंसर रोगियों को देशभर में भेज रहे पत्तियां
गणेश बारस्कर कैंसर रोगियों के लिए देशभर में पत्तियां भेजते हैं। इसके लिए वे रोज 10 किमी का सफर तय कर खेत पर जाते हैं। यहां पेड़ों से पत्तियां तोड़ने के बाद वे उसे घर लाकर सुखाते हैं। फिर लोगों को जरूरत के मुताबिक पैक कर डाक के जरिए भेजते हैं। इसके लिए वे सिर्फ डाक का खर्च लेते हैं।
लक्ष्मी तरु के फायदे
- पौधे की सबसे बड़ी खासियत है कि इसके आसपास सांप और मच्छर नहीं आते।
- लक्ष्मी तरु का नाम कल्पतरु भी है। वैज्ञानिक नाम सीमारूबा ग्लाउका है।
- आंखों के रोग, एनीमिया, अंदरूनी फोड़ा, गैस, एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी, पाइल्स रोग भी दूर होते हैं।
- डायरिया, कोलाइटिस, चिकनगुनिया, हेपेटाइटिस, ऑर्थराइटिस और मलेरिया में भी इसकी पत्तियां उपयोगी हैं।
स्वर्ग का पौधा भी कहा जाता है…
एक्सपर्ट्स की मानें तो ये पेड़ मूलतः फ्लोरिडा, दक्षिण अमेरिका में पाया जाता है। इसके गुणों को देखते हुए इसे स्वर्ग का पौधा या पैराडाइज प्लांट भी कहते हैं। वीवीएम कॉलेज बैतूल में पादप विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. एस लहरपुरे के मुताबिक लक्ष्मीतरु में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व अन्य पौधों की तुलना में ज्यादा होते हैं। इसमें पाया जाने वाला पी-53 जीन ट्यूमर स्प्रेशर यानी उसे दबाने या कम करने वाला माना जाता है। यह जीन ट्यूमर को रिड्यूस करता है और दबाने की प्रक्रिया को तेज करता है। यही वजह है कि यह कैंसर के लिए लाभदायी है।
50 किलो वजन पर 10 पत्तियों का सेवन
समाजसेवी और कैंसर को हराने वाले हेमंतचंद्र दुबे (बबलू भैया) ने बताया कि अभी जो कैंसर के रोगी सामने आए हैं, उनके लिए लक्ष्मीतरु की पत्तियां रोजाना भेजी जाती हैं। बैतूल के एक क्रिकेट प्लेयर रैक्टम कैंसर से पीड़ित हैं, जिनके लिए प्रतिदिन यह पत्तियां जाती हैं। विशेषज्ञों की मानें तो एक व्यक्ति का जितना वजन होता है, उस हिसाब से प्रति 5 किलो पर एक पत्ती लगती है। कैंसर पीड़ित का वजन 50 किलो है, तो 10 पत्तियों का काढ़ा बनाकर दिन में तीन बार रोगी को दिया जाता है। कुछ ही दिनों में कैंसर के लक्षण कम होने लगते हैं।
बैतूल के अलावा अन्य प्रदेशों में भी यहां से इलाज के लिए इसकी पत्तियां भेजी जाती हैं। लक्ष्मीतरु 40 डिग्री तापमान में आसानी से फलता-फूलता है। लक्ष्मीतरु किसी अन्य पेड़ के मुकाबले 20 गुना ज्यादा ऑक्सीजन देता है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह पेड़ उत्तरी अमेरिका में होता है, जिसे दक्षिण भारत में भी बहुतायत से लगाया जा रहा है। इससे पहले स्टेज के कैंसर, मधुमेह को हराया जा सकता है।
कैंसर की बीमारी को हराने वाले बैतूल के हॉकी खिलाड़ी हेमंत दुबे ने बताया कि इस पौधे के कई फायदे हैं। उन्होंने खुद लक्ष्मीतरु की पत्तियां खाई हैं। आज वह स्वस्थ हैं। वह भी बीमार लोगों को इसकी पत्तियां उपलब्ध करवा रहे हैं। दुबे ने बताया कि लक्ष्मीतरु के पौधों में एंटी ऑक्सीडेंट होता है, जो इम्यून पावर बढ़ाता है।
जानिए, लक्ष्मीतरु की खासियत
लक्ष्मीतरु की पत्तियां, जड़, लकड़ी, फल, फूल सभी कुछ बहुउपयोगी है। नाम के अनुरूप ही लक्ष्मीतरु की पत्तियां, जड़ें, लकड़ी, फल, फूल यानी इस वृक्ष का हर एक अंग औषधीय गुणों से भरपूर हैं। फल, फूल और जड़ों से निकलने वाले तेल के अलावा इसकी खली बेकरी के आइटम बनाने के काम भी आती है। कुल मिलाकर लक्ष्मीतरु अपने आप में सर्वगुण संपन्न वृक्ष है।
लक्ष्मीतरु के एक वृक्ष को बड़ा होने में 6 से 8 साल लगते हैं। वयस्क होने के बाद यह वृक्ष 4-5 साल तक उत्पादन में देता है। दिसंबर के महीने में इनमें फूल आने शुरू होते हैं। फरवरी मार्च-अप्रैल तक ये फूल वयस्क हो जाते हैं। इस वृक्ष के प्रत्येक बीज का 60 से 75 % हिस्सा तेल होता है, जिसे शोधन विधियों से निकाला जाता है। प्रत्येक वृक्ष में 15 से 30 किलोग्राम तक बीज होते हैं, जिनसे 3 से 5 किलो तक तेल प्राप्त किया जा सकता है। यह तेल स्वादिष्ट और स्वास्थ्य के लिहाज से भी पौष्टिक व उपयोगी होता है।
ऑनलाइन बिक्री भी शुरू
पेड़ की पत्तियों को ऑनलाइन भी बेचा जा रहा है। गणेश बारस्कर बताते हैं कि यह अब कई ऑनलाइन बिक्री साइट्स पर भी बिक्री के लिए मौजूद है। अमेजन जैसी साइट्स पर इस पौधे की पत्तियां एक रुपए की एक की दर पर बेची जाती है। कई अलग अलग ऑनलाइन बिक्री साइट्स पर यह अलग दर पर मिल जाती है।
इन रोगों में होता है फायदा
लक्ष्मीतरु की पत्तियां एक दर्जन से अधिक बीमारियों में फायदा पहुंचाती हैं। प्रमुख रूप से कैंसर प्रथम एवं द्वितीय स्तर आंख का रोग, अंदरूनी फोड़ा, पाचन प्रणाली का बचाव, हैली कोबेक्टर पाइलोरी के द्वारा होने वाली गैस ट्रोइटिस, हाइपर, एसिडिटी, डिस्पेशसिया, अमिलियासिस, डायरिया, कोलाइटिस, गुनिया, हरपीज एच.1 एन . 1 हेपेटाइटिस, मलेरिया, फीवर, कोल्डस हीमोरहेज, अनीमिया, न्यूरयूमेटु, आइड ऑर्थराइटिस।
कैसे करें दवा का सेवन
लक्ष्मीतरु की सूखी पत्तियों को प्रति 10 किग्रा शरीर के वजन पर दो पत्तियां छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर एक गिलास में हल्की आंच पर उबालें। प्लेट से पात्र को ढ़ंककर रात भर रखें। दूसरे दिन सुबह काढ़े को गर्म करें और छानें। उसके बचे द्रव्य को गुनगुना लें, गरारा करके पी जाएं। आधे घंटे बाद भोजन करें। छानने से बचे पदार्थ में 200 मिली लीटर पानी मिलाकर 10 मिनट तक धीमी आंच पर उबालें। ढंक कर कुछ घंटों के लिए रख दें। मिश्रण को फिर गर्म करें। छानें और इस द्रव्य को रात्रि भोजन से आधे घंटे पहले पिएं। यह सभी कार्य स्टील के बर्तन से करने हैं।
बहुद्देशीय उपयोग से भरा है यह पेड़
यह खाद्य तेल वाले बीज का पेड़ है, जो गर्म आर्द्र, ऊष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। यह 10-40 डिग्री तापक्रम के मध्य अनुकूल है। यह पेड़ अब भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है। इसे बंजर व बेकार भूमि में विकसित किया जा सकता है। लक्ष्मीतरु दृढ़ किस्म का पौधा है। सभी तरह की जमीन और मिट्टी में उगाया जा सकता है। लक्ष्मीतरु 400 मिमी वार्षिक वर्षा के क्षेत्र में पनपता है। यह पदाउन्नत मिट्टी और अपशिष्ट भूमि में विकसित हो सकते हैं। यह पशुओं गाय, भेड़, बकरी द्वारा नहीं खाया जाता। इसकी पत्तियां घनी होती हैं, जो गिरने पर मिट्टी को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। घना पेड़ सूरज की गर्मी से मिट्टी को बचाता है। इसके बीज में 65 % खाद्य तेल होता है। इसका फल खाने योग्य, मीठा व रसदार होता है। इसके सभी भागों में औषधीय गुण हैं।
इसका जीवन 70 साल है। इसकी लकड़ी दीमक प्रतिरोधी है। इसमें कीड़े भी नहीं लगते। इसकी लंबी जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकती है। इसके पीले फूल आते हैं, अण्डाकार बैंगनी रंग के फल आते हैं। यह सदाबहार पेड़ है। लक्ष्मीतरु की एक हेक्टेयर से 4 टन बीज और 2 से 6 टन तेल आर 1.4 टन खल (केक) निकलती है। इसमें 60 से 75 % तक तेल है, जिसे परम्परागत तरीके से निकाला जा सकता है। एक पेड़ से 15 से 30 किलो बीज और ढाई से पांच किलोग्राम तक तेल व 2.5 से 5 किलोग्राम केक प्राप्त होता है।
तेल का बेकरी प्रोडक्ट के लिए उपयोग
एक हेक्टेयर से प्रतिवर्ष एक हजार से दो हजार किग्रा तेल प्राप्त होता है। यह तेल बेकरी उत्पाद कार्य में काम आता है। यह ऑयल सीड केक के सर्वश्रेष्ठ पीके वैल्यू का है। इसका तेल वनस्पति घी व खाद्य तेल बनाने में काम आता है। यह तेल कोलेस्ट्रॉल से मुक्त होता है। यह तेल जैविक ईंधन, साबुन, डिटर्जेन्ट, स्नेटक, वार्निश, कॉस्मेटिक और दवा बनाने में काम आता है। बीज की खल (ऑइल केक) में 8 % नाइट्रोजन, 1.1 % फास्फोरस, 1.2 प्रतिशत पोटाश है, जो कि अच्छा कार्बनिक खाद्य है।
बीज का खोल लकड़ी के बोर्ड बनाने व ईधन में व कोयला बनाने में काम आता है। फल के रस में 11 % शक्कर होने से मीठा पेय है। फल-फूल और पत्तियों से सस्ता वर्मी कम्पोस्ट बनता है। इसकी पैदावार 8 टन प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष है। इस पौधे की लकड़ी फर्नीचर, खिलौने, माचिस आदि वस्तुएं बनाने और लकड़ी की लुगदी बनाने के काम में आती है।
ग्रामीण क्षेत्र में व जड़ी-बूटी में उपयोग
यह प्राकृतिक औषधीय पौधा है। स्वदेशी भारतीय जनजातियां इसकी छाल से मलेरिया व पेचिस व प्रभावी उपचार में इस्तेमाल करते हैं। दक्षिणी अमेरिका में लक्ष्मीतरु की छाल का बुखार, मलेरिया, पेचिस को रोकने व रक्तचाप को रोकने में टॉनिक के रूप प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों और कोमल टहनियों को उबाल कर काढ़ा बनाया जाता है, जो कैंसर, अल्सर समेत कई प्रकार की बीमारियों के काम आता है।
आयुर्वेदाचार्य डॉ. अमोल सिंह वर्मा के मुताबिक लक्ष्मीतरु के पौधे में एंटी कैंसर तत्व पाया जाता है। जो कैंसर की कोशिकाओं को वृद्धि करने से रोक देता है। यह पौधा बेहद उपयोगी और रोगों के उपचार में फायदेमंद है। इससे न केवल कैंसर बल्कि शुगर, त्वचा के रोग,आंखों की एलर्जी ठीक होते हैं। इस पेड़ में पाया जाने वाला तत्व सबसे ज्यादा कैंसर के रोग के उपचार में उपयोगी पाया गया है।