नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कलीजियम सिस्टम को लेकर एक आदेश पारित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पीएम, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस की कमिटी की सलाह पर किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि इस कमिटी की सलाह पर राष्ट्रपति चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करेंगे। केंद्र सरकार के स्टैंड के विपरीत सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है। हाल के महीनों में सरकार की ओर से जुडिशियल हस्तक्षेप का भी सवाल उठाया जाता रहा है तो क्या सरकार और जुडिशियरी के बीच तल्खी और भी बढ़ सकती है?
कोर्ट ने क्या कहा फैसले में
जस्टिस केएम जोसेफ की अगुआई वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने एक मत से दिए फैसले में कहा है कि जब तक चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कानून नहीं बनाया जाता है, तब तक सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई व्यवस्था लागू रहेगी। चुनाव में शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दूरगामी असर होगा। पांच जजों की बेंच ने कहा है कि चुनावी प्रक्रिया का काफी समय से बेरहमी से दुरुपयोग निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिए गंभीर है। लोकतंत्र में चुनाव में शुद्धता व निष्पक्षता निश्चित तौर पर बरकरार रखनी होगी, वरना इसके विनाशकारी परिणाम होंगे।
केंद्र सरकार का स्टैंड अलग था
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने कहा था कि मौजूदा प्रक्रिया के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं और उसे गैर संवैधानिक नहीं कहा जा सकता। कोर्ट उसे निरस्त नहीं कर सकती। संविधान सभा ने इसी मॉडल को स्वीकार किया था और ऐसे में शीर्ष अदालत यह नहीं कह सकती कि इस मौजूदा मॉडल या प्रक्रिया पर विचार की जरूरत है। इस बारे में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है, जिसकी व्याख्या की जाए। हालांकि केंद्र सरकार की दलील से सुप्रीम कोर्ट सहमत नहीं हुआ और कहा कि आजादी के इतने साल बाद भी इस बारे में कानून बनाने पर गौर नहीं किया गया। अब केंद्र सरकार के पास विकल्प है कि वह रिव्यू पिटिशन दाखिल कर सकती है। हालांकि रिव्यू याचिका उन्हीं जजों के सामने आएगी, जिन्होंने फैसला दिया है और सुनवाई चैंबर में होती है। विरले मामले में ही फैसला रिव्यू होता है।
न्यायिक दखल का सवाल उठ चुका
हाल के दिनों में उपराष्ट्रपति ने जयपुर के एक कार्यक्रम में संसद के काम में जुडिशियरी के हस्तक्षेप का सवाल उठाया था और कहा था कि संसद जब कानून बनाती है तो कई बार सुप्रीम कोर्ट उस कानून को खारिज कर देता है। उन्होंने सवाल किया था कि क्या संसद अगर कोई कानून बनाएगी और उस हर कानून पर कोर्ट की मुहर होगी, तभी वह कानून मान्य होगा? इस दौरान लोकसभा स्पीकर ने भी अदालती हस्तक्षेप का सवाल उठाया था। इस दौरान 1973 के केशवानंद भारती केस का भी जिक्र हुआ, जिसमें मूलभूत सिद्धांत की अवधारणा आई और कहा गया था कि संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं। उन्होंने कहा था कि 1973 का फैसला संसद के संविधान संशोधन की शक्ति पर सवाल उठाता है।
कानूनी जानकार और हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आरएस सोढ़ी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपनी जगह दुरुस्त है। इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए क्योंकि पीएम, नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस की कमिटी होगी तो सबका प्रतिनिधित्व इसमें हो गया, लेकिन इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस की नियुक्ति के लिए मौजूदा कलीजियम सिस्टम पर भी सवाल उठना लाजमी है। कारण कि सुप्रीम कोर्ट कलीजियम में सरकार के नुमाइंदे हों तो फिर गलत क्या है। मेरा मानना है कि आखिर यह लोकतंत्र है और जनता के प्रति जवाबदेही है। ऐसे में चुनी हुई सरकार के नुमाइंदे या फिर खुद पीएम ही अगर कलीजियम में होंगे तो इसमें परेशानी नहीं होनी चाहिए। इससे कलीजियम सिस्टम मजबूत भी होगा और सिस्टम पारदर्शी बनेगा। 130 करोड़ जनता के प्रतिनिधि हैं पीएम और उनके होने से इस पर सवाल नहीं उठ सकता।
मंत्री की सलाह कोर्ट के सुझाव के मुताबिक?
कानून मंत्री किरण रिजिजू ने हाल के महीने में चीफ जस्टिस को लिखा था कि कलीजियम में एक सरकार की ओर से नॉमिनेट सदस्य होना चाहिए। बाद में उन्होंने कहा था कि सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट कलीजियम में केंद्र और राज्य के प्रतिनिधियों को रखने के लिए चीफ जस्टिस को जो लेटर लिखा गया था, वह शीर्ष अदालत के सुझाव के मुताबिक है। रिजिजू ने कहा था कि एनजेएसी (नैशनल जुडिशियल अपॉइंटमेंट कमिशन) को खारिज करने के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जो सुझाव दिए थे, उसी के अनुसार उनकी कार्रवाई है। किरण रिजिजू पहले भी कलीजियम सिस्टम पर सवाल उठाते रहे हैं और हाल के दिनों में भी लगातार सवाल उठा रहे हैं। किरण रिजिजू ने यह भी कहा था कि जजों को जनता की स्क्रूटनी का सामना नहीं करना पड़ता है क्योंकि उन्हें चुनाव नहीं लड़ने होते हैं। बहरहाल इसके बाद भी लगातार इस मामले में सरकार और ज्यूडिशियरी के बीच तल्खी बनी हुई है।
कानून बनाना होगा सरकार को
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कलीजियम सिस्टम लागू करने का निर्देश दिया है। चूंकि फैसला सुप्रीम कोर्ट का है, ऐसे में सरकार को इस मामले में कानून बनाना होगा। जब तक कानून नहीं है, तब तक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक नियुक्तियां होंगी। संसद से अगर सरकार इस मामले में कानून बनाती है और वह कानून भी सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट की भावना और संवैधानिक दायरे में नहीं पाया जाता है तो उसकी भी स्क्रूटनी तय है और उसका भी जुडिशियल रिव्यू होगा। यानी पिक्चर अभी बाकी है।