यह कहानी है स्व सहायता समूह की दीदियों की जो प्लास्टिक मुक्त बनाने एवं पर्यावरण को बचाने में अपना सहयोग दे रहीं हैं साथ ही संदेश दे रहीं हैं कि एक स्वस्थ्य जीवन जीना चाहते है तो प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर कपड़े के थैले का इस्तेमाल करें। हम आए दिन अखबारों या अन्य माध्यमों से पढ़ते और सुनते रहते हैं कि आवारा मवेशियों द्वारा प्लास्टिक निगल लिया जाता है और इसके घातक परिणाम भी नजर आते हैं और कई मामले ऐसे रहें है की इन पशुओं की जान भी चली जाती है ये भयानक दृश्य कहीं न कहीं प्रेरित करती है कि अब प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाते हुए प्लास्टिक मुक्त जिला बनाएं
मुख्यमंत्री के मंशानुरूप जिले में लगातार पर्यावरण के हित में कई कार्य किये जा रहे। साथ ही प्रशासन द्वारा समय समय पर कठोर कदम भी उठाए जा रहे हैं जिले में कलेक्टर के मार्गदर्शन में प्रतिबंधित पॉलीथिन के उपयोग के खिलाफ कार्यवाही लगातार की जा रही है। राजस्व विभाग और नगरी निकायों के द्वारा साप्ताहिक हाटों एवं दुकानों में निरीक्षण किया जा रहा है। यदि दुकानदार व विक्रेता पॉलीथिन उपयोग करते पाया जा रहा है तो उनके उपर आर्थिक अर्थदंड भी लगाया जा रहा है। प्लास्टिक ने जीवन को आसान बनाया है लेकीन प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता ने हमारे जीवन के साथ अन्य जीवों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा कर अनेक दुष्प्रभावों को भी जन्म दिया है पर्यावरण पर इसके प्रभाव की गंभीरता को देखते हुए शासन प्रशासन का प्रयास रहा के प्लास्टिक मुक्त कर स्वच्छ वातावरण बनाने में अपना योगदान दें प्लास्टिक मुक्त जिला बनाने में प्रशासन ने भी लोगों के व्यवहार परिवर्तन लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी साथ ही आम नागरिकों को समझाइश भी दी जा रही है कि प्लास्टिक के स्थान पर अन्य विकल्पों जैसे कपड़े से बने थैले का उपयोग करें जब भी घर से बाहर जाएं तो अपने पास कपड़े के थैले अवश्य रखें। जिले में महिला सशक्तिकरण केन्द्र समूहों के महिलाओं के द्वारा कपड़े से निर्मित थैले का भी निर्माण किया जा रहा है। अब तक समूहों के द्वारा 11 सौ कपड़े के थैले निर्मित किये जा चुके है। समूहों के द्वारा एक थैला की कीमत 10 रुपए निर्धारित किया गया है। जिसमें से 6.64 क्विंटल बायोडिग्रेडबल कैरी बैग विक्रय किया गया जिसकी लागत 140610 रुपये है। जिससे महिलाओं को 15000 रुपये की आय प्राप्त हुई है। यह थैला पर्यावरण को सुरक्षित रखेगा। महिला सशक्तिकरण केन्द्र समूहों की दीदीयां बताती है कि उन्हें बेहद खुशी है कि पर्यावरण के हित में योगदान दे पा रहीं है। ऐसा हमारे लिये पहला मौका है कि हम आर्थिक लाभ के साथ-साथ पर्यावरण कि लिए कुछ कर पा रहे है। समूहों कि दीदीया प्रति महिला सलाना पोटाकेबिन, आंगनबाड़ी केन्द्रों का काम कर लगभग 30 हजार रुपए से ज्यादा कमा लेती है। वे कहती है कि बच्चों के स्कूल फीस, घर के छोटे-मोटे खर्च, खुद के खर्च के साथ पर्यावरण हित में काम कर पाना हमारे लिए खुशी की बात है।
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