मध्यप्रदेश के कई जिलों में ओलावृष्टि का दौर है। खेतों में खड़ी फसल बर्बाद हो गई। लाखों हेक्टेयर जमीन में गेहूं, चना और सरसों फसल काली पड़ गई। असहाय किसान अब सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। अफसर-नेता खेतों में जाकर नुकसानी का आकलन कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने मदद के लिए आश्वस्त किया है, वहीं विपक्ष ने सड़क से लेकर सदन तक सरकार को घेर लिया है। लेकिन, जिस नियम के तहत किसानों को मुआवजा मिलेगा, वो पांच साल पुराने हैं। नुकसान की भरपाई के लिए जितनी राशि का प्रावधान है, वो आटे में नमक समाए, इतना ही है।
प्राकृतिक आपदा से प्रभावित प्रत्येक व्यक्ति, उसकी फसल, मकान और मवेशी के लिए क्षतिपूर्ति राशि निर्धारित है। मध्यप्रदेश शासन के राजस्व पुस्तक परिपत्र में इसका उल्लेख है। वर्तमान में ओलावृष्टि जैसी प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों को इसी नियमावली के तहत राहत राशि दी जानी है।
सबसे पहले समझते हैं कि RBC (6-4) क्या है?
प्राकृतिक प्रकोपों जैसे- अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, बेमौसम बारिश, पाला, शीतलहर, कीट-इल्ली, टिड्डी प्रकोप आदि। इसी तरह बाढ़, आंधी, तूफान, भूकंप, सूखा एवं अग्नि दुर्घटनाओं से फसल नुकसानी, जनहानि या पशुहानी होती है। ऐसे में किसानों को अप्रत्याशित नुकसानी झेलना पड़ती है। इन परिस्थितियों में शासन का यह दायित्व हो जाता है कि वह पीड़ितों को तत्काल अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराए। ताकि, विपदा का मुकाबला करने में पीड़ित व्यक्ति का मनोबल बना रहे। वह अपने परिवार को पुर्नस्थापित कर सके।
नुकसानी के सर्वे के लिए शासन ने राजस्व विभाग को जिम्मा दिया। विभाग के पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर से लेकर संभागायुक्त के पास सर्वे और सहायता राशि जारी करने का जिम्मा रहता है, जो कि जमीनी स्तर पर जाकर नुकसानी का आकलन करते हैं। यदि क्षति हुई है, तो शासन द्वारा स्वीकृत एवं निर्धारित मानदंडों के आधार पर आर्थिक सहायता का प्रकरण बनाते हैं। प्रभावित व पीड़ितों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि को लोक सेवा गारंटी अधिनियम के तहत दी गई समयावधि में जारी करना होता है।
रबी सीजन में फसल नुकसानी पर कितना मुआवजा?
रबी सीजन में यदि प्राकृतिक आपदा का प्रकोप होता है, तो खरीफ सीजन के मुकाबले इस सीजन में क्षतिपूर्ति की राशि दोगुना है। क्योंकि, यह सीजन सिंचाई पर आधारित है। सिंचाई के हिसाब से फसल की लागत भी बढ़ जाती है। जैसे- गेहूं, चना, मसूर, सरसों आदि फसलें हैं।
2 हेक्टेयर तक की जमीन वालों के लिए मुआवजा
आरबीसी के तहत सिंचित फसल में 25 से 33 प्रतिशत नुकसानी होने पर 9 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा निर्धारित है। यदि नुकसानी 33 से 50 प्रतिशत तक है, प्रति हेक्टेयर 15 हजार रूपए, 50 प्रतिशत से ज्यादा नुकसानी होने पर 30 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर क्षतिपूर्ति मिलेगी। ज्ञात हो कि एक हेक्टेयर में ढ़ाई एकड़ जमीन होती है।
जिनके पास 2 हेक्टेयर से ज्यादा है, उनके लिए
2 हेक्टेयर यानी 5 एकड़ से ज्यादा भूमिधारक किसानों के लिए सिंचित फसल में 25 से 33 प्रतिशत नुकसानी होने पर 6500 रूपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा निर्धारित है। यदि नुकसानी 33 से 50 प्रतिशत तक है, प्रति हेक्टेयर 13 हजार 500 रूपए, 50 प्रतिशत से ज्यादा नुकसानी होने पर 27 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर क्षतिपूर्ति मिलेगी।
फलदार पेड़ों के लिए प्रति पौधा मुआवजा
आरबीसी में उद्यानिकी फसलों के लिए भी मुआवजा निर्धारित है। यदि फलदार पेड़ को 33 प्रतिशत तक नुकसान होता है तो 400 रूपए और 33 प्रतिशत से ज्यादा होने पर 500 रूपए प्रति पेड़ के हिसाब से क्षतिपूर्ति दी जाती है। संतरा और अनार के पेड़ के लिए यही राशि निर्धारित है। बाकी, नींबू का बगीचा, पपीता, केला और अंगूर के बगीचे के लिए 7500 रूपए से लेकर 13 हजार 500 रूपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से क्षतिपूर्ति निर्धारित है।
गाय-भैंस, मुर्गा-मुर्गी, ऊंट-बकरी को भी मदद
प्राकृतिक प्रकोप से यदि पशुहानि होती है तो इसके लिए भी आर्थिक सहायता का प्रावधान आरबीसी में है। दूधारू गाय, भैंस, ऊंट के लिए 30 हजार रूपए तथा भेड़, बकरी और सुअर के लिए 3 हजार रूपए निर्धारित है। गाय-भैंस के बछड़े से लेकर गधा, पोनी और खच्चर के लिए 16 हजार रूपए, घोड़े के लिए 10 हजार रूपए की सहायता है। मुर्गा-मुर्गी के लिए 60 रूपए और चूजा के लिए 20 रूपए है।
सिर्फ मुआवजा ही नहीं, कर्ज देने का भी नियम
राजस्व पुस्तक परिपत्र नियम में प्राकृतिक आपदा से प्रभावितों को मुआवजा देने के साथ-साथ कर्जा देने का प्रावधान भी है। मुआवजे की रकम को लेकर अफसरों का स्तर किया गया है। जैसे- 50 हजार रूपए तक की राशि के लिए तहसीलदार, 4 लाख रूपए तक एसडीएम, पांच लाख रूपए तक कलेक्टर तथा पांच लाख रूपए से ज्यादा की क्षतिपूर्ति सहायता राशि जारी करने के अधिकार संभागायुक्त को दिए गए है।
इसी तरह कर्ज दिए जाने की बात करें तो ऋण स्वीकृत करने के अधिकार भी राजस्व अधिकारियों के पास है। इसमें 20 हजार रूपए तक का ऋण प्रकरण एसडीएम स्वीकृत कर सकते है। बाकी, एक लाख रूपए तक कलेक्टर और इससे ज्यादा राशि का प्रकरण स्वीकृत करने की अनुशंसा संभागायुक्त करते है।
सरकार जब चाहे, तब बढ़ा सकती है मुआवजे की दरें
राजस्व पुस्तक परिपत्र में आखिरी बार संशोधन 1 मार्च 2018 को हुआ था। इसके बाद से यह गाइडलाइन यथावत है। सरकार ने मुआवजे की राशि बढ़ाने को लेकर कोई पहल नहीं की। राजस्व विभाग में अपर कलेक्टर पद से रिटायर्ड हुए बीएल कोचले बताते है कि, प्राकृतिक आपदा प्रभावितों के लिए आरबीसी 6-4 एक सुरक्षा कवच है। लेकिन वास्तविकता में इसका लाभ प्रभावितों को नहीं मिलता है। क्षतिपूर्ति की राशि मिलती भी है तो काफी कम है। सरकार चाहे तो गाइडलाइन में हर साल परिवर्तन कर सकती है। सिर्फ आर्थिक सहायता के मानदंड में परिवर्तन करके कैबिनेट से मंजूरी देना होती है।