नई दिल्ली। रोना भले पराली का रोया जाता हो, लेकिन सच यह है कि दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बढ़ी हिस्सेदारी परिवहन क्षेत्र की है। साल दर साल बढ़ती जा रही वाहनों की संख्या के साथ-साथ इसके धुएं का उत्सर्जन भी लगातार बढ़ रहा है। आलम यह कि एक दशक में यह प्रदूषण 39 प्रतिशत तक बढ़ गया है।
अर्थ सिस्टम साइंस डेटा जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में सामने आया है कि 2010 से 2020 के दशक में दिल्ली और आस-पास के एनसीआर क्षेत्रों में परिवहन क्षेत्र से प्रदूषकों का उत्सर्जन बढ़ गया है। यह अध्ययन पेपर ‘दिल्ली में प्रमुख वायु प्रदूषण के उत्सर्जन भार में दशकीय वृद्धि’… सफर के संस्थापक परियोजना निदेशक और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एडवांस्ड स्टडीज बंगलुरू के चेयर प्रोफेसर गुफरान बेग, उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर में सहायक प्रोफेसर सरोज कुमार साहू और पूनम मंगराज द्वारा लिखा गया है।
बेग के अनुसार, वाहनों के उत्सर्जन में गिरावट नहीं हुई है, बावजूद इसके दिल्ली में वार्षिक औसत में मामूली सुधार प्रतीत होता है। यह ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान जैसे अल्पकालिक, अस्थायी उपायों के कारण हो सकता है। लेकिन, स्थायी समाधान के लिए, दीर्घकालिक कदम उठाकर ही इसे कम करने की आवश्यकता है ताकि सी स्रोत से उत्सर्जन कम हो, न कि अस्थायी आधार पर कड़े पुन: प्रतिबंध लगाने का तरीका।
इसमें इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना भी शामिल है। इस अध्ययन पेपर में कहा गया है कि पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर में दशकीय वृद्धि क्रमशः 31 और तीन प्रतिशत पाई गई। बेग ने कहा कि 2020 के अनुमान में ”अन्य” की एक अतिरिक्त श्रेणी शामिल की गई थी। इसमें नगरपालिका ठोस अपशिष्ट जलाने और निर्माण कार्यों जैसे स्रोतों से उत्सर्जन शामिल है।
बेग बताते हैं कि पार्टिकुलेट मैटर और गैसीय प्रदूषक स्तरों में वृद्धि के अलावा, वाहनों में ईंधन के दहन से ब्लैक कार्बन भी उत्सर्जित होता है जो सूर्य से ऊर्जा को अवशोषित कर सकता है और वार्मिंग में योगदान कर सकता है। 2010 से 2020 तक परिवहन क्षेत्र का यह योगदान भी बढ़ा है। इस अध्ययन पेपर में कहा गया है कि औद्योगिक क्षेत्र में 36 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में परिवहन क्षेत्र से उत्सर्जन भार में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं हवा से उड़ने वाली सड़क की धूल उत्सर्जन में 23 प्रतिशत की कमी आई है।
परिवहन क्षेत्र से 41.369 गीगाग्राम का सबसे बड़ा योगदान था।
पेपर में लिखा है, मलिन बस्तियों में एलपीजी के प्रवेश के कारण, खाना पकाने से संबंधित उत्सर्जन में काफी सुधार हुआ है। यातायात की भीड़ में वृद्धि हुई है, लेकिन बेहतर मार्ग प्रशस्त हुए हैं। सड़क की स्थिति और सड़क के किनारे के रख-रखाव के परिणामस्वरूप पिछले दशक में हवा से उड़ने वाली सड़क की धूल से उत्सर्जन भार में कमी आई है। 2020 में पीएम 2.5 उत्सर्जन प्रति वर्ष 123.891 गीगाग्राम होने का अनुमान लगाया गया था, जिसमें परिवहन क्षेत्र से 41.369 गीगाग्राम का सबसे बड़ा योगदान था।
2020 में पीएम 10 उत्सर्जन 243.649 गीगाग्राम था, जिसमें हवा से उड़ने वाली सड़क की धूल का योगदान सबसे बड़ा था इसकी मात्रा 99.975 गीगाग्राम है। इसके अलावा कार्बन मोनोआक्साइड का उत्सर्जन 799.023 गीगाग्राम पाया गया, जिसमें परिवहन का योगदान 540.1 गीगाग्राम था।
मालूम हो कि 2010 में वाहनों से 427.55 गीगा ग्राम प्रदूषक का उत्सर्जन हुआ था। आठ प्रमुख प्रदूषकों की उत्सर्जन सूची के अनुमान के लिए दिल्ली और निकटवर्ती एनसीआर क्षेत्र को कवर करने वाले 70 किमी गुना 65 किमी के क्षेत्र पर विचार किया गया था। फिर एक क्षेत्र अभियान के माध्यम से स्रोतों का प्राथमिक गतिविधि डेटा तैयार किया गया था।
वाहनों से बढ़ रहा प्रदूषण
पीएम 10 उत्सर्जन पर पेपर कहता है ‘पिछले 10 वर्षों में दिल्ली की सड़कों पर आसपास के राज्यों के वाहनों के साथ-साथ वाहनों की संख्या में वृद्धि ने सड़क नेटवर्क के विस्तार पर जबरदस्त दबाव डाला है, जिससे भारी यातायात जाम हो गया है। सभी प्रमुख यातायात जंक्शन उच्च उत्सर्जन भार का अनुभव कर रहे हैं।
अध्ययन में इस समस्या के समाधान के लिए बाटलनेक खत्म करने, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत बनाने, यातायात प्रबंधन, सड़कों की दोषपूर्ण डिजाइनिंग में सुधार करने तथा लंबी अवधि को ध्यान में रखकर योजना बनाने का सुझाव भी दिया गया है। हैरानी की बात यह कि परिवहन क्षेत्र में आज भी कोई सुधार नहीं हुआ है।