नई दिल्ली: मुंबई के एक डॉक्टर को इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (ITAT) ने 95 लाख रुपये के कथित डोनेशन के मामले में बड़ी राहत दी है। डॉक्टर पर आरोप था कि उसने एक मेडिकल कॉलेज में अपनी बेटी के एडमिशन के लिए 95 लाख रुपये का डोनेशन दिया था। आईटी अधिकारियों ने डॉक्टर से इस रकम का सोर्स बताने के लिए नोटिस भेजा। इस राशि पर डॉक्टर को 60 परसेंट इनकम टैक्स देना पड़ता। सरचार्ज, सेस और पेनल्टी लगाकर यह राशि 80 परसेंट से ऊपर जा सकती थी। लेकिन ITAT ने उसके खिलाफ मामले को खारिज कर दिया। ट्रिब्यूनल का कहना था कि डॉक्टर पर केवल इस आधार पर आरोप लगाए गए थे कि कॉलेज पर छापे के दौरान हड़बड़ी में लिखे गए कुछ नोट्स पाए गए थे। इस मामले में डॉक्टर ने फाइनेंशियल ईयर 2013-14 के लिए आईटी रिटर्न भरा था और अपनी कुल इनकम 64.7 लाख रुपये डिक्लेयर की थी। उनके केस को कंप्यूटर असिस्टेड स्क्रूटिनी सेलेक्शन (CASS) मैकेनिज्म के तहत सेलेक्ट किया गया। आईटी के अधिकारियों को विभाग की दूसरी यूनिट की तरफ से सूचना मिली कि डॉक्टर ने अपनी बेटी के एडमिशन के लिए Sinhgad Technical Education Society को 95 लाख रुपये का डोनेशन दिया था। इसके बाद आईटी अधिकारियों ने डॉक्टर से इस खर्च का स्रोत पूछा।
इस बारे में डॉक्टर को एक कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया। इसमें कहा गया कि 95 लाख रुपये को उनकी टोटल इनकम में शामिल क्यों नहीं किया जाना चाहिए। डॉक्टर ने कहा कि उसने केवल 5.5 लाख रुपये की ट्यूशन फीस एचडीएफसी बैंक के चेक के जरिए दी थी। मेडिकल कॉलेज पर छापे के दौरान डीन से कुछ हाथ से लिखे गए नोट्स मिले। साथ ही एक अप्रैजल रिपोर्ट में भी इस पेमेंट का जिक्र किया गया था। कमिश्नर (अपील) ने आईटी अधिकारियों की कार्रवाई को सही ठहराया। डॉक्टर ने इसके खिलाफ ट्रिब्यूनल में अपील की।
ट्रिब्यूनल ने क्या कहा
आईटीएटी ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आए दूसरे मामले से पूरी तरह अलग है। इस मामले में कॉलेज के मैनेजिंग ट्रस्टीज ने छात्रों द्वारा दिए गए डोनेशन के बारे में आईटी अधिकारियों को जानकारी दी। ट्रिब्यूनल ने कहा कि इस मामले में केवल हड़बड़ी में बनाए गए नोट को ही आधार बनाया गया है। डोनेशन देने के आरोपों को साबित करने के लिए कोई मौखिक या डॉक्यूमेंट्री सबूत नहीं हैं। ट्रिब्यूनल ने डॉक्टर को राहत देते हुए उनके खिलाफ मामले को खारिज कर दिया।