गले में स्टेथोस्कोप पहनकर इलाज करने वाले डॉक्टर्स इस बार अलग गेटअप में थे। मंच पर कोई डॉक्टर गब्बर बना था तो कोई शाकाल, कोई शक्तिमान बना था तो कोई बेड मेन, मुगेम्बो व मुन्नाभाई एमबीबीएस। अवसर था शरीर में फैलने वाले बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक्स को कैसे मारा जाए, वहीं बिना डॉक्टर की सलाह लिए एंटीबायोटिक्स कितनी घातक हो सकती है, यह सब डॉक्टरों की दो टीमों ने मंच पर दिखाया।
बैक्टीरिया जहां शरीर को पुरजोर नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे तो नायक बने ये एंटीबायोटिक्स जो उनको बड़े रोचक तरीके से खत्म कर रहे थे। करीब डेढ़ घंटे चले इस नुक्कड़ नाटक के मंचन से बैक्टीरिया और एंटीबायोटिक्स को लेकर खासा संदेश दिया था।
ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन (ISCCM) कॉन्फ्रेंस के अंतिम दिन एंटीबायोटिक्स व ICU के इन्फेक्शन को लेकर सेशन रखे गए थे। इसी से जुड़ा एक सेशन नुक्कड़ नाटक का रखा गया था। इसमें मंच पर बैक्टीरिया और एंटीबायोटिक में खासा रोचक घमासान दिखाया गया जिसमें संदेश तो थे ही लेकिन कलाकार बने डॉक्टरों ने वहां गुदगुदाया।
एब्स्ट्रेक्ट कमेटी के को-चेयरमैन डॉ. आनंद सांघी ने बताया कि इस कार्यक्रम में डॉक्टर्स ने बैक्टीरिया और एंटीबायोटिक बनकर अपने कैरेक्टर के जरिए एंटीबायोटिक के ठीक तरह से इस्तेमाल करने की सलाह दी ताकि हमारे शरीर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस ना डेवलप हो सके और जरूरत के समय पर एंटीबायोटिक खाने पर वह हमें राहत दे सकें।
को-ऑर्गेनाइजिंग चेयरमैन डॉ. संजय धानुका ने बताया कि वायरल इन्फेक्शन, फंगल इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक काम नहीं करती है। लोग कई बार खुद दुकान से एंटीबायोटिक लेकर खा लेते हैं जो गलत है।
एंटीबायोटिक लेने के पहले कल्चर टेस्ट जरूरी
उन्होंने बताया क एंटीबायोटिक कई प्रकार की आती हैं। इनमें खास तौर पर दो तरीके की होती है ग्राम पॉजिटिव व नेगेटिव। बीमारी में कई प्रकार के बैक्टीरिया होते हैं। हर बैक्टीरिया शरीर में अलग-अलग तरह के इन्फेक्शन करते हैं। गले, फेफड़ों के इन्फेक्शन में ग्राम एंटीबायोटिक्स उपयोग किया जाता है जबकि आंतों, यूरिन आदि के लिए ग्राम नेगेटिव एंटीबायोटिक यूज किए जाते हैं।
कई बार मल्टी पल बैक्टीरिया शरीर में घुस जाते हैं। ऐसे में कौन सा एंटीबायोटिक काम करेगा, यह जान लेना बहुत जरूरी है। एंटीबायोटिक लेने के बाद भी अगर बुखार नहीं उतर रहा है तो उसकी अवधि बढ़ा दी जाती है जो गलत है। ऐसे में जरूरी है कि एंटीबायोटिक लेने के पहले कल्चर टेस्ट कराएं। अगर इन्फेक्शन नेगेटिव आता है तो इन्फेक्शन नहीं होने की संभावना है।
कभी-कभी शरीर के किसी कैविटी में बैक्टीरिया इन्फेक्शन है तो वह कल्चर, ब्लड में नहीं आती लेकिन कल्चर प्राथमिकता है।
मरीज को छूने के पहले अल्कोहल बेस सॉल्युशन से हाथ साफ करें
डॉ. धानुका ने बताया कि ICU में ग्राम नेगेटिव बहुत होते हैं। बैक्टीरिया इंसान की स्किन, दीवारों आदि पर सभी में रहते हैं और इसी तरह ICU में भी रहते हैं। कोविड के बाद से ICU में अल्कोहल बेस हैंड ड्रॉप उपलब्ध रहते हैं जिससे बैक्टीरिया मर जाते हैं। यही कारण है स्टाफ मरीज को छूने के पहले अपने हाथ जरूर धोने चाहिए। हाथ धोने की भी कई स्टेप्स होती हैं। सॉल्यूशन को सूखना जरूरी है, जब तक वह सुखता नहीं तब तक बैक्टीरिया मरते नहीं हैं। सॉल्यूशन को उड़ने में 30 से 60 सेकेण्ड लगते हैं जो जरूरी है।
ICU के इक्यिपमेंट्स की दिन में चार से पांच बार विशेष प्रकार के सॉल्यूशन से सफाई की जाती है। पेट में इन्फेक्शन और आंत या अल्सर का फटने जैसी इमरजेंसी की स्थिति में ICU में आने वाले मरीजों को यदि सर्जरी की जरूरत है तो इसमें निर्णय लेने में देरी नहीं करनी चाहिए। सर्जरी में देरी से मरीज की जान भी जा सकती है। कई बार मरीज को बीपी या किडनी से जुड़ी दिक्कत भी होती है जिसमें डॉक्टर को ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
इन्फेक्शन को रोकने के लिए इस्तेमाल हो रहा सिल्वर कोटेड पाइप
ICU में एडमिट रहने वाले पेशेंट को इलाज के दौरान मॉनिटरिंग के लिए कई तरह के पाइप, ट्यूब औऱ डिवाइस बॉडी से कनेक्ट किए जाते हैं, जिनकी वजह से इन्फेक्शन का चांस बढ़ जाता है। इस तरह के इन्फेक्शन को नोसोकोमियल इन्फेक्शन कहते है, जो कि वैंटिलेटर से नहीं बल्कि उसमें लगने वाली पाइप से होता है। अब ऐसे पाइप आ रहे है जो कि सिल्वर कोटेड होते हैं, जिससे इन्फेक्शन की संभावना पहले की तुलना में कम हो गई है। यह कहना है डॉ सुरेश रामासुब्बन का।
उन्होंने कहा कि ICU के इन्फेक्शन को हैंड वाशिंग और एंटीबायोटिक के सही इस्तेमाल से काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। जब जरूरत नहीं हो तब एंटीबायोटिक्स देना बंद कर देना चाहिए। सिर्फ हाथ धोने के प्रैक्टिस से इन्फेक्शन को कम कर सकते है पर ICU के एक पेशेंट की केयर के दौरान 1 घंटे में उसे 50 बार उसे छूना पड़ता है। ऐसे में हर बार हाथ धोना संभव नहीं होता है। हैंड वॉश और सेनेटाइजिंग को लेकर लेकर डब्लूएचओ के 7 स्टैप और 5 मोमेंट बताए गए है, जिसे अपना कर इन्फेक्शन को कम कर सकते हैं।
ईको और टेक्नो फ्रेंडली कॉन्फ्रेंस
ऑर्गनाइजिंग चेयरमैन और आइएससीसीएम के अध्यक्ष डॉ. राजेश मिश्रा ने बताया कि इस कॉन्फ्रेंस को ईको और टेक्नो फ्रेंडली बनाने का प्रयास किया था। इस दौरान न तो कोई शेड्यूल प्रिंट किया गया और न ही कोई ब्रॉशर प्रिंट किया। यहां तक कि पानी भी बॉटल में नहीं सर्व किया। हम दुनियाभर से आए डेलीगेट्स को स्वच्छता और पर्यावरण को लेकर जो अवेयरनेस का लेवल है वह दिखाना चाहते थे। बाहर से आए डेलीगेट्स को यह प्रयास बेहद पसंद आया और सभी ने इसकी सराहना की। विदेशों से आए डॉक्टर्स ने कहा इंदौर शहर में सफाई को लेकर जो जुनून और मैनेजमेंट है वह हमारे देश के शहरों में भी देखने को नहीं मिलता है।
सुपर स्पेशलिस्टी के बाद ही बनते हैं क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट
आईसीयू में क्रिटिकल केयर ट्रीटमेंट देने वाले डॉक्टर्स को एमबीबीएस और एमडी के बाद सुपर स्पेशलाइजेशन करना अनिवार्य होता है यानी कम से कम दस साल के अनुभव के बाद ही कोई डॉक्टर क्रिटिकल केयर में एक्सपर्ट बनता है। यह कहना है सीनियर क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ. जीसी खिलनानी का। उन्होंने कहा कि एक समय खुद डॉक्टर्स भी मानते थे कि वेंटिलेटर पर जाने के बाद मरीज का बचाना मुश्किल है पर आज मेडिकल साइंस की उन्नति के कारण वैंटिलेटर पर जाने वाले 70 फीसदी से अधिक मरीजों की जान बचा ली जाती है।
मेडिकल कॉन्फ्रेंस में पहली बार मानवीय संवेदनाओं पर हुई बात
ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. राजेश पांडे ने इस कॉन्फ्रेंस और वर्कशॉप में शामिल होने आए सभी डेलीगेट्स और एक्सपर्टस के प्रति आभार जताया। उन्होंने कहा कि कोई भी आयोजन सिर्फ कुछ लोगों की वजह से सफल नहीं होता बल्कि उस आयोजन में शामिल हर व्यक्ति के सहयोग से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। जॉइंट ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. विवेक जोशी ने कहा कि अभी तक जो भी कॉन्फ्रेंस होती थी उसमें कई स्पीकर्स और डेलीगेट्स ऑनलाइन भी शामिल होते थे पर इस साल हमने इस कॉन्फ्रेंस को पूरी तरह से ऑफलाइन ही रखा जिससे कॉन्फ्रेंस में आने वाले डॉक्टर्स की संख्या में काफी इजाफा हुआ।
साइंटिफिक कमेटी के को-चेयरमैन डॉ निखलेश जैन ने बताया कि आमतौर पर मेडिकल कॉन्फ्रेंस बहुत ज्यादा टेक्निकल होती है जिससे आम जनता जुड़ाव महसूस नहीं करती है पर इस साल हमने कॉन्फ्रेंस में मानवीय संवेदनाओं को ज्यादा महत्व देते हुए आम लोगों को भी इससे जोड़ने का प्रयास किया।