गौतम गंभीर और विराट कोहली- ये रिश्ता क्या कहलाता है? सोमवार को लखनऊ में विराट कोहली की टीम के जीत के बाद चर्चा उस मैच की नहीं, बल्कि गंभीर और कोहली के बीच हो रही, कहा-सुनी की हो रही है। मैंने जानबूझकर तू-तू मैं-मैं शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज किया है। कौन सही और कौन गलत ये सिर्फ टीवी की उन तस्वीरों को देखने से पता नहीं चलता है, लेकिन कुछ बातें निश्चित तौर पर आपके जेहन में होंगी कि आखिर पंगा है तो क्या है?
गौतम गंभीर और विराट कोहली- ये रिश्ता क्या कहलाता है? सोमवार को लखनऊ में विराट कोहली की टीम के जीत के बाद चर्चा उस मैच की नहीं, बल्कि गंभीर और कोहली के बीच हो रही, कहा-सुनी की हो रही है। मैंने जानबूझकर तू-तू मैं-मैं शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज किया है। कौन सही और कौन गलत ये सिर्फ टीवी की उन तस्वीरों को देखने से पता नहीं चलता है, लेकिन कुछ बातें निश्चित तौर पर आपके जेहन में होंगी कि आखिर पंगा है तो क्या है?
जिस दौर में कोहली और शिखर धवन दिल्ली टीम में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे उस ड्रेसिंग रूम में आकाश चोपड़ा, गंभीर, सहवाग, आशीष नेहरा, विजय दाहिया और अमित भंडारी जैसे ना जाने कितने सीनियर खिलाड़ियों का जमघट लगा रहता था। किसी भी युवा खिलाड़ी के लिए दिल्ली टीम में अपनी जगह बनाना आसान नहीं था। इसके बाद 2008 में जब कोहली भारतीय टीम में आए तो वो सहज तरीके से धोनी के बेहद करीब हुए। ये करीबी आज बड़े भाई और छोटे भाई के रिश्ते में तब्दील हो गई है।
लेकिन, गंभीर जो 2007 में वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे या फिर 2011 में कोहली के साथ मिलकर वर्ल्ड जिताने में यादगार किरदार निभाया, वो कोहली के साथ भारतीय ड्रेसिंग रूम में भी बहुत दोस्ताना नहीं रहे। क्या गंभीर के खफा होने की वजह ये रही कि उनके शहर दिल्ली का लड़का कोहली उनसे करीब ना होकर धोनी के करीब हो गया?
रिटायरमेंट के बाद गंभीर ने क्या धोनी और क्या कोहली, कभी भी अपने शब्दों के चयन में आलोचना के दौरान किसी तरह की कोताही नहीं बरती। गंभीर को इसलिए एक अलग सम्मान भी मिलता है कि जिस भारतीय क्रिकेट में दिग्गज खिलाड़ियों के मुंह से स्टार खिलाड़ियों के प्रति तारीफ के दो शब्दों के अलावा कभी कुछ और नहीं निकलता है उसमें से गंभीर की आवाज सुखद थी जो एक अलग नजरिया लेकर आती थी।
सोमवार को किसी टीम के मेंटॉर के तौर पर गंभीर का खिलाड़ी कोहली से भिड़ना थोड़ा अनुचित दिखा। गैरी कर्स्टन से लेकर सचिन तेंदुलकर तक इस आईपीएल के दौरान मेंटॉर की भूमिका निभा रहे हैं। मेंटॉर तो हेड कोच की भूमिका नहीं निभाता है, उसका तो काम ही यही होता है कि खिलाड़ियों को कैसे संयमित किया जाए। कैसे उन्हें अपने अनुभव से समझाया जाए कि खेल के दौरान उन्मादी लम्हों में अपना आपा नहीं खोना है। लेकिन, गंभीर तो इशके उलट अभी भी खिलाड़ी गंभीर वाली छवि में ही नजर आए।
शायद गंभीर भूल गए कि वो मेंटॉर हैं और ना कि कतर में लीजेंड्स लीग में खेल रहे हैं। ऐसी भूल बार-बार भूमिका बदलने से हो जाती है। आप किस वक्त सांसद हैं, किस वक्त कॉमेंटेटर और किस वक्त मेंटॉर और किस वक्त खिलाड़ी… ये किसी को भी कंफ्यूज कर सकता है। क्या गंभीर भी विराट से उलझने के समय अपने मन में सही भूमिका को लेकर चल रही उलझन का शिकार तो नहीं हो गए?
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