एनकाउंटर पर क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट
23 सितंबर 2014 को तत्कालीन चीफ जस्टिस आरएम लोढा और आरएफ नरीमन की पीठ ने इस बाबत 16 पॉइंट्स की विस्तृत गाइडलाइंस जारी की थी। कोर्ट ने एक फैसले में कहा था, ‘पुलिस की कार्रवाई में इस तरह से होने वाली मौत के सभी मामलों में मजिस्ट्रेट जांच जरूरी है। जांच में मृतक के परिवार के सदस्य को भी शामिल किया जाना चाहिए। आपराधिक कार्रवाई का आरोप लगाते हुए पुलिस के खिलाफ शिकायत किए जाने पर हर मामले में आईपीसी की संबंधित धाराओं में एक एफआईआर अवश्य दर्ज की जानी चाहिए। यह गैर-इरादतन हत्या का मामला बनता है।’ कोर्ट ने आगे कहा था कि CRPC 1973 की धारा 176 के तहत की गई जांच में यह पता चलना चाहिए कि क्या इस तरह का ऐक्शन जायज था या नहीं? जांच के बाद धारा 190 के तहत न्यायिक मजिस्ट्रेट को एक रिपोर्ट भेजी जानी चाहिए।
गाइडलाइंस में यह भी कहा गया है कि जब भी पुलिस को किसी अपराधी की मूवमेंट या गतिविधि के बारे में इनपुट मिलता है तो उसे केस डायरी या इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में कुछ लिखित रूप से दर्ज करना जरूरी है। इसके बाद अगर कोई एनकाउंटर होता है और पुलिस टीम द्वारा हथियार के इस्तेमाल से मौत होती है तो बिना देर किए सेक्शन 157 के तहत एफआईआर दर्ज कर कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए। एनकाउंटर में एक स्वतंत्र जांच के लिए प्रावधान है जिसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (एनकाउंटर वाली पुलिस टीम के हेड से ऊपर के) की निगरानी में सीआईडी या दूसरे थाने की पुलिस टीम द्वारा की जानी चाहिए। संविधान के आर्टिकल 141 के तहत कोर्ट ने निर्देश दिया है कि सभी पुलिस एनकाउंटर में हुई मौतों और गंभीर चोट के मामलों में इसका पालन किया जाना चाहिए। आर्टिकल 141 कहता है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया निर्देश भारतीय भूभाग में बाध्यकारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर स्वतंत्र जांच को लेकर गंभीर रूप से संदेह पैदा न हो तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को रिपोर्ट देना जरूरी नहीं है। हालांकि घटना के बारे में जानकारी एनएचआरसी या राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजी जानी चाहिए। इन्हीं गाइडलाइंस के आधार पर टॉप कोर्ट ने यूपी सरकार से गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर की जांच का आदेश दिया था। ऐसा कहा गया था कि 2020 में मध्य प्रदेश से लाए जाते समय उसने भागने की कोशिश की थी और पुलिस की गोली से मारा गया।
मानवाधिकार आयोग क्या कहता है?
मार्च 1997 में NHRC के तत्कालीन चेयरपर्सन पूर्व सीजेआई एमएन वेंकटचेलैया ने सभी मुख्यमंत्रियों को लिखा था कि एनएचआरसी को शिकायतें मिल रही है कि फेक एनकाउंटर बढ़ रहे हैं। एनजीओ और आम लोगों की शिकायत है कि पुलिस तय कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बगैर आरोपियों को मार देती है। लेटर में कहा गया था, ‘हमारे कानून के तहत पुलिस के पास किसी दूसरे व्यक्ति की जान लेने का कोई अधिकार नहीं है। अगर इसके जरिए पुलिसकर्मी किसी व्यक्ति की हत्या करता है तो यह हत्या का मामला है। हालांकि कानूनी तौर पर साबित होना चाहिए कि ये हत्या गुनाह था या नहीं।’
इसके बाद NHRC ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि पुलिस एनकाउंटर में होने वाली मौत के मामले में दिशानिर्देशों का पालन किया जाए। पुलिस इस मामले से जुड़ी सभी जानकारियां एक रजिस्टर में दर्ज करे। साथ ही स्टेट सीआईडी जैसे स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जानी चाहिए। गाइडलाइंस में कहा गया, ‘एनकाउंटर से पहले मिली जानकारी पर्याप्त होनी चाहिए और सच्चाई की जांच के लिए हालात की जांच की जानी चाहिए।’ 2010 में इसमें कुछ संशोधन किया गया और FIR दर्ज करने, मजिस्ट्रेट जांच और ऐसी मौत के 48 घंटे के भीतर जिले के एसपी या वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की ओर से NHRC को रिपोर्ट देना जरूरी है।