नई दिल्ली। दिल्ली पुलिस ने सोमवार को नकली चेक बनाने और सार्वजनिक बैंक से 5.20 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने के आरोप में एक 56 वर्षीय सिविल इंजीनियर को गिरफ्तार किया है। आरोपित ने पुलिस को बताया कि उसने 1.52 करोड़ रुपये बैंक से नकद निकाले, जबकि शेष रुपये फर्जी कंपनियों के विभिन्न खातों में भेज दिए।
पुलिस ने सोमवार को आरोपित की गिरफ्तारी के बारे में जानकारी देते हुए कहा, दिल्ली के संसद मार्ग स्थित एक सार्वजनिक बैंक से एक निजी विश्वविद्यालय के खाते में फर्जी तरीके से पैसे निकालने के संबंध में शिकायत मिली थी।
गुजरात और एमपी के खातों में ट्रांसफर किए थे पैसे
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि अगस्त, 2019 में कथित तौर पर विश्वविद्यालय से जारी किए गए तीन चेक क्लीयरेंस के लिए बैंक में पेश किए गए थे। एक बैंक के माध्यम से क्लीयरेंस के लिए दो चेक प्रस्तुत किए गए और उनका क्लीयरेंस हो गया।
5.20 करोड़ रुपये की राशि दो अलग-अलग खातों में स्थानांतरित किया गया था। एक खाता गुजरात के वडोदरा का है, जबकि दूसरा एमपी के बैतूल का है। तीसरा चेक एक अलग बैंक के माध्यम से पेश किया गया था, लेकिन प्रक्रिया के दौरान भुगतान की राशि रोक दी गई थी।
पुलिस उपायुक्त ने कहा। (EOW) विक्रम पोरवाल ने कहा कि सबसे पहले इस राशि को दिल्ली की पांच फर्जी कंपनियों के खाते में भेजा गया। इसके बाद पैसे को अलग-अलग खातों ट्रांसफर कर दिया।
शुरुआती जांच के दौरान पता चला कि 2.5 करोड़ रुपये का चेक गुजरात के वडोदरा में एनएस इंफ्रास्ट्रक्चर के खाते में जमा किया गया था और 2.7 करोड़ रुपये का एक चेक मध्य प्रदेश के बैतूल में एक एनजीओ के खाते में जमा किया गया था। इसके अलावा 2.07 करोड़ रुपये फिर से एनजीओ के खाते से एनएस कंस्ट्रक्शन के खाते में भेज दिए गए।
आरोपित ने अपने हिस्से के तौर पर रख 42 लाख
डीसीपी ने कहा कि दोनों कंपनियां शरद नागरे की पत्नी संगीता नागरे के नाम पर पंजीकृत पाई गईं थीं। आरोपित द्वारा अपने मोबाइल का उपयोग करके 4.16 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई राशि को पांच कथित शेल फर्मों के खाते में दिल्ली में ट्रांसफर कर दिया गया, जबकि धोखाधड़ी की रकम में से 42 लाख रुपये उसने अपने हिस्से के तौर पर रख लिए।
पुलिस के अनुसार, आरोपित ने बताया कि फर्जी कंपनियों के बैंक खातों का विवरण अमित अग्रवाल, जिसे पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है और अशोक द्वारा प्रदान किया गया था। कथित तौर पर पीड़ित बैंक द्वारा जारी किए गए जाली चेक का उपयोग उस राशि को निकालने के लिए किया गया था। जिसे विभिन्न खातों में भेज दिया गया था। इन खातों से रकम फर्जी कंपनियों के खातों में पहुंचाई गई।