बटोगे तो कटोगे का पौराणिक/ऐतिहासिक प्रमाणीकरण।
ब्यूरो बांदा
बांदा-पं० विभूति भूषण दीक्षित की ✍️ से यह वाक्य विशुद्ध रूप से पौराणिक/ऐतिहासिक दृष्टांत में भी पूर्व घोषित पाए गए हैं।
एक बात पुरातन से है इसी के संबंध में एक नजर भूरा गढ़ किले के इतिहास मे ,
महाराज छत्रसाल के पुत्र जगत राज के मझले पुत्र पहाड़ सिंह की चौथी पीढ़ी मे महाराज परीक्षित का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम केशरी सिंह था,सन 1842 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारियों से महाराज के वैचारिक मतभेद के चलते, प्रतिष्ठा को लेकर ठन गई। जबकि महाराज स्वाभिमानी थे,उन्हें अंग्रेजों की दासत्व स्वीकार नहीं था। जैतपुर बेलाताल रियासत का एक कथित दीवान खेत सिंह अंग्रेजों का मित्र था। वह राजा की चुगली कर खुद शासक बनना चाह रहा था। इस कारण से राजा के कार्यो मे हस्तक्षेप करने लगा,महाराज ने आसपास के सभी राजाओं को एकत्रित कर अंग्रेजों के विरुद्ध मोर्चा लेने की योजना बनाई। जिसमें चरखारी नरेश अंग्रेजों का मित्र था,उसने इसका बहिष्कार किया परंतु राजा परीक्षित और अंग्रेजों का युद्ध हुआ तब परीक्षित राजा ने आसपास के सभी राजाओं के बीच कहा था कि बटोगे तो कटोगे बुंदेलखंडी कवियों ने भी अपनी रचित पंक्तियों से इशारा किया है। गीतों के माध्यम से ———-!!
राजन की गोली ओ बावन के बान।
फिरंगियों को मारो परिक्षित के जवान।।
आसपास के बिगरे राजा चरखारी में मौज मस्ती कर रहे थे और जो वीर राजा थे जैतपुर परीक्षित के पास गए उनको प्रणाम किया तब परीक्षित महाराज ने कहा बटोगे तो कटोगे कवियों ने कहा———!!
बिगरे राजा जुर बैठे,चरखारी में बुढ़वा दंगल कीन्ह।
वीरन राजा गये जैतपुर,परीक्षित को मुजरा दीन।।
बांदा की मेडन ठटी बरछी,अबकी वेर हलाऊं धरती।
कर ली पूजा सुमर लये राम,भूरागढ़ के किले में खूब लड़ी जवान।।
आज फिरंगी महोबे को जाय,परीक्षित राजा खदेड़त जाब।
नौ सौ खुरपी हजार हसियां,नदिया नदिया भागे नवाब।।
वेदव्यास जी ने महाभारत के मास पर्व में बताया है की जब पांडवों को जब 12 वर्ष का वनवास मिला। उसी समयकाल में दुर्योधन विचरण करता हुआ जंगलों में प्रवेश कर गया वहां यक्ष राज की लड़की के साथ अभद्र व्यवहार करने से कुपित होकर वहां के राजा ने दुर्योधन को बंदी बना लिया। ये बात जब युधिष्ठिर को पता चली तो उन्होंने भीम ओर अर्जुन को कहा आज देख लो ये बात चरितार्थ हो गई बाटोगे तो कटोगे।