नई दिल्ली: संसद के बजट सत्र में देश की सियासत की दिशा भी साफ दिख रही है। इसमें बीजेपी को घेरने के लिए विपक्ष की बदली रणनीति सामने आई, तो अपने रुख पर टिके रहने की सत्ताधारी दल की मंशा भी। आम चुनाव से करीब एक साल पहले हो रहे सत्र में जहां विपक्ष ने सरकार को घेरने के लिए सावधानी से मुद्दे चुने, वहीं बीजेपी आजमाए हुए पुराने फॉर्म्युले पर टिकी रही। विपक्ष और बीजेपी के बीच चुनावी लड़ाई को अपने मैदान में लाने की यह रस्साकशी अभी जारी रहेगी और 2024 में लोकसभा चुनाव की अंतिम पिच इसी कशमकश के बीच तैयार होगी। बजट सत्र में विपक्ष ने अडाणी ग्रुप के खिलाफ आई अमेरिकी एजेंसी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के आधार पर मोदी सरकार को निशाने पर लेने की रणनीति बनाई। पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए इस बार उसने मुद्दे को आम लोगों से भी जोड़ा। आरोप लगाया कि यह मामला पब्लिक की मेहनत से जमा की गई पूंजी से जुड़ा है। इसे बेरोजगारी, महंगाई से भी जोड़ा गया। राहुल गांधी ने भी जब लोकसभा में इस मुद्दे को उठाया तो विभिन्न क्षेत्रों में हुई गड़बड़ियों से जोड़ते हुए उसके तमाम पहलुओं पर बात की।
रफाल मामले से सबक
कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को पता है कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले रफाल के मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाने का उन्हें एक तरह से नुकसान झेलना पड़ा था। वे इसे न तो आम लोगों के सरोकार से जोड़ सके थे, न उनसे कनेक्ट कर पाए। इसका नुकसान यह हुआ कि वे आम लोगों से जुड़े दूसरे मुद्दे उठाने में भी असफल रहे। पिछले लोकसभा चुनाव की गलती से सीख लेते हुए विपक्ष ने अब जो नई रणनीति बनाई है, उससे संकेत मिल रहा है कि वह मुद्दों को भावनात्मक तौर पर पर नहीं बल्कि व्यावहारिक धरातल पर और आम लोगों के चश्मे से उठाएगा। 2019 आम चुनाव में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद जिस तरह उन्होंने इस मुद्दे को उठाया, उसका भी बड़ा सियासी नुकसान इन दलों को हुआ। वे आपसी बातचीत में इसे स्वीकार भी करते हैं। यही कारण है कि हिंदुत्व या राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से दूरी रखने की भी मंशा अब उनके अंदर साफ दिख रही है।
हालांकि इसे लेकर विपक्ष पर भी सवाल उठे हैं। आरोप लगा कि अल्पसंख्यकों से ये दल दूरी बना रहे हैं, सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर जा रहे हैं। इसके बावजूद विपक्ष इन बातों को नजरअंदाज कर रहा है। यही नहीं, अब विपक्षी दल वक्त रहते अपनी गलतियों को करेक्ट करना भी सीखने लगे हैं। भारत जोड़ो यात्रा के अंतिम चरण में जब कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्वजिय सिंह ने एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाते हुए उसका सबूत मांगा तो पार्टी ने बीजेपी के जवाबी हमला करने से पहले ही न सिर्फ उनके बयानों से खुद को अलग किया बल्कि पार्टी के सीनियर नेता के बयान के विरुद्ध स्टैंड भी लिया। कांग्रेस ही नहीं, दूसरे विपक्षी दल भी इसी रास्ते पर चल रहे हैं। कभी अगर उनके नेता ऐसे विवादित बयान देते भी हैं तो ये दल सार्वजनिक तौर पर उस नेता के बयान की आलोचना करने से नहीं हिचकते। लेकिन क्या विपक्ष अगले लोकसभा चुनाव तक अपनी इस पिच पर टिका रहेगा या पहले की तरह अंतिम मौके पर इसे छोड़ देगा।
बीजेपी के तरकश में हैं कई तीर
विपक्ष ने अपनी पुरानी गलतियों से सीख लेकर बीजेपी को काउंटर करने के लिए जो नई रणनीति बनाई है, उसके लिए उसने कुछ मुद्दे चुने हैं। सरकारी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना जैसे मुद्दे को स्थापित करना या महिलाओं को हर महीने पगार देने की लगातार घोषणा इसी का हिस्सा है, जिससे विपक्ष बीजेपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगाना चाहता है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में इसी रणनीति के तहत कांग्रेस को कामयाबी मिली।
हालांकि बीजेपी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि अभी अगले एक साल के लिए उसके तरकश में कई तीर हैं, जिनसे वह विपक्ष के सारे दांव नाकाम कर देगी। जी-20 सम्मेलन, राम मंदिर की स्थापना जैसे मुद्दों को लेकर पार्टी का मानना है कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले ही वह ड्राइविंग सीट पर होगी। हालांकि यह भी सही है कि अगले साल से पहले 9 राज्यों के चुनाव परिणाम भी आ जाएंगे। इसके अलावा कई मुद्दे अचानक भी आ जाते हैं। इसलिए आम चुनावों से पहले फिलहाल राजनीति की कोई दिशा अंतिम नहीं कही जा सकती।