*गुरु अर्जन देव जी: सिख धर्म के पहले शहीद और आदि ग्रंथ के संपादक: बीबी बलवंत कौर*
संत कबीर नगर 28 मई 2025।
आज सिख धर्म के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी की शहादत को स्मरण किया जा रहा है। वे न केवल सिख पंथ के आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, बल्कि सिख इतिहास में पहले शहीद भी माने जाते हैं।
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 1563 में गोइंदवाल में हुआ था। वे 1581 में अपने पिता गुरु रामदास जी के उत्तराधिकारी बने और सिख धर्म के पाँचवें गुरु के रूप में गुरुगद्दी संभाली।
उनके नेतृत्व में सिख धर्म ने आध्यात्मिक और सामाजिक रूप से एक नई दिशा पाई। उन्होंने सिख धर्मग्रंथ ‘आदि ग्रंथ’ का संपादन कर उसे एक ग्रंथ रूप में संगठित किया। यह ग्रंथ बाद में गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में प्रतिष्ठित हुआ, जिसमें न केवल सिख गुरुओं की वाणी, बल्कि कबीर, नामदेव, रविदास जैसे अन्य संतों की रचनाएँ भी शामिल हैं।
गुरु अर्जन देव जी का एक और ऐतिहासिक योगदान स्वर्ण मंदिर (हरमंदिर साहिब) का निर्माण है। अमृतसर स्थित यह तीर्थ सिख आस्था का केंद्र है और इसकी नींव भी एक सूफी संत मियां मीर ने रखी थी, जो उनके सर्वधर्म समभाव के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
हालाँकि उनके जीवन का अंत अत्यंत पीड़ादायक रहा। 1606 में मुगल सम्राट जहांगीर के आदेश पर उन्हें लाहौर में अमानवीय यातनाएं दी गईं और शहीद कर दिया गया। उनकी शहादत सिखों के लिए बलिदान और धैर्य का प्रतीक बन गई।
आज भी गुरु अर्जन देव जी की शिक्षाएँ और बलिदान करोड़ों लोगों को सत्य, सहिष्णुता और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करते हैं।





