चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को एक भूमि विवाद मामले की जांच करने का आदेश दिया है जिसमें एक सिविल जज व पुलिस पर आरोपित व्यक्तियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया गया है। हाई कोर्ट ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन)/न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी नवरीत कौर के खिलाफ आरोपों की जानकारी प्रशासनिक जज (हाई कोर्ट के जज) को भी भेजने का आदेश दिया।
जज के खिलाफ आरोपों पर टिप्पणी करना उचित नहीं समझती अदालत
हाई कोर्ट ने कहा कि अदालत सिविल जज के खिलाफ आरोपों पर आगे टिप्पणी करना उचित नहीं समझती है। हाई कोर्ट के जस्टिस पंकज जैन ने कहा कि मामले के तथ्यों से चौंकाने वाली कहानी सामने आई है कि कैसे बेईमान तत्वों द्वारा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया। हाई कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को मामले की जांच करने का निर्देश देने से पहले कहा, याचिकाकर्ताओं ने इसे ‘फोरम शॉपिंग’ कहा था, लेकिन यह उससे परे लगता है।
पीठ ने कहा यह अदालत इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो शीघ्रता से, बेहतर होगा कि छह महीने के भीतर जांच पूरी कर लेगा। पीठ ने इस मामले में “आरोपितों के अवैध मंसूबों” को पूरा करने के लिए जिस तरह से कानूनी प्रक्रिया अपनाई गई और समय-समय पर अपना रुख बदलने में पंजाब पुलिस के आचरण पर गौर किया। जस्टिस जैन ने कहा सिस्टम पर पड़ने वाले प्रदूषक प्रभाव को शुरुआत में ही खत्म करने की जरूरत है और किसी भी प्रदूषक के खिलाफ कड़ी निगरानी रखने की जरूरत है।
मामला 100 करोड़ की जमीन के स्वामित्व से संबंधित है, जो पंजाब के मोहाली जिले में दिल्ली स्थित गुरु नानक विद्या भंडार ट्रस्ट की थी। पुलिस स्टेशन जीरकपुर में दर्ज एक एफआईआर में आरोप लगाया गया कि कुछ व्यक्तियों ने जमीन पर मालिकाना हक हासिल करने के लिए एक फर्जी ट्रस्ट बनाया और जाली दस्तावेज बनाए। एफआईआर, जो कि मोहाली के जीरकपुर में 8 एकड़ जमीन से संबंधित है, में उल्लेख किया गया है कि यह जमीन 1986 में खरीदी गई थी और तब से जमीन का कब्जा ट्रस्ट के पास है।
जमीन हड़पने के लिए दस्तावेजों में जालसाजी का आरोप लगाने के अलावा, शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपित व्यक्ति मार्च 2022 में वहां के सुरक्षा गार्डों की पिटाई करने के लिए संपत्ति में घुस गए थे। ट्रस्ट ने अंततः इस साल की शुरुआत में हाई कोर्ट दरवाजा खटखटाया और ट्रस्ट की जमीन पर कब्जा करने के कथित अवैध प्रयासों की सीबीआई या विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने की मांग की।
ट्रस्ट ने दलील दी कि आरोपित डेरा बस्सी की एक अदालत से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त करने में भी कामयाब रहा। हालांकि, बाद में यह आदेश इस टिप्पणी के साथ रद्द कर दिया गया कि इसे दस्तावेजों को गलत तरीके से पेश करके प्राप्त किया गया था।
जमीन हड़पने के लिए दस्तावेजों में जालसाजी का आरोप लगाने के अलावा, शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपित व्यक्ति मार्च 2022 में वहां के सुरक्षा गार्डों की पिटाई करने के लिए संपत्ति में घुस गए थे। ट्रस्ट ने अंततः इस साल की शुरुआत में हाई कोर्ट दरवाजा खटखटाया और ट्रस्ट की जमीन पर कब्जा करने के कथित अवैध प्रयासों की सीबीआई या विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच कराने की मांग की।
ट्रस्ट ने दलील दी कि आरोपित डेरा बस्सी की एक अदालत से अंतरिम निषेधाज्ञा प्राप्त करने में भी कामयाब रहा। हालांकि, बाद में यह आदेश इस टिप्पणी के साथ रद्द कर दिया गया कि इसे दस्तावेजों को गलत तरीके से पेश करके प्राप्त किया गया था।
सिविल जज के खिलाफ आरोप
इस साल फरवरी में इस मामले ने एक दिलचस्प मोड़ ले लिया जब हाई कोर्ट को बताया गया कि एक वकील ने जज नवरीत कौर से दो संदिग्ध आदेश जारी करने में सफल रहा जो ट्रस्ट या उसके भूमि विवाद से असंबंधित थे।इन दो असंबंधित मामलों में, सिविल जज कौर ने एडवोकेट विकास कुमार द्वारा दायर किए गए एक आवेदन की अनुमति दी थी, जिसमें बैंक जहां ट्रस्ट के खाते थे के एक वरिष्ठ अधिकारी को बुला कर ट्रस्ट के खातों की जानकारी देने को कहा गया।
याचिकाकर्ता ट्रस्ट ने आरोप लगाया कि ऐसे मामलों में उनके खाते के विवरण मांगे जा रहे थे, इस मामलों से जुड़ा नहीं था। इसके बाद हाई कोर्ट ने जहां ट्रस्ट के खाते थे। इसके बाद हाई कोर्ट ने सिविल जज से इस तरह के आदेश जारी करने पर जवाब तलब किया था।
हाई कोर्ट ने सिविल जज कोई और टिप्पणी करने से इनकार करते करते हुए कहा कि इस मामले में सिविल जज प्रतिक्रिया को टालमटोल करने वाला जवाब है। इस पृष्ठभूमि में, पीठ ने देखा कि यह स्पष्ट था कि सिस्टम के रखवाले जिनसे कानून का सही दिशा में प्रयोग करने की उम्मीद होती है वो गलत दिशा में जाकर कानून का प्रयोग करने लगे।
हाई कोर्ट ने पंजाब पुलिस पर उठाए सवाल
पीठ ने ने इस मामले पर पंजाब पुलिस के रवैये की आलोचना की, खासकर जब मामला हाई कोर्ट के समक्ष लंबित था। कोर्ट ने कहा इससे पता चलता है कि न तो अपराध नियमित है और न ही दोषी को हल्के में लिया जा सकता है।अगस्त 2023 में पुलिस ने इस मामले में एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए कहा था कि यह मामला मूलतः भूमि विवाद है।
हालाांकि, 18 अक्टूबर को पुलिस ने अपना रुख बदल दिया और कहा कि तीन आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था और अन्य आरोपियों की भूमिका की अभी भी जांच चल रही है। हाई कोर्ट ने कहा कि इस लिए इस मामले की जांच सीबीआइ से करवाना जरूरी है ताकि लोगों को सिस्टम पर भरोसा कायम रहे।