राजधानी में घोड़ों की रफ्तार, साहस और रोमांच का खेल घुड़सवारी की नेशनल जूनियर चैंपियनशिप सोमवार से शुरू हो रही है। देशभर से यहां 200 खिलाड़ी और घोड़े आए हुए हैं। रॉयल माना जाने वाला यह गेम सीखना जितना मुश्किल है, उतना ही मंहगा भी है। इस गेम में आने वाले खर्च के बारे में कम ही लोग जानते हैं। ट्रेनिंग से लेकर डाइट तक में इसमें हजारों रुपए खर्च होते हैं। पार्टिसिपेंट ने बताया- घुड़सवार को सिर्फ ट्रेनिंग के लिए कितना खर्च करना पड़ता है।
आगे बढ़ने से पहले पार्टिसिपेंट के घोड़े के बारे में जानते हैं
चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जयपुर से भोपाल आईं सेकंड ईयर की छात्रा ज्योति अपने घोड़े को ‘सिल्वर स्टिक’ नाम से बुलाती हैं। उसे एयर कंडीशनर में रखा जाता है। उसे हिमालय फीड (हर्बल सप्लीमेंट) देती हैं। ज्योति बताती हैं कि उन्होंने कोरोना के दौरान घुड़सवारी शुरू की थी। अभी तीन साल ही हुए हैं। वह सिर्फ घोड़ा नहीं है, उसका नाम है सिल्वर स्टिक। वह 18 साल का है। सिल्वर जिस भी इवेंट में जाता है, मेडल जीतकर आता है। एशियन गेम्स की ट्रायल जीत चुका है। वह सुपर हॉर्स है। हम सिल्वर को हिमालय फीड देते हैं। वह एसी बस में ही एक जगह से दूसरी जगह जाता है।
यह दी जाती है डाइट
ज्योति ने बताया कि घोड़े के साथ एक हैंडलर पूरे समय रहता है। वह घोड़ों का ध्यान रखता है। उन्हें भरपूर मात्रा में प्रोटीन दिया जाता है। इन्हें घी-गुड़ भी खिलाया जाता है। इन्हें रोज 100 ग्राम सरसों का तेल पिलाया जाता है। वहीं, 1 किलो 360 ग्राम चना, 2 किलो 40 ग्राम जौ, 1 किलो 130 ग्राम चोकर रोजाना की डाइट में हर घोड़े के लिए शामिल किया है।
रोजाना सुबह-शाम सिर्फ 45-45 मिनट ट्रेनिंग
ज्योति के मुताबिक रोजाना सुबह-शाम ट्रेनिंग होती है। घोड़े के साथ हम सुबह और शाम को सिर्फ 45-45 मिनट ट्रेनिंग करते हैं। इसके बाद हैंडलर उसके आराम से लेकर पूरा ख्याल रखता है। ट्रेनिंग के दौरान ही खिलाड़ी से बॉडिंग हो जाती है। ऐसे में आगे दिक्कत नहीं होती।
मेडिकल जांच के बाद ही मैदान में उतर सकता है
टूर्नामेंट में शामिल होने के बाद पहले घोड़े का मेडिकल चेकअप होता है। उसे मेडिकल टीम के सामने चलाया जाता है। इसके अलावा अन्य तरह से जांच होती है। अगर लगता है कि घोड़ा स्वस्थ नहीं है, तो उसे मैच नहीं खेलने नहीं दिया जाता। ऐसे में वह टूर्नामेंट से बाहर हो जाता है।
इस कारण समस्या हो सकती है
अधिकांश घोड़ों को एसी बस से लाया और ले जाया जाया जाता है, लेकिन कई घोड़ों को सामान्य ट्रक से भी ले जाया जाता है। कई बार घोड़े को गाड़ी से उतरने के दौरान चोट लग जाती है। इससे वह टूर्नामेंट से बाहर हो जाता है। इसके लिए सफर के दौरान भी चोट लगने और अन्य समस्या होने की आशंका रहती है।
इस तरह बढ़ जाती है कीमत
ज्योति ने बताया कि घोड़ा 1 लाख से लेकर 90 लाख रुपए तक के आते हैं। घोड़े जितने ज्यादा ट्रेनिंग करते हैं, उतने ही परफेक्ट होते जाते हैं। घोड़े की क्षमता के अनुसार ही कीमत तय होती है। जैसे- वह कितनी लंबी जंप कर सकता है। कितनी देर तक दौड़ते हुए सभी इवेंट का सही तरीके से क्लियर करता है। उसकी चाल से लेकर हर तरह की गतिविधियां ही मायने रखती है।
इसलिए यह सबसे महंगा गेम
ज्योति ने बताया कि उनकी अकादमी की फीस ही 50 हजार रुपए महीना है। ट्रेनिंग के लिए घोड़ा होना जरूरी है। घोड़े को लीज पर लिया जा सकता है। यह खर्च अलग होता है। उसके लिए खास खुराक देनी होती है। इसके साथ एक हॉर्स के साथ राइडर के अलावा कोच, गाड़ी का ड्राइवर और हैंडलर तो होते ही हैं। हैंडलर हर समय घोड़े के साथ रहता है। इन सबके फीस और खर्च जोड़ दिए जाएं तो वह बहुत ज्यादा होता है।
मप्र अकादमी के पास 32 हॉर्स
मध्यप्रदेश शासन के खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा संचालित घुड़सवारी अकादमी में 32 हॉर्स हैं। अकादमी में भी एक घोड़ा 63 लाख रुपए का है, जो जर्मनी से खरीदा गया था, जबकि आयरलैंड से खरीदे गए दो घोड़े क्रमश: 50 और 40 रु. लाख के हैं। यह तीनों फिलहाल आयरलैंड में ही हैं, जहां अकादमी के घुड़सवार भोलू परमार ट्रेनिंग के साथ-साथ तीनों घोड़ों की देखरेख कर रहे हैं।
क्रिस्टी है सबसे महंगा घोड़ा
भोपाल में सबसे कीमती घोड़ा 90 लाख रुपए का है। यह घोड़ा मध्यप्रदेश की सुदीप्ति हजेला का है। उनके पास तीन घोड़े हैं, जो इस समय भोपाल में ही हैं। इस टूर्नामेंट में शामिल होने जा रहे हैं। दो अन्य घोड़े भी 40-40 लाख रुपए के हैं। सुदीप्ति फ्रांस में रहकर ट्रेनिंग कर रही हैं।
25 एकड़ में फैली है अकादमी
टूर्नामेंट 25 एकड़ में फैली मप्र घुड़सवारी अकादमी में होने जा रहा है। यह विशनखेड़ी में बनी है। इनके लिए अस्थायी अस्तबल (टेंट सिटी) बनाए हैं। ये सभी टॉप क्लास के हैं। इन घोड़ों की कीमत 10 लाख से लेकर 90 लाख रुपए तक है।