मॉस्को: भारत और रूस पिछले कई दशकों से रणनीतिक साझीदार बने हुए हैं मगर फरवरी 2022 से जारी यूक्रेन जंग की वजह से रिश्तों में नया टर्न आ गया है। इस जंग ने चीन को रूस के करीब आने का मौका दे दिया है। भारत और रूस आर्थिक संबंधों को और गहरा करना चाहते हैं। मगर जब से चीन की एंट्री हुई है जब से ही भारत अलर्ट है। कुछ भारतीय और विदेशी जानकारों की मानें तो मार्च में जब से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का मॉस्को दौरा हुआ है तब से ही भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में कहा कि देश रूस के साथ मुक्त व्यापार वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए तैयार है। उनका कहना था, ‘हमारी साझेदारी आज ध्यान और टिप्पणी का विषय है, इसलिए नहीं कि यह बदल गया है, बल्कि इसलिए कि यह दुनिया में सबसे स्थिर है।’ पिछले दिनों भारत आए रूस के उप प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने कहा कि उनका देश भारत के साथ मुक्त व्यापार चर्चा में तेजी लाना चाहता है।ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में अध्ययन और विदेश नीति के उपाध्यक्ष हर्ष वी पंत मानते हैं कि मजबूत आर्थिक सहयोग के प्रदर्शन के बावजूद, भारत के नेता काफी अलर्ट हैं क्योंकि रूस और ज्यादा अकेला हो गया है और ऐसे में वह चीन करीब आ गया है। उन्होंने बताया कि रूस की कमजोर स्थिति के अलावा आर्थिक और रणनीतिक कारणों से चीन पर बढ़ती उसकी निर्भरता निश्चित रूप से भारत के लिए चिंताजनक होगी।
कठिन होती जा रही स्थिति
पंत ने कहा कि बीजिंग और मॉस्को के बीच जो करीबी है, उसके कारण यह हर गुजरते दिन के साथ स्थिति और अधिक कठिन होती जा रही है। उनका मानना है कि भारत पर दबाव बढ़ रहा है और वह निश्चित रूप से ऐसा होते नहीं देखना चाहेगा। उनका मानना है कि भारत संभावित रूस-चीन गठजोड़ से बचने की यथासंभव कोशिश करेगा। अगर ऐसा होता है तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे और यह भारत की विदेश नीति और रणनीतिक गणना को मौलिक रूप से बदल देगा।
रूस से मिलिट्री सप्लाई मुश्किल में
भारत इस समय जी-20 का अध्यक्ष है। उसने अभी भी यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा नहीं की है। रूस ने मार्च के अंत में अपना नया विदेश नीति सिद्धांत में कहा था वह भारत के साथ विशेषाधिकार वाली रणनीतिक साझेदारी का निर्माण जारी रखेगा। भारत और रूस के बीच शीत युद्ध के समय से रणनीतिक रिश्ते हैं। भारत अपने सैन्य उपकरणों के लिए क्रेमलिन पर बहुत ज्यादा निर्भर है। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन के साथ जिस तरह से सीमा पर तनाव बढ़ रहा है उसे देखते हुए यह रक्षा सहयोग काफी महत्वपूर्ण है।