नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के. एम. जोसेफ ने सोमवार को कहा कि वह ईसाई हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें हिंदू धर्म से लगाव है। देश में बर्बर आक्रमणकारियों ने देश के जिन प्राचीन, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थानों के ‘नाम बदल दिए’ थे, उनके ‘मूल’ नाम फिर से रखने के लिए पुनर्नामकरण आयोग के गठन का अनुरोध करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने यह टिप्पणी की। उनकी अगुवाई वाली इस बेंच में जस्टिस बी. वी. नागरत्न भी शामिल थे।
उन्होंने कहा, ‘हमें अपनी महानता पर गर्व होना चाहिए और हमारी महानता हमें उदार बनाती है। मैं इसे पढ़ने का प्रयत्न कर रहा हूं। आपको भी हिंदू धर्म के दर्शन पर डॉ. एस. राधाकृष्णन की किताब पढ़नी चाहिए। केरल में कई राजा हैं, जिन्होंने गिरजाघरों (चर्च) और अन्य धार्मिक स्थानों के लिए जमीन दान दी थी।’’
बेंच ने वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दायर जनहित याचिका खारिज कर दी और कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और वह अतीत में कैद होकर नहीं रह सकता। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि धार्मिक पूजा का सड़कों के नामकरण से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि मुगल सम्राट अकबर ने विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव बनाने की कोशिश की थी।