होली पर सभी लोग गुजिया बनाते और खाते हैं। पहले गुजिया केवल घरों में बनाई जाती थी फिर दुकानों में मिलने लगी। जिस दुकान पर भी घर जैसा स्वाद मिला, लोग उसी के होकर रह गए। ऐसी एक दुकान शिवपुरी जिले के कोलारस में है। शिवपुरी जिले समेत प्रदेश और देश के कोने-कोने में पहुंचने वाली ‘रत्ना’ की गुजिया का नाम और स्वाद 40 साल से बरकरार है।
एक रुपए की गुजिया अब 20 रुपए की हो गई
40 साल पहले मैंने गुजिया के दाम की शुरुआत एक रुपए से की थी। महंगाई बढ़ती गई और गुजिया के दाम भी बढ़ते गए। आज गुजिया का भाव 20 रुपया हो गया है। उस दौर में 15 रुपए किलो खोवा मिल जाता था। दूध की कीमत भी 50 पैसे से 75 पैसे प्रति लीटर थी। अब हर चीज के दाम बढ़ गए हैं, इसलिए समय के साथ गुजिया के दाम में बदलाव आता गया। समय भले ही बदल गया हो, लेकिन हम स्वाद में कभी बदलाव नहीं आने दिया है। जो स्वाद चालीस साल पहले था, वो वैसा का वैसा ही मेंटेन किया है।
तीन बेटे संभाल रहे जिम्मेदारी, सबके अपने काम
मेरी उम्र अब 70 साल के पार हो चुकी है। तीन बेटे हैं प्रकाश, दौला और लक्ष्मण। सबसे बड़ा बेटा प्रकाश गुजिया बनाने में निपुण हो गया है। ज्यादातर गुजिया बनाने का काम उसके हाथ में ही रहता है। इसके अतिरिक्त दौला और लक्ष्मण भी गुजिया बनाना सीख चुके हैं, लेकिन वह दुकान के अन्य कामों में हाथ बंटाते हैं। 40 साल हो चुके हैं, लेकिन मैंने गुजिया बनाने के लिए कभी किसी बाहरी का सहयोग नहीं लिया। पहले मैं खुद करता था। बच्चे बड़े हुए तो वे अब हाथ बंटाने लगे।
पिता ने विरासत में दी रेसिपी
रतन के बड़े बेटे प्रकाश कुशवाह ने बताया कि बचपन से ही अपने पिता को गुजिया बनाते हुए देख रहा हूं। उन्होंने हम तीनों भाइयों को विरासत में यह अनमोल रेसिपी दी, जो उनके अलावा कोई नहीं जाता। गुजिया बनाने के मसाले तो सब जानते हैं, लेकिन सही मात्रा में उनको डालकर सही टेम्प्रेचर पर पकाने की कला पिताजी को ही पता थी, जो उन्होंने हमें सिखाई है। पिताजी के नेतृत्व में चालीस साल पहले बनाया स्वाद का स्तर आज तक बनाए रखे हुए हैं।