इस्लामाबाद: आर्थिक संकट में घिरे पाकिस्तान की जनता के लिए अब स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। देश में महंगाई उस स्तर पर पहुंच गई है जहां पर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना और अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाना लोगों के लिए सपना सा होता जा रहा है। पाकिस्तान रुपए में हाल के दिनों में हुई गिरावट ने आर्थिक संकट को और बढ़ा दिया है। इस समय एक डॉलर के मुकाबले पाकिस्तान रुपया 288 के स्तर पर पहुंच चुका है। रमजान के महीने में लोगों के पास रोजा तोड़ने के लिए जरूरी फल खरीदने तक के पैसे नहीं बचे हैं। देश में केले 450 रुपए दर्जन, सेब 400 रुपए किलो और प्याज 200 रुपए किलो पर बिक रहा है।
सन् 1947 में देश को आजादी मिली थी और तब से लेकर अब तक पाकिस्तान तीन बार तख्तापलट का सामना कर चुका है। चुनी हुई सरकारों को सत्ता से बेदखल करने वाले और सैन्य शासन का इतिहास रखने वाले इस मुल्क में आर्थिक स्थिति कभी इतनी खराब नहीं रही, जितनी कि इस समय है। नगदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई सालों से लगातार गिरावट की स्थिति में है। इसकी वजह से गरीब जनता पर अनियंत्रित मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ता जा रह है।
लाहौर में एकाउंटेंट के तौर पर काम करने वाले नाजिम मलिक ने कहा, ‘महंगाई की वजह से मेरी सामान खरीदने की शक्ति खत्म हो चुकी है। वास्तव में, मैं जो कमाता हूं उससे दो वक्त का खाना भी मुमकिन नहीं है।’ पिछले छह महीनों के दौरान, मुद्रास्फीति उस स्तर पर पहुंच गई जहां उनकी सैलरी जो कि 65,000 पाकिस्तानी रुपए है, उसमें भी वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के लिए भोजन खरीदने में परेशानियों का सामना करते हैं। नाजिम ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चों को एक अंग्रेजी मीडियम के स्कूल से निकाल लिया है। मलिक ने इस स्थिति का दोष मौजूदा शासकों को दिया जिन्होंने जनता की दुर्दशा पर भी ध्यान ही नहीं दिया और राजनीति में ही बिजी रहे।
देश में पिछले दो हफ्तों के दौरान मुफ्त भोजन या गेहूं पाने की कोशिश में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई है, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। 25,000 रुपए कमाने वाले शकील अहमद अकेले हैं और उनकी अभी फैमिली नहीं है। एक कैंटीन में काम करने वाले शकील भी महीने के पहले दो हफ्तों में जो कमाते हैं, वह सारा खर्च हो जाता है। फिर उन्हें या तो उधार लेना पड़ता है या फिर बाकी बचे समय में ओवरटाइम करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि फलों और सब्जियों की कीमतें ज्यादातर लोगों की पहुंच से बाहर हो गई हैं और गरीबों को केवल आटा और चावल की चिंता है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से 1.1 अरब डॉलर के जरूरी फंड का इंतजार कर रहा है। यह फंडिंग साल 2019 में किए गए 6.5 बिलियन डॉलर के बेलआउट समझौते का हिस्सा है।
लाहौर में, एक किलो आटे की कीमत 170 पाकिस्तानी रुपए है, जिसे एक मजदूर के लिए खरीद पाना सपना है। 59 वर्षीय स्कूल शिक्षक अब्बास राणा कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी भी इस तरह की बढ़ती महंगाई नहीं देखी। कराची में रहने वाली अर्थशास्त्री रुहमा रहमान ने कहा कि इस महंगाई की वजह से हजारों घरों में जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष जारी है। मगर इसका तुरंत इसका कोइ समाधान नहीं है। उनका कहना है कि सबसे बड़ी समस्या है कि नेता आम आदमी से बलिदान की उम्मीद करते हैं, लेकिन खुद वो ऐश कर रहे हैं और ऐसा करने से बच रहे हैं।