नई दिल्ली: भारत की अध्यक्षता में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की मीटिंग नई दिल्ली में होने जा रही है। प्रॉटोकॉल के तहत एससीओ की मीटिंग में शामिल होने के लिए पाकिस्तान को भी न्योता दिया गया है। पाकिस्तान ने इसे स्वीकार करते हुए विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो के भारत दौरे की घोषणा भी कर दी है। बिलावल अगर आते हैं तो किसी पाकिस्तानी विदेश मंत्री का 12 साल बाद भारत आगमन होगा। ऐसे में सवाल उठ रहा था कि क्या भारत-पाकिस्तान के बीच वर्षों से जमी बर्फ इस बार पाकिस्तानी विदेश मंत्री के भारत दौरे पर पिघलेगी? इसका जवाब मिल गया है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो के साथ द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी। स्पष्ट है कि बिलावल आएंगे और एससीओ की मीटिंग में हिस्सा लेने की रस्म निभाकर लौट जाएंगे।
भारत गोवा में एससीओ के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की अगवानी करेगा। वहां विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अध्यक्षता में एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक 4 मई को होगी। 2011 में पाकिस्तान की तत्कालीन विदेश मंत्री हीना रब्बानी खार भारत दौरे पर आई थीं। खार अभी पाकिस्तान की बिलावल की जूनियर मिनिस्टर हैं। तब से पाकिस्तान का कोई मंत्री भारत नहीं आया है। 2016 में पठानकोट हमले के बाद से भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत पूरी तरह बंद कर दी है। भारत का साफ कहना है कि आतंकवाद और बातचीत, दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। अगर पाकिस्तान को भारत के साथ संबंध सुधारने हैं तो उसे आतंकवाद से तौबा करना होगा।
एससीओ को पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन उत्तरी अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) का समकक्ष माना जा रहा है। चीन, भारत, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान एससीओ के सदस्य देश हैं। एससीओ की स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई में हुआ था। इस संगठन का मूल लक्ष्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, जातीय अलगाव और धार्मिक कट्टरता जैसे मुद्दों को सुलझाना है। अब इसमें क्षेत्रीय विकास को भी जोड़ दिया गया है।
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