निकोसिया: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर साइप्रस की यात्रा पर हैं। यहां उन्होंने एक ऐसा मुद्दा उठाया है जो तुर्की की दुखती रग को दबाने जैसा ही है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साइप्रस मुद्दे के समाधान के तौर पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों पर आधारित द्वि-साम्प्रदायिक, द्वि-क्षेत्रीय संघ की ओर भारत की प्रतिबद्धता बृहस्पतिवार को दोहरायी। जयशंकर 29 से 31 दिसंबर तक साइप्रस की तीन दिवसीय यात्रा पर हैं। उन्होंने साइप्रस के अपने समकक्ष लोआनिस कासोउलिडेस के साथ सार्थक चर्चा करने के बाद एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में यह टिप्पणियां कीं।
तुर्की ने 1974 में किया था हमला
लोआनिस कासोउलिडेस ने कहा, ‘‘जैसा कि हमने भारत के मामले में देखा है, देश का विभाजन एक खतरनाक यात्रा की शुरुआत थी और निश्चित तौर पर अंत नहीं था इसलिए साइप्रस तथा उसके लोगों के लिए दो राज्य के समाधान को स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’ गौरतलब है कि साइप्रस के विदेश मंत्रालय के अनुसार, तुर्किये ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर समेत अंतरराष्ट्रीय कानून के सभी नियमों का उल्लंघन करते हुए 1974 में साइप्रस पर आक्रमण किया था।
तुर्की का है अवैध कब्जा
उसका दावा है कि आक्रमण के दौरान तुर्किये ने ‘‘फामागुस्ता शहर को अपने कब्जे में ले लिया था तथा तब से साइप्रस गणराज्य के 36 प्रतिशत क्षेत्र पर अवैध कब्जा कर रखा है।’’ पाकिस्तान के करीबी सहयोगी तुर्किये के राष्ट्रपति रज्जब तैय्यब एर्दोआन बार-बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्रों में अपने संबोधन में कश्मीर मुद्दे का जिक्र करते है। भारत ने पहले भी उनकी टिप्पणियों को ‘‘पूरी तरह अस्वीकार्य’’ बताते हुए कहा था कि तुर्किये को दूसरे देशों की संप्रभुत्ता का सम्मान करना सीखना चाहिए।
इन मुद्दों पर बनी सहमति
दोनों नेताओं ने रक्षा और सैन्य सहयोग पर एक समझौते ज्ञापन समेत तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। जयशंकर की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों के 60 साल पूरे हो गए हैं। दोनों विदेश मंत्री ने रक्षा तथा सैन्य सहयोग को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। साथ ही आव्रजन और गतिशीलता पर आशय पत्र के साथ ही साइप्रस के अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) में शामिल होने पर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों नेताओं ने विश्व शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र पर भी अपने विचार साझा किए।