मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश के बार्डर पर इन दिनों एक कबाड़ सरगना का नाम सुर्खियों में छाया हुआ है। बताया जाता है कि कबाड़ व्यवसायी सुमित एनसीएल से स्कै्रप का छोटा मोटा टेंडर लेता है और कबाड़ की दुकान एमपी यूपी के बार्डर पर संचालित करता है परन्तु इस छोटे धंधे की आड़ में उक्त कबाड़ सरगना द्वारा बड़े पैमाने पर कबाड़ियों की मिलीभगत से एनसीएल की मप्र व उप्र की विभिन्न परियोजनाओं से सुनियोजित तरीके से चोरिया कराकर कबाड़ का अवैध व्यवसाय किया जाता है। आलम यह है कि एनसीएल परियोजनाओं में लगे लोहे के विद्युत पोल रातो रात गायब हो जाते हैं। मशीनरी सामान आये दिन चोरी होते हैं जिनकी कीमत लाखों में होती है। पुलिस ने कई बार कार्यवाहियां की है परन्तु कारोबार अनवरत जारी है।
कबाड़ी ने पाल रखे हैं दर्जन भर से अधिक गुर्गे
बताया जाता है कि कबाड़ व्यवसायी अपने साथ दर्जनभर से ज्यादा शातिर कबाड़ियों को पालता है। उक्त कबाड़ी रात के अंधेरे में पुलिस व एनसीएल सिक्योरिटी के आंखों में धूल झोंककर रोजाना बड़े पैमाने पर एनसीएल के बेसकीमती मशीनरी सामानों पर हाथ साफ करते हैं जिससे एनसीएल को हर महीने लाखों की चपत लगती है।
बार्डर पर धंधा संचालित करने का कबाड़ी को मिलता है फायदा
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बार्डर पर धंधा संचालित करने का भरपूर फायदा कबाड़ सरगना उठा रहा है। बताया जाता है कि एमपी पुलिस को लगता है कि कबाड़ी उत्तर प्रदेश में कार्य कर रहा है जबकि उत्तर प्रदेश की पुलिस को लगता है कि कबाड़ी मप्र में अपना व्यवसाय कर रहा है। उक्त कबाड़ी द्वारा झिंगुरदह, जयंत, खड़िया में बड़े पैमाने पर कबाड़ चोरियों को अंजाम दिया जा रहा है। बार्डर में धंधा संचालित करने के कारण उक्त कबाड़ी तक पुलिस नहीं पहुंच पाती।
बार्डर इलाके में कबाड़ के धंधे में जुड़े हैं कई नाम
बार्डर पर एक मात्र कबाड़ी द्वारा इस तरह के धंधे को अंजाम नहीं दिया जा रहा है। उक्त कबाड़ी के साथ साथ कबाड़ के धंधे का जाना माना नाम राजाराम लम्बे समय से कबाड़ का अवैध धंधा कर रहा है। राजाराम द्वारा एनसीएल की जयंत, निगाही, दुद्धिचुआ परियोजना को टारगेट किया जाता है और बड़े पैमाने पर कबाड़ का अवैध ब्यापार करते हैं और चोरियों को अंजाम देते हैं। इसके साथ ही पहुना ने अपना साम्राज्य मोरवा व झिंगुरदह में तो दीपक जैन ने मोरवा में अपना ठिकाना बनाया हुआ है। उक्त कबाड़ियों द्वारा दिखाने के लिए छोटे मोटे कबाड़ के टेंडर लेकर दुकान का संचालन कराया जाता है जबकि इन छोटे मोटे दुकानों के पीछे एक बड़े गिरोह के साथ मिलकर एनसीएल को लाखों करोड़ो का चपत लगाया जा रहा है।