नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस. अब्दुल नजीर बुधवार को रिटायर हो गए। वह राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद, इंस्टेंट ‘तीन तलाक’ और ‘निजता के अधिकार’ (Right to Privacy) को मौलिक अधिकार घोषित करने समेत कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं। सत्रह फरवरी, 2017 को शीर्ष अदालत के न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति नजीर उन संविधान पीठों का हिस्सा रहे, जिसने 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण (Demonetisation) से लेकर सरकारी शिक्षण संस्थानों में दाखिले और नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण देने, उच्च लोक सेवकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार जैसे मामलों में अपने फैसले सुनाए।
पांच न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ में भी न्यायमूर्ति नजीर शामिल थे, जिसने कहा था कि एक राज्य के अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति समुदाय का सदस्य दूसरे राज्य की सरकारी नौकरियों में आरक्षण या शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के लाभ का दावा नहीं कर सकता, अगर उसकी जाति दूसरे राज्य में अधिसूचित नहीं है।
वह पांच-न्यायाधीशों की उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने नवंबर 2019 में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ किया था और केंद्र को एक मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था।