लंदन: बकिंघम पैलेस ने भारत के दावे वाले औपनिवेशिक काल के कोहिनूर हीरे से जुड़े विवाद को लेकर संभवत: सावधानी बरतते हुए इसे अगले महीने महाराजा चार्ल्स तृतीय और महारानी कैमिला के राज्याभिषेक समारोह का हिस्सा नहीं बनाने का निर्णय लिया है। ब्रिटिश राजपरिवार परिवार से जुड़े मामलों के एक विशेषज्ञ ने यह जानकारी दी। ‘द डेली टेलीग्राफ’ अखबार की एसोसिएट एडिटर कैमिला टोमिनेय ने पीटीआई-भाषा से एक साक्षात्कार में कहा कि पारंपरिक ताज में कोहिनूर हीरा जड़े होने के चलते इसका इस्तेमाल नहीं करने के कैमिला के फैसले पर उन्होंने गौर किया।
प्रदर्शनी में रखा जाएगा कोहिनूर
डिजाइन महारारानी एलेक्जेंड्रा के 1902 के मुकुट से प्रेरित है, जिसे मूल रूप से कोहिनूर के साथ जड़ा गया था, जो महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मां महारानी एलिजाबेथ के मुकुट में 1937 से जड़ा हुआ है। पिछले महीने, ब्रिटेन के महलों का प्रबंधन करने वाली धर्मार्थ संस्था ‘हिस्टोरिक रॉयल पैलेसेज’ (एचआरपी) ने कहा था कि कोहिनूर हीरे को मई में ‘टावर ऑफ लंदन’ में आयोजित सार्वजनिक प्रदर्शनी में ‘विजय के प्रतीक’ के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा। प्रदर्शनी में कोहिनूर के इतिहास को भी प्रदर्शित किया जाएगा।
भारत करता है दावा
उल्लेखनीय है कि भारत, कोहिनूर पर अपना दावा जताता रहा है। एचआरपी ने नयी प्रस्तावित प्रदर्शनी का जिक्र करते हुए कहा, “महारानी एलिजाबेथ के ताज में जड़े कोहिनूर के इतिहास को विजय के प्रतीक के रूप में बयां किया जाएगा। इसमें वह इतिहास भी शामिल है, जब यह हीरा मुगल साम्राज्य, ईरान के शाहों, अफगानिस्तान के अमीरों और सिख राजाओं के पास हुआ करता था।” फारसी भाषा में कोहिनूर का अर्थ प्रकाश पर्वत होता है। यह हीरा महाराजा रणजीत सिंह के खजाने में शामिल था, लेकिन महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी बनाए जाने से कुछ वर्ष पहले यह उनके कब्जे में चला गया था। अतीत में ब्रिटेन में हुई ताजपोशियों में यह हीरा आकर्षण का केंद्र रहा है। एचआरपी के आकलन के मुताबिक, यह हीरा संभवत: दक्षिण भारत स्थित गोलकुंडा की खान से निकाल गया था और इसका वजन 105.6 कैरट है।