फिरोजाबाद । श्री चिन्ताहरण शिवमहापुराण कथा के द्वितीय दिवस में कथा व्यास शिवदास श्री राघवाचार्य जी ने नैमिषारण्य क्षेत्र की उत्पत्ति के विषय में बताते हुये कहा महर्षि शौनक के मन में दीर्घकाल तक ज्ञान सत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा इसे चलाते हुए चले जाओं । जहाँ इस चक्र की नेमि (परिधि) गिर जायें। वहीं आश्रम बनाकर ज्ञान सत्र करों। ऋषि शौनक जी अपने 80 सहस्त्र ऋषियों के साथ वहाँ से उस चक्र का पीछा करने लगे। उस चक्र की नेमि भारत में गोमती नदी के किनारे गिरी और उस स्थान को नैमिषारण्य कहा जाता हैं। महर्षि शौनक जी को इस तीर्थ में सूत जी ने 18 पुराणों की कथा सुनायी थी। द्वितीय प्रसंग में ब्रह्मा पुत्र नारद जी के विषय में बताया। नारद जी हिमालय पर्वत की गुफा में बहुत दिनों से तपस्या कर रहे थे । उन्होने दृढतापूर्वक समाधि लगाई थी, तब इन्द्रदेव ने डर से उनकी तपस्या भंग करने के कामदेव और वसंत को बुलाया । परन्तु कामदेव व वसंत भी उनकी समाधि का भंग नहीं कर पायें। तो नारद जी को अभिमान हो गया। तब भगवान शिव की इच्छा से विष्णु जी ने माया रची। उस माया के जाल में फंस कर नारद जी का अभिमान टूट गया। तब विष्णु जी ने कहा
भगवान शिव निर्गुण और निर्विकार है और सत, रज और तम आदि गुणों से परे हैं। आज द्वितीय दिवस में अन्नक्षेत्र श्रीमती रजनी शर्मा पत्नी श्री मुकेश शर्मा द्वारा किया गया ।
कथा में पं० सीताराम शर्मा जी, श्री सुरेश चन्द्र शर्मा, श्री आलोक अग्रवाल, श्री कपिल बत्तल, ऋषि शर्मा, रिषी गुप्ता, पीयूष गुप्ता, श्री विजय कुमार गुप्ता, श्रीमती हेमलता गुप्ता तथा समस्त भक्तगण शामिल रहे ।