नई दिल्ली: ‘किनुरेनिन पाथवे’ में पुतलियों का रंग निर्धारित करने के लिए जिम्मेदार मेटाबोलाइट के स्तर में बदलाव करने से रेटिना (आंखों के पीछे के पर्दे) की सेहत पर असर पड़ता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। ‘किनुरेनिन पाथव’ प्रतिरक्षा प्रणाली का एक प्रमुख नियामक है, जो कोशिकीय ऊर्जा पैदा करने के साथ ही कई जैविक क्रियाओं में अहम भूमिका निभाता है। जर्मनी स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलीक्यूलर सेल बायोलॉजी एंड जेनेटिक्स (एमपीआई-सीबीजी) ने ड्रोसोफिला नस्ल की मक्खियों में पाए जाने वाले सिनेबर, कार्डिनल, व्हाइट और स्कारलेट जीन पर अध्ययन किया।
उन्होंने पाया कि रेटिना के लिए हानिकारक मेटाबोलाइट ‘3-हाइड्रोक्सीकिनुरेनिन’ और उसकी रक्षा करने वाले मेटाबोलाइट ‘किनुरेनिक एसिड’ के स्तर में मौजूद सापेक्षिक अंतर रेटिना में क्षरण का स्तर निर्धारित करता है। अध्ययन दल में शामिल सरिता हेब्बार ने बताया कि 3-हाइड्रोक्सीकिनुरेनिन के स्तर में वृद्धि जहां आंखों पर जोर पड़ने पर रेटिना को नुकसान बढ़ाती है, वहीं किनुरेनिक एसिड के स्तर में वृद्धि उसकी रक्षा करती है। उन्होंने कहा कि यह अध्ययन मेटाबोलाइट के स्तर में उचित बदलाव कर रेटिना की सेहत को दुरुस्त रखने का एक मार्ग सुझाता है।