मकर संक्रांति पर भरतकूप कुएं में तीन लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने किया पवित्र स्नान
भरतकूप, चित्रकूट। मकर संक्रांति के अवसर पर पौराणिक नगरी चित्रकूट में मंगलवार को एक अनोखा दृश्य देखने को मिला, जब भरतकूप स्थित पवित्र कुएं के जल से तीन लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने स्नान किया। इस अवसर पर श्रद्धालुओं ने खिचड़ी, गर्म कपड़े और अन्य वस्तुओं का दान भी किया। यह दृश्य किसी भी अन्य तीर्थ स्थल से अनूठा था, क्योंकि यहां सूर्योदय से पहले ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जमा हो गई थी।
मकर संक्रांति का पर्व भगवान राम के वनगमन स्थल चित्रकूट में विशेष श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। इस दिन को लेकर भरतकूप मंदिर में पांच दिवसीय मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें भक्तगण अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पवित्र स्नान करते हैं।
पौराणिक मान्यता और ऐतिहासिक महत्व
भरतकूप के कुएं का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व बहुत गहरा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब भगवान राम के भाई भरत जी उन्हें वनवास से वापस लाने के लिए चित्रकूट आए थे, तो वे साथ में समस्त तीर्थों का जल एक कलश में लेकर आए थे। उनका उद्देश्य था कि प्रभु श्रीराम का राज्याभिषेक कर उन्हें राजा के रूप में अयोध्या वापस ले जाएं। लेकिन भगवान श्रीराम ने वनवास समाप्त होने से पहले अयोध्या लौटने से इंकार कर दिया। तब अत्रि मुनि ने उस पवित्र जल को चित्रकूट के पास एक कुएं में मंत्रोच्चारण के साथ डलवा दिया था।
इस कुएं का नाम ‘भरतकूप’ तब से पड़ा, और इसे एक अद्भुत तीर्थ स्थल के रूप में पूजा जाता है। रामचरितमानस में भी संत तुलसीदास जी ने इस स्थान का उल्लेख किया है। आज भी इस कुएं में समस्त तीर्थों का जल सुरक्षित माना जाता है, और यह जल कभी खराब नहीं होता, जो इसे और भी पवित्र बनाता है। जैसे गंगा जल को घर लाकर रखा जाता है, उसी तरह श्रद्धालु इस कुएं का जल भी ले जाते हैं, क्योंकि यह सदैव शुद्ध और पवित्र माना जाता है।
जल के अद्भुत गुण और धार्मिक उपयोगिता
इस कुएं के जल के बारे में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। यह कहा जाता है कि इस कुएं के जल के समस्त कोनों का स्वाद अलग-अलग होता है। जब कोई बाल्टी कुएं से बाहर निकलती है, तो जल का स्वाद हर बार भिन्न होता है, जैसे कि विभिन्न तीर्थों का जल मिलकर इस कुएं में समाहित हो गया हो।
भरतकूप के महंत लवकुश दास के अनुसार, कभी-कभी इस कुएं में समुद्र जैसी लहरें भी उठती हैं, जो इसे और भी रहस्यमय बना देती हैं। धार्मिक कार्यों में भी इस जल का विशेष महत्व है, जैसे जब किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, तो उस मूर्ति को स्नान कराने के लिए समस्त तीर्थों का जल आवश्यक होता है। ऐसे में इस कुएं का जल लिया जाता है, क्योंकि इसे समस्त तीर्थों का जल माना जाता है।
मकर संक्रांति के इस पावन पर्व पर, भरतकूप में पवित्र जल से स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की अपार भीड़ ने इस स्थान को एक बार फिर से अद्वितीय श्रद्धा का केंद्र बना दिया। श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास ने इस धार्मिक स्थल को न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में विशेष पहचान दिलाई है।