काहिरा: मुस्लिम देश मिस्र पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह से गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है। पिछले दिनों मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सीसी ने दुबई से खाड़ी के देशों को संदेश दिया कि इस समय सबसे महत्वपूर्ण बिंदू भाइयों के मदद की है। मिस्र के राष्ट्रपति का इशारा अरबों डॉलर की मदद की ओर था। खाड़ी के तेल समृद्धि धनी मुस्लिम देशों सऊदी अरब और यूएई की ओर से पिछले कई दशकों में मिस्र को अरबों डॉलर की मदद दी गई है। हालांकि अब इन मुस्लिम देशों की नजर में ऐसा ‘भिखारी’ बन चुका है जो बार-बार कर्ज मांगने पहुंच जाता है। यही वजह है कि यूएई और सऊदी दोनों ही अब कर्ज देने से पहले कई शर्तें लाद रहे हैं। इनमें मिस्र की प्रमुख संपत्तियों में हिस्सेदारी भी शामिल है।
मिस्र पर 155 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज
सऊदी मंत्री ने कहा कि अब तक वे सीधे आर्थिक सहायता और डिपॉजिट करते थे जिसमें कोई शर्त नहीं होती थी। उन्होंने कहा कि हम अब इसे बदल रहे हैं और इस दिशा में आईएमएफ जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। खाड़ी देशों के इस रुख के बाद अब मिस्र को आईएमएफ से लोन हासिल करने के लिए बहुत कड़े सुधार कदम उठाने पड़ रहे हैं। आईएमएफ ने हाल ही में उसे 3 अरब डॉलर लोन दिया है। माना जा रहा है कि यह लोन भी खाड़ी के अरब देशों से बहुत ज्यादा प्रभावित है।
पिछले 6 साल में मिस्र तीसरी बार आईएमएफ की शरण में पहुंचा है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहले क्वार्टर में 155 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है। यह उसके कुल वार्षिक आर्थिक आउटपुट का 86 फीसदी है। मिस्र की जनसंख्या 10 करोड़ 60 लाख है और वह अभी करंसी संकट और रेकॉर्ड महंगाई से जूझ रहा है। इससे पहले खाड़ी देशों ने पिछले साल वादा किया था कि वे 22 अरब डॉलर की आर्थिक मदद मिस्र को देंगे जो यूक्रेन युद्ध की वजह से भी संकट में घिर गया है। उधर, यूएई का कहना है कि वे मिस्र के साथ समर्थन में खड़े हैं लेकिन बार-बार पैसा मांगने से हमारा धैर्य जवाब दे जाता है। इससे मिस्र की विश्वसनीयता भी गिर गई है। मिस्र रणनीतिक रूप से बेहद अहम है और स्वेज नहर उसी के नियंत्रण में जो दुनिया की लाइफलाइन है।