नई दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस की सफलता की कहानी बहुत कुछ कह रही है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू कमजोर पड़ने लगा है? यह सवाल इसलिए भी उठने लगा है क्योंकि राज्य के विधानसभा चुनाव में पीएम ने ताबड़तोड़ रैलियां की थीं। कर्नाटक में जिस तरह बजरंग बली, मुस्लिम आरक्षण जैसे मुद्दों को आगे कर भाजपा ने ध्रुवीकरण करने की कोशिश की, उसके बाद भी कांग्रेस का जीतना भगवा दल के लिए बड़ा झटका है। हिमाचल प्रदेश के बाद कांग्रेस का ग्राफ जिस तरह से बढ़ रहा है, उसने भाजपा ही नहीं अंदर ही अंदर तीसरे मोर्चे की कोशिशों में लगी पार्टियों को भी बड़ा संदेश दे दिया है। 5-6 ऐसे सियासी चेहरे हैं, जिन्हें कर्नाटक चुनाव के नतीजों को देखते हुए आगे अपनी रणनीति बदलनी होगी। उनके बारे में जानने से पहले कर्नाटक में भाजपा बनाम कांग्रेस की फाइट को भी समझना जरूरी है। आखिर खरगे-राहुल की कांग्रेस कैसे मोदी-शाह वाली भाजपा पर भारी पड़ गई? लोग यह भी पूछने लगे हैं कि क्या सच में राहुल गांधी का सियासी कद बढ़ने लगा है? दोपहर 1 बजे तक मिले रुझानों में 224 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 130 और भाजपा को 66 सीटें मिलती दिख रही हैं। जेडीएस को 22 सीटें मिल सकती हैं। मतलब कांग्रेस बड़ी आसानी से स्पष्ट बहुमत हासिल कर रही है, उसे किसी किंगमेकर की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।
BJP की नहीं सुने बजरंग बली
दरअसल, कर्नाटक के चुनाव प्रचार का पैटर्न देखिए तो बजरंग बली के जयकारों की गूंज सुनाई देती रही। भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दे पीछे रह गए। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में पीएफआई और बजरंग दल जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की बात कही तो सियासी तूफान आ गया। इस मुद्दे में भाजपा को जीत का सर्टिफिकेट दिखने लगा। उसने ऐसा प्रचारित करना शुरू कर दिया जैसे कांग्रेस ने बजरंग दल नहीं भगवान बजरंग बली का अपमान किया हो। खुद पीएम मोदी बजरंग बली को ताले में बंद करने जैसी बातें करने लगे। भाजपा को लगा कि इससे कर्नाटक में जबर्दस्त ध्रुवीकरण देखने को मिलेगा। दूसरे राज्यों में भी बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने बवाल काटना शुरू कर दिया और पूरा चुनाव अलग ही दिशा में चला गया। जबकि कांग्रेस ने क्राइम और करप्शन के मुद्दे पर फोकस बनाए रखा। कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में अच्छी रणनीति देखने को मिली। घोषणा पत्र में गरीबों को राशन, महिलाओं के कल्याण की योजनाएं, युवाओं के लिए रोजगार का वादा किया गया तो प्रचार में उस पर फोकस भी हुआ।
1. एचडी कुमारस्वामी (जेडीएस)
कर्नाटक में पूरा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के बीच लड़ा गया। जेडीएस कहीं सीन में नहीं दिखी। पूर्व सीएम और जेडीएस चीफ एचडी कुमारस्वामी अपने पिता की सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। इस चुनाव में उनके बेटे भी चुनाव में उतरे। एग्जिट पोल से ही लगने लगा था कि देवगौड़ा परिवार कर्नाटक में किंगमेकर बन सकता है। मतगणना से पहले ही खबर आने लगी कि जेडीएस ने तय कर लिया है कि वह किसके साथ मिलकर सरकार बनाएगी। इससे साफ है कि जेडीएस खुद को मजबूत स्थिति में नहीं देख रही है। समझने वाली बात यह है कि कर्नाटक में जेडीएस के घटे जनाधार का सीधे तौर पर कांग्रेस को फायदा होता दिख रहा है। पिछले चुनाव में भी जेडीएस तीसरे स्थान पर थी लेकिन उसे 37 सीटें मिली थीं। 2024 के लिए उसे भी एक इशारा मिल गया है।
राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद AAP कर्नाटक में चमत्कार की उम्मीद कर रही थी लेकिन दोपहर 12 बजे तक के रुझान बता रहे हैं कि शायद उसका खाता भी नहीं खुलेगा। ऐंटी-बीजेपी, ऐंटी कांग्रेस मोर्चे की कोशिशों में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी लगे हैं। दिल्ली में जिस तरह से उन्होंने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाई और पंजाब में सफलता पाई, उससे संकेत मिलने लगे थे। ऐसा लगा कि देशभर में कांग्रेस के कमजोर होने से जो जगह खाली हुई है, उसे नई नवेली आम आदमी पार्टी भर सकती है लेकिन फिलहाल ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस फिर से मजबूत हो रही है, तो केजरीवाल को भी अपना वोटबेस खड़ा करने के बारे में अलग से सोचना होगा।
जब भी तीसरे मोर्चे की बात होती है तो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की भी चर्चा होती है। 2024 में भाजपा को टक्कर देने के लिए ममता बनर्जी की पार्टी उन्हें प्रोजेक्ट करती दिखती है। बंगाल में विधानसभा चुनाव में जिस तरह भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी थी और उसके बाद भी ममता की पार्टी की जीत ने संकेत दिया कि ममता ही मोदी को टक्कर दे सकती हैं। मौजूदा हालात में देखिए तो कर्नाटक चुनाव के समय जब भाजपा के नेता और पूरी पार्टी ‘केरल स्टोरी’ का प्रचार करने में जुटी थी, तो ममता ने राज्य में फिल्म को ही बैन कर दिया। हालांकि हिमाचल के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का मतलब यह है कि भाजपा को सीधी चुनौती देने में कांग्रेस को लीड मिल चुकी है। आगे अगर विपक्षी एकता पर मोर्चेबंदी होती है तो कांग्रेस फिर से खुद को नेतृत्व की स्थिति में रखना चाहेगी। भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की सदस्यता गई लेकिन उन्होंने कर्नाटक में प्रचार के दौरान भाजपा पर हमलावर दिखे। ऐसे में साफ है कि ऐंटी बीजेपी मोर्चे में कांग्रेस अब खुद को लीड करने की स्थिति में ला चुकी है। पहले भी उसके नेता कह चुके हैं कि देशभर में कांग्रेस ही भाजपा को चुनौती दे सकती है।
तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव ने पार्टी का नाम जब तेलंगाना राष्ट्र समिति से भारत राष्ट्र समिति किया तो संदेश गया कि वह खुद के लिए राष्ट्रीय भूमिका देख रहे हैं। वह ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव से मिले तो तीसरे मोर्चे के समीकरण सेट किए जाने लगे। उस समय ऐसा लगने लगा था कि कांग्रेस के कमजोर होने से ऐंटी बीजेपी मोर्चे में उसकी भूमिका ‘जूनियर’ की रह सकती है लेकिन जिस तरह से कर्नाटक और उसके पहले हिमाचल में कांग्रेस ने कमबैक किया है, उसने फिर से उसे केंद्र में ला दिया है।
बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू लालू की पार्टी आरजेडी के साथ मिलकर सरकार चला रही है। नीतीश भाजपा से रिश्ता तोड़ चुके हैं और खुद के लिए 2024 में नई भूमिका तलाश रहे हैं। हाल में वह भी दिल्ली, महाराष्ट्र और कोलकाता के दौरे पर रहे। दरअसल, 2024 से पहले भाजपा को टक्कर कौन देगा, जब इस सवाल का जवाब ढूंढा जाता था तो सभी कांग्रेस को बैकडोर पर रखने लगे थे। उन्हें लग रहा था कि फिलहाल उसकी हालत वैसी नहीं है लेकिन भारत जोड़ो यात्रा का असर शायद दिखने लगा है।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत ने अपने लिए रास्ता तो खोला ही है, जेडीयू और एनसीपी जैसे सहयोगी दलों को भी छिटकने से रोक लिया है। महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ मिलकर सरकार चला चुकी है। अब नीतीश और पवार दोनों को संदेश मिल गया है कि तीसरे मोर्चे की बात भूल यूपीए को मजबूत करने का वक्त आ गया है। कहीं तीसरे मोर्चे के चक्कर में वोट तीन हिस्सों में न बंट जाए क्योंकि इसका भी फायदा भाजपा को ही मिलेगा।